Entertainment: The Bhootni Review: संजू बाबा की फिल्म देख ‘स्त्री’-‘भूल भुलैया’ वाले पीट लेंगे माथा! भूतनी ने डराया या रुलाया? – #iNA

बॉलीवुड में हॉरर फिल्मों के चाहने वालों की कमी नहीं है, लेकिन पिछले कुछ सालों में हॉरर-कॉमेडी का एक दिलचस्प कॉम्बिनेशन हमें देखने को मिला है और स्टोरी टेलिंग के इस नए ट्रेंड ने दर्शकों को खूब लुभाया है. इसी ट्रेंड को आगे बढ़ाते हुए, संजय दत्त ने भी एक नई हॉरर-कॉमेडी फिल्म ‘द भूतनी’ के साथ बॉक्स ऑफिस पर एंट्री की है. संजय दत्त की भूतनी श्रद्धा कपूर की स्त्री जैसी शानदार तो नहीं है. लेकिन ये फिल्म आपका ठीक ठाक मनोरंजन करती है. पूरी फिल्म में संजय दत्त ने जान डाल दी है. बड़ों से ज्यादा बच्चे इस फिल्म को ज्यादा पसंद करेंगे. आइए अब फिल्म के बारे में विस्तार से बात करते हैं.

कहानी

कहानी की शुरुआत होती है वर्जिन ट्री से. सेंट विंसेंट कॉलेज में खड़े इस पेड़ को कुछ लोग शापित मानते हैं. कहा जाता है इस पेड़ पर रहने वाली एक भूतनी हर वैलेंटाइन डे पर जाग जाती है. सच्चे प्यार की तलाश में ये भूतनी हर साल किसी एक को टारगेट करती है और वैलेंटाइन डे को भूतनी की तरफ से टारगेट किया गया लड़का, होली के दिन मर जाता है. इस साल शांतनु (सनी सिंह) भूतनी का टारगेट बना है और इस भूत से पीछा छुड़ाने के लिए कॉलेज प्रशासन ‘घोस्टबस्टर’ कृष्णा त्रिपाठी (संजय दत्त) को बुलाता है, अब क्या ये घोस्टबस्टर भूतनी का काम तमाम कर पाएगा या फिर इस कहानी में कोई नया ट्विस्ट आएगा? ये जानने के लिए आपको थिएटर में जाकर ‘द भूतनी’ देखनी होगी.

जानें कैसी है ये फिल्म

डरावनी कहानियों के नाम पर हमारे सामने परोसी गई इस फिल्म में डर कम और कॉमेडी ज्यादा है और इसलिए ‘द भूतनी’ एक अधपकी फिल्म लगती है. ‘स्त्री’, ‘मुंजा’ जैसी फिल्मों के मुकाबले इस फिल्म में हॉरर के नाम पर मौनी रॉय की चीखें ही सुनाई देती हैं. उन्हें देखकर बिल्कुल भी मजा नहीं आता. फिल्म की कॉमेडी और संजय दत्त के एक्शन ने ही इसे बचा लिया है. ये फिल्म उन पुरानी फिल्मों की तरह है कि जिसे दिमाग घर पर छोड़कर एंजॉय किया जा सकता है. हालांकि फिल्म के निर्देशक सिद्धांत कुमार सचदेव उनके एक्शन के पीछे की वजह भी बताते हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि इस वजह में भी कोई खास लॉजिक नजर नहीं आता. फर्स्ट हाफ में फिल्म जितना बोर करती है, उतना ही सेकंड हाफ में इसे देखने में मजा आ जाता है.

निर्देशन और लेखन

फिल्म का निर्देशन सिद्धांत सचदेव का है और फिल्म की कहानी भी उन्हीं की है. स्क्रीनप्ले उन्होंने वंकुश अरोड़ा के साथ मिलकर लिखा है. ‘कॉमेडी सर्कस’ के लिए लिखने वाले वंकुश ने इस फिल्म के लिए भी कमाल के कॉमेडी डायलॉग लिखे हैं. लेकिन फर्स्ट हाफ में कहानी इतनी बोर कर देती है कि अच्छी कॉमेडी भी बेअसर लगने लगती है. कहानी का प्लॉट अच्छा है, लेकिन मुद्दे की बात पर आने तक निर्देशक ने शुरुआत के 20 मिनट बर्बाद किए हैं. फिल्म में संजय दत्त की एंट्री भी देर से होती है. उनकी एंट्री के बाद फिल्म थोड़ी दिलचस्प बन जाती है और फिर सेकंड हाफ में हम इसे एंजॉय भी करने लगते हैं. बुरी फिल्म को संजय दत्त एक देखने लायक फिल्म बना देते हैं.

