सेहत – मां- बाप और बहन, त्रि के दशक के बाद भी पछतावा नहीं, कहीं डेल्युजन ऑफ पर्जक्यूशन की बीमारी तो नहीं, क्यों हैं आंकड़े हैं ऐसे कदम

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माता-पिता, बहन की हत्या के पीछे का मकसद: साउथ दिल्ली के नेवस में एक 20 साल के एक लड़के ने शादी के बाद अपने ही माता-पिता और बहन की हत्या कर दी। पुलिस की प्रारंभिक जांच में पता चला कि लड़का अपने माता-पिता से नाराज था क्योंकि वे उसकी पड़ोसन बहन से सबसे ज्यादा प्यार करते थे। माता-पिता सबसे ज्यादा अपनी बहन को प्यार करते थे। उन्हें शक था कि माता-पिता बहन को ही सारी संपत्ति दे देंगे। इसलिए बोली राइवलरी (भाई-बहन की प्रतिद्वंद्विता) यानी भाई-बहन के खिलाफ विद्वेष इसके पीछे प्रमुख कारण नजर आता है। इस हत्या के पीछे क्या उद्येश्य था, इसके बारे में पुलिस ने कहा था, लेकिन आखिरकार उसके दिमाग में ऐसा क्या चल रहा था कि वह इस तरह के खतरे के कदम उठाने के लिए तैयार हो गई थी। इतना बड़ा कदम उठाने के पीछे क्या कोई न को मानसिक वजहें जरूर रखें। क्या कारण पता चला, इसके पीछे मानसिक द्रव्य डेल्यूजन ऑफ पर्जेकुलेशन तो नहीं है। इस स्थिति में व्यक्ति की मानसिक मनोविज्ञान को लेकर न्यूज 18 ने वास्तविक अस्पताल के साइकेट्रिस्ट और कंसल्टेंट को बताया डॉ. मधुर राठी से बात की.

पहले से कुछ न कुछ सैटेलाइट होता रहेगा
डॉ. मधुरा राठी ने बताया कि यह मामला बेहद चरमराने वाला है। निष्कर्ष निकालने वाले व्यक्ति को पहले से कोई मानसिक बीमारी थी या नहीं, यह तो उसके परिवार से ही पता चला है या पुलिस को ही पता चल गया है लेकिन इतना बड़ा कदम उठाया है तो कुछ न कुछ मानसिक रोगी जरूर रहे होंगे। जब भी कोई व्यक्ति किसी की जान लेने के लिए निकलता है तो उसके पीछे कई मानसिक कारण हो सकते हैं। हो सकता है कि वह फार्म एडिक्ट हो या हो सकता है कि वह राइवलरी को इतना बड़ा कदम उठा ले। जैसे कि पुलिस कह रही है कि स्पेशलिस्ट को यह पता चला है कि उसके माता-पिता उससे प्यार नहीं करते थे और हाल ही में पड़ोसियों के सामने उनकी बेइज्जती हुई थी। इस स्थिति में इंपल्सिव विहे वीर वाला कदम भी उठाया जा सकता है या फार्म एडिक्ट के कारण भी कोई व्यक्ति ऐसा कदम उठा सकता है। लेकिन अगर माता-पिता को प्यार का एहसास हो रहा है तो इसका मतलब यह है कि उसका दिमाग बहुत ही मजबूत था। उसने यह सोचना शुरू कर दिया कि बहन को माता-पिता बहुत प्यार करते हैं, इसलिए वह बहन को शत्रु मान देगी और बहन का पक्ष लेने के कारण माता-पिता को भी शत्रु मान देगी।

कौन सी मानसिक बीमारी का शिकार था लड़का
डॉ. मधुर राठी ने बताया कि अगर राइवलरी का गायन होता तो वह बचपन से ही शुरू हो जाते। उसे लगता है कि माता-पिता सिर्फ बहन के पक्ष में होंगे। चाहे माता-पिता ऐसा करें या न करें लेकिन वह अपने दिमाग में यह मन अलग कर देता है कि माता-पिता मेरे साथ भेदभाव करते हैं। इसे पुष्टिकरण पूर्वाग्रह कहा जाता है। ऐसे में वह हमेशा सार्वजानिक के खिलाफ क्रोधी स्वामी रहता है। उसके अंदर ही अंदर उसके खिलाफ़ गुस्सा सबसे ज्यादा होता है और एक दिन में इतना बड़ा कदम उठाता है। ऐसी स्थिति में माता-पिता और बहन के साथ संबंध नहीं रह पाया जो होना चाहिए। हमेशा उन्हें उनके दुश्मन ही दिख रहे होते हैं. इस स्थिति में व्यक्ति फिर अलग-अलग-अलग-अलग समूहों में रहता है और ऋण पर निर्भरता का शिकार हो सकता है। यानी उसे नशा करना लग सकता है. नशे की हालत में वह अचानक इतना बड़ा कठोर कदम उठा सकता है। शराब के नशे में जिस मानसिक मनोविज्ञान पर दिमाग में ब्रेक लग जाता है वह शराब पीता है और एक्सट्रीमस्टेप उठाता है। ऐसा ही होता है जैसे किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह हो जाता है और वह एक्सट्रीम कंडीशन में समझ जाता है कि वह उसकी हत्या कर दे। इसे डिल्यूज़न ऑफ़ इफ़िडिलिटी कहा जाता है। ऐसा व्यक्ति भयंकर अवसाद में रहता है वह उस स्थिति में नशे की लत में हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। अगर यह किसी और पर हो या किसी ग्रुप पर हो तो उसे डेलीजन ऑफ पर्जिक्यूशन कहा जाता है।

