देश – कुछ दिन और चलने देते बलिदानी दौर को, लगे हाथ निबटा ही देते पिंडी और लाहौर को – #INA

Table of Contents

Ghaziabad News :
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के वीर चक्र विजेता कर्नल तेजेन्द्र पाल त्यागी ने विजय दिवस के मौके पर बताया कि पश्चिमी सरहद पर इस युद्ध में भयंकर संग्राम हुआ था, पूर्वी सरहद पर युद्ध बहुत मायनों में साइक्लोजिकल था। 16 दिसंबर को जब पाकिस्तान की सेना के 93000 सिपाहियों ने हथियार डाल दिये और युद्ध विराम घोषित कर दिया गया, उस समय पश्चिमी सरहद पर तैनात सिपाही दिल मसोसकर रह गए । ऐसा लगा जैसे साँप को मार तो दिया पर उसका फन पूरी तरह से नहीं कुचला गया। हर तरफ से आवाज आ रही थी कि कुछ दिन और तो चलने देते इस बलिदानी दौर को, लगे हाथ निबटा ही देते पिंडी और लाहौर को।

3 से 16 दिसंबर तक चला था युद्ध

कर्नल त्यागी बताते हैं कि 6 दिसंबर को डोगरा यूनिट पाकिस्तान के सकरगढ़ मे पहुँच गई थी, इसके बाद रावी नदी को पार किया और 7 दिसंबर की रात को पाकिस्तान के नेनाकोट में हमारी फौज पहुँच चुकी थी। जहां से करीब करीब सारे पाकिस्तानी घर छोड़ कर भाग गए थे। दुख इस बात का है कि भागते हुए घोड़े में लगाम लगा दी गई। वरना पाकिस्तान का पक्का इलाज कर दिया होता। पाकिस्तान के मुकाबले हम चार गुणा अधिक भूमि पर कब्जा कर चुके थे, जो हमें समझौते के तहत लौटानी पड़ी।

जख्मी सिपाहियों को दुश्मन के गांव से निकालकर लाए

उस दौर को याद करते कर्नल त्यागी बताते हैं कि मैं कोर ऑफ इंजीनियर की 103 रेजीमेंट में उस समय लेफ्टिनेंट था और 7 इनफेंटरी डिवीजन की वेनगार्ड का हिस्सा हुआ करता था। मुझे अपर बेरी केनाल पर 8 दिसंबर को एक पुल बनाने का काम दिया गया था और उस दौरान मेरे पांच सिपाहियों को गोली लग गई थी, जो जख्मी हालत में दुश्मन के गाँव चिना वेदी चन्द में फंस गए। मैं और मेरा बेट्मेन उन पांचों को दुश्मन के गाँव से गोलियों के बीच निकालकर लाये। उनमें से दो तो शहीद हो गए और तीन उपचार के बाद वापस यूनिट में आ गए।

इस बहादुरी के लिए सरकार ने वीर चक्र से नवाजा

कर्नल टीपी त्यागी बताते हैं कि सिपाहियों को दुश्मन के गांव से निकालकर लाने पर भारत सरकार ने मुझे वीर चक्र से नवाजा था।  उस समय का सिपाही इतना पढ़ा लिखा नहीं होता था, जितना आज का है। आज हर सिपाही के हाथ में एक स्मार्ट मोबाइल फोन है और वो टेलीविजन भी देखते हैं। उसे अपने नेताओं के आचरण और भाषण का पता लगता रहता है। इसलिए नेताओं को भी बहुत ही संभलकर और संयमित होकर बोलने की जरूरत है, ताकि फौजियों का हौंसला बना रहे।

400 साल बाद हासिल की थी विजय

कर्नल टीपी त्यागी का कहना है कि हिंदुस्तान ने करीब 400 साल के बाद एक मुकमल विजय हासिल की थी। हमने दुश्मन के करीब एक लाख सिपाही भी छोड़ दिये और हमे मिला कुछ नहीं। न कश्मीर का मुद्दा समाप्त हुआ और न ही भविष्य के लिए पाकिस्तान से युद्ध न करने की गारंटी ली गई। इसलिए तो लोग कहते हैं कि हम जमीन पर युद्ध जीत गए परंतु टेबल पर हार गए।

भारत – पाक युद्ध के बाद घटी फौजियों की पेंशन

उन दिनों में फौज के सिपाही को उसके वेतन की दो-तिहाई पेंशन मिलती थी और सिविल सरवेंट्स को उनके वेतन की एक-तिहाई पेंशन मिलती थी। 1971 के युद्ध के कुछ दिन बाद ही तत्कालीन सरकार ने फौजी सिपाही की पेंशन दो – तिहाई से घटाकर आधी कर दी और सिविल सरवेंट की पेंशन एक तिहाई से बढ़ाकर आधी कर दी। ऐसा लगा कि सिपाही का अपमान हुआ है।

Copyright Disclaimer Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing. Non-profit, educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

सौजन्य से ट्रिक सिटी टुडे डॉट कॉम

Source link

Back to top button
Close
Crime
Social/Other
Business
Political
Editorials
Entertainment
Festival
Health
International
Opinion
Sports
Tach-Science
Eng News