एक्टिंग

अगर कोई हमें बता दें कि पहले से ही मरे हुए भूत को हम किसी अलग गन से मारे, तो वो मर सकता है. तो हम उसे बेवकूफ समझेंगे. लेकिन संजय दत्त अपनी एक्शन से ये विश्वास दिलाते हैं कि वो उनकी गन और बाकी के हथियारों से भूतों को मार सकते हैं. ‘वास्तव’ से लेकर ‘अग्निपथ’ और ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ तक हर फिल्म में अपनी एक्टिंग के दम पर संजय दत्त नामुमकिन चीजें भी मुमकिन करके दिखाते हैं और उनकी सहज एक्टिंग देख हम भी हमेशा की तरह उनका यकीन कर लेते हैं. वरना जरा सोचिए, अगर असल जिंदगी में ‘जादू की झप्पी’ कहते हुए हम सामने वाले को गले लगा लें, तो हमारा और खासकर लड़कों का पिटना तो तय है. भूतनी में भी उन्होंने पूरी फिल्म को संभाला है.

सनी सिंह ‘शांतनु’ के किरदार में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाते. पलक अच्छी है, उन्होंने ‘किसी का भाई किसी की जान’ में भी कम स्क्रीन स्पेस मिलने के बावजुद अपनी छाप छोड़ दी थी. आसिफ खान और निकुंज शर्मा भी अच्छे हैं. ‘बी यूनिक’ नाम से निकुंज कंटेंट क्रिएट करते हैं. वो इस फिल्म के सरप्राइज पैकेज हैं. मौनी रॉय की ‘भूतनी’ में कोई नयापन नहीं है. उनकी हर फिल्म की तरह इस फिल्म में भी वो ठीक-ठाक ही है. दरअसल फिल्म में एक सीन है जहां पलक को ‘भूतनी’ दिखाया गया है, ये सीन महज कुछ मिनट का होगा, लेकिन वहां पलक ने एक्टिंग के मामले में मौनी को पीछे छोड़ दिया है.

देखे या न देखें

‘द भूतनी‘ वन टाइम वॉच वाली फिल्म है. ऐसी कई फिल्में पहले भी बनी हैं और हमने इन्हें खूब एंजॉय भी किया है. लेकिन अब ऑडियंस अपना दिमाग घर पर रखकर नहीं आतीं. कोरोना के बाद ओटीटी पर इतना कंटेंट मौजूद है कि ‘द भूतनी’ जैसी फिल्में बड़ी ही आसानी से घर पर देखी जा सकती है. इस फिल्म में ‘मडगांव एक्सप्रेस’ की तरह ‘स्टार्ट टू एंड’ वाली कॉमेडी भी नहीं है और फिल्म के निर्देशक ने ‘स्त्री’, ‘भेड़िया‘ की तरह इस फिल्म के जरिए कोई स्ट्रॉन्ग मैसेज भी नहीं दिया है. लेकिन अगर आप संजय दत्त के फैन हो, तो आप इस फिल्म को खूब एंजॉय करेंगे. गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को इसे जरूर दिखाया जा सकता है, क्योंकि इसमें दिखाया गया हॉरर उनके लिए बिलकुल सही है. बाकी ‘बाबा’ के चाहने वालों के लिए यही कहना चाहेंगे कि बाबा थिएटर में आ चुके हैं, उनका स्वागत करना तो बनता है.

फिल्म का नाम : द भूतनी

निर्देशक : सिद्धांत कुमार सचदेव

एक्टर्स : संजय दत्त, मौनी रॉय, सनी सिंह

रिलीज : थिएटर

रेटिंग : 3 स्टार्स

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