National-Gold Trend: गोल्ड में रिकॉर्ड तेजी से खुली बड़े निवेशकों की आंख, अब धड़ाधड़ खरीद रहे सोना – #INA

Gold Trend: भारत में सोने की कीमत (Gold Price) अप्रैल 2025 में 1 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम के ऐतिहासिक स्तर को पार कर गई। यह पिछले साल के मुकाबले करीब 30% की जबरदस्त बढ़त है, जब सोना ₹77,000 के आसपास था। इस उछाल ने न सिर्फ सोने की ‘सेफ हेवन’ यानी सुरक्षित निवेश वाली पुरानी पहचान मजबूत हुई, बल्कि हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs) और मिड-रेंज (Mass Affluent) निवेशकों को अपनी पोर्टफोलियो स्ट्रैटेजी पर दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया।
गोल्ड का पोर्टफोलियो में होना क्यों जरूरी है?
पिछले कुछ महीनों में गोल्ड की कीमतों में जबरदस्त तेजी आई है। इसकी कई वजहें हैं, जैसे कि वैश्विक अस्थिरता, अमेरिका की टैरिफ नीति, कमजोर होता डॉलर और दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों द्वारा भारी मात्रा में सोने की खरीद (2024 में 500 टन से अधिक)। भारत में सोने की सांस्कृतिक अहमियत और महंगाई से बचाव की क्षमता इसे हमेशा लोकप्रिय बनाए रखती है, लेकिन मौजूदा उछाल ने इसे और भी आकर्षक बना दिया है।
सोने की खास बात यह है कि इसका इक्विटी या बॉन्ड मार्केट से कम संबंध होता है। यानी जब बाजार गिरता है, तब सोना अक्सर या तो स्थिर रहता है या फिर बढ़ता है। मिसाल के लिए, 2008 की वैश्विक मंदी में जब शेयर बाजार गिरे, तब सोना 21% बढ़ा। 2024 में भी जब दुनिया भर में बाजार डगमगाए, तब सोना डॉलर में 24% की बढ़त के साथ $3,230 प्रति औंस पर पहुंच गया।
HNI का गोल्ड को लेकर बदला नजरिया
HNI यानी जिन निवेशकों का पोर्टफोलियो ₹5 करोड़ से ज्यादा का होता है, वे सोने में 10-15% तक की हिस्सेदारी रखने की कोशिश कर रहे हैं। ज्यादातर HNI निवेशक फिजिकल गोल्ड के बजाय गोल्ड ETFs, SGBs (Sovereign Gold Bonds) या फंड्स ऑफ फंड्स के जरिए निवेश कर रहे हैं। SGBs खासे लोकप्रिय हैं क्योंकि ये 2.5% सालाना ब्याज देते हैं और टैक्स-एफिशिएंट भी हैं।
कुछ HNIs अब सोने में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) से निवेश करना पसंद कर रहे हैं। इससे हाई प्राइस लेवल पर लंपसम रिस्क कम हो जाता है। साथ ही, कई निवेशक मल्टी-एसेट म्यूचुअल फंड्स में भी निवेश कर रहे हैं, जहां सोने के साथ इक्विटी और डेट में भी निवेश होता है।
Mass Affluent का फोकस बैलेंस बनाने पर
₹25 लाख से ₹5 करोड़ तक के पोर्टफोलियो वाले मिड-रेंज निवेशक यानी “Mass Affluent” अब सोने में 5-10% हिस्सेदारी रख रहे हैं। इनका मकसद सुरक्षा के साथ-साथ ग्रोथ भी है। ये निवेशक ज्यादातर गोल्ड फंड्स ऑफ फंड्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे फिजