उच्च शिक्षा सुधार: कुलपति चयन में पारदर्शिता से खत्म होगा ‘शिक्षा माफिया’

पिछले बीस वर्षों में सैकड़ों नई यूनिवर्सिटीज खुल गईं। आरोप है कि तमाम कुलपति धनपति बन गए। बिना पारदर्शी व्यवस्था के अयोग्य, कॉन्टैक्ट वाले लोग वाइस चांसलर पद हासिल करने में कामयाब हुए होंगे। परिवर्तन का समय आ गया है।

यूजीसी ने विश्वविद्यालयों में कुलपति और शिक्षकों को लेकर सुधारों की एक साहसिक पहल की है। यूनिवर्सिटी इंडस्ट्री कनेक्ट मजबूत करने के लिए कामयाब उद्योगपति भी वाइस चांसलर बन सकते हैं। जिन लोगों को डिग्री धारकों को जॉब देने हैं, उनकी भी शिक्षा व्यवस्था में कुछ दखल हो तो हर्ज क्या है। पांच वर्षों से NEP पूर्णतया लागू नहीं हो पा रही है। उच्च शिक्षा की बदहाली जग जाहिर है। आगरा विश्व विद्यालय को ही देख लो, कितना परिवर्तन हुआ है?

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बृज खंडेलवाल

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार की मांग लंबे समय से हो रही थी। मोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के हालिया सुधार इस दिशा में अहम कदम साबित हो सकते हैं। हालांकि, कुछ राज्यों में इन सुधारों का विरोध हो रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ये बदलाव शिक्षा माफिया के प्रभाव को खत्म करने और विश्वविद्यालयों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाने में मदद करेंगे।

पिछले कुछ दशकों में भारत में कुलपतियों (Vice Chancellors) की नियुक्ति में राजनीतिक दखल एक गंभीर समस्या रही है। अखिल भारतीय सर्वेक्षण ऑन हायर एजुकेशन (AISHE) 2022 के अनुसार, भारत में 1,100 से अधिक विश्वविद्यालय हैं, लेकिन इनकी शैक्षणिक गुणवत्ता में भारी असमानता है। 70% से अधिक विश्वविद्यालयों में कुलपति चयन में राजनीतिक सिफारिशों की भूमिका अहम रही है। योग्यता के बजाय प्रभावशाली रिश्तों को प्राथमिकता देने से अकादमिक उत्कृष्टता पर असर पड़ा है। अनुपयुक्त नेतृत्व के कारण कई विश्वविद्यालय शोध और नवाचार के मामले में वैश्विक स्तर पर पिछड़ गए हैं।

UGC ने हाल ही में कुलपति चयन प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और योग्यता-आधारित बनाने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। अब कुलपतियों का चयन एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति करेगी, जिसमें प्रतिष्ठित शिक्षाविद, प्रशासक और उद्योग विशेषज्ञ शामिल होंगे। शैक्षणिक उपलब्धियों, नेतृत्व क्षमता और प्रशासनिक अनुभव को प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे योग्य और दूरदर्शी नेतृत्व उभरकर सामने आएगा।

चयन प्रक्रिया को पारदर्शी और सार्वजनिक बनाया जाएगा, जिससे किसी भी प्रकार की पक्षपातपूर्ण नियुक्तियों पर रोक लगेगी।
UGC ने उच्च शिक्षा को अधिक समावेशी और व्यवहारिक रूप से प्रभावी बनाने के लिए कई अन्य सुधार भी किए हैं:
संकाय भर्ती में महिलाओं, हाशिए के समुदायों और विकलांग व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। उद्योग और प्रशासन के पेशेवरों को शिक्षण और विश्वविद्यालय प्रशासन में शामिल करने से छात्रों को व्यवहारिक ज्ञान मिलेगा।
प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन और शिक्षकों की एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री से शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार होगा। विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता दी गई है, जिससे वे स्थानीय जरूरतों और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप नीतियां बना सकें।

शिक्षाविद प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी कहते हैं, “आज के वैश्विक परिदृश्य में उच्च शिक्षा केवल अकादमिक ज्ञान तक सीमित नहीं रह सकती। भारत में 80% से अधिक स्नातक रोजगार के लिए जरूरी कौशल से वंचित होते हैं (India Skills Report 2023)। विश्वविद्यालयों को ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो उद्योगों के साथ मजबूत साझेदारी बना सके और छात्रों को बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षित कर सके।”

नए सुधारों के तहत विश्वविद्यालयों को अनुसंधान और नवाचार के लिए अधिक स्वतंत्रता दी जा रही है, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें। कुछ राज्य सरकारें इन सुधारों को अपनी स्वायत्तता पर हमला मान रही हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि ये बदलाव शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त निहित स्वार्थों को खत्म करने और गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक हैं।

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली अब भी औपनिवेशिक युग की रटंत-आधारित प्रणाली पर टिकी हुई है, जो 21वीं सदी की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ है। NEP और UGC के ये सुधार एक आधुनिक, समावेशी और नवाचार-आधारित शिक्षा प्रणाली की नींव रखते हैं। समय आ गया है कि हम इन सुधारों को खुले दिल से अपनाएं। राजनीतिक हस्तक्षेप और शिक्षा माफिया के प्रभाव को खत्म कर, विश्वविद्यालयों को नवाचार और सामाजिक परिवर्तन के केंद्रों में बदलने की जरूरत है। इससे भारत वैश्विक उच्च शिक्षा परिदृश्य में अपनी जगह मजबूत कर सकेगा और भविष्य के लिए अधिक प्रतिस्पर्धी कार्यबल तैयार कर पाएगा।

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