क्या होता है डेल्युजन ऑफ पर्जेक्यूशन
डॉ. राठी नौकरों का कहना है कि शुरुआती मधुर मामलों से लेकर यह मामला प्रॉपर्टी का लग रहा है। लड़के को लग रहा था कि माता-पिता अपनी साड़ी प्रॉपर्टी बहन को दे देंगे, इसलिए हो सकता है कि वह डेल्युजन ऑफ पर्जिक्यूशन का शिकार हो। इसमें उसे लगता है कि माता-पिता सारि जायदाद की बहन का नाम होगा और मुझे कुछ भी नहीं मिलेगा, इसलिए वह माता-पिता को शत्रु मान बैठा होगा। डिल्यूजन ऑफ पर्जेक्यूशन (उत्पीड़न का भ्रम) एक ऐसी मानसिक स्थिति है जिसमें मनुष्य यह बताता है कि उसे सामने वाला व्यक्ति या समुदाय निश्चित रूप से नुकसान पहुंचाता है जबकि ऐसा नहीं होता है। लेकिन व्यक्ति के मन में यह बैठा है मेरे साथ अन्याय की बात हो रही है या मेरा उत्पीड़न हो रहा है। इस बात को वह आंत बांध ले जाता है और सामने वाले को खतरनाक दुश्मन आदमी ले जाता है। इससे मानसिक कुंठा होती है. वह हर वक्त रहता है. उसके दिमाग में सिवाए कोई बात आती ही नहीं. वह एक ही बात को बार-बार सोचता है या अपने करीबी से ऐसी ही एक बात का जिक्र करता है। यह एक तरह से सिज़ोफ्रेनिया का शुरुआती लक्षण है। हालाँकि सिज़ोफ्रेनिया में यह स्थिति नहीं है। ऐसे व्यक्ति को भी बिना मतलब धमकिया देना लगता है। हालाँकि वह खुद भी साधारण स्थिति में दिखता है। यदि मामला सरकारी है तो वह बार-बार अधिकारी से विक्रय करता रहता है। इस स्थिति में व्यक्ति बहुत अधिक चिंतित रहता है, वह गंभीर मानसिक अवसाद से गुजर रहा है। उसे अपनी सुरक्षा की हमेशा बहुत ज्यादा चिंता रहती है.

इस तरह बच्चों की शुरुआत से पहचान कैसे की जाए
डॉ. राठी कहती हैं कि बचपन में ऐसे मामलों को पहचानना जरूरी है। अगर बच्चा एक ही बात का बार-बार ज़िक्र करे, एक ही बात में चर्चा रहे, एक ही बात से चर्चा रहे, मज़ाक रहे तो ऐसे बच्चे को अलग तरह से देखा जा सकता है। ऐसे मामलों में माता-पिता को तुरंत देखना चाहिए। अगर कुछ दिनों में ठीक नहीं हुआ और बच्चा लगातार ऐसा ही व्यवहार कर रहा है तो उसे साइकेट्रिस्ट से दिखाना चाहिए। दरअसल, कई वजहों से बच्चे जिद्दी या असामान्य व्यवहार करने की बात सामने आती है। पहले तो इसे बेचने की तलाश करनी चाहिए। यदि इससे बच्चा शांत हो जाए तो ठीक है अन्य मानसिक शिक्षा की खोज करनी चाहिए। ऐसे मामलों में माता-पिता को धैर्य और प्यार से काम लेना चाहिए। पहले बच्चे को समझाना चाहिए। कई बार बच्चे को माता-पिता की बातों पर यकीन नहीं होता तो उसे साइकेट्रिस्ट के पास ले जाना चाहिए। डॉक्टर की बीमारी की पहचान करें उसे समझाएं या फिर उसकी दवा भी बताएं। इस मामले में अधिकांश दिनों तक कोटाही में कोई पात्र नहीं होना चाहिए। अगर शुरू में ही मूल कारण का पता लगाया जाए तो इस तरह की बाधा सामने नहीं आती।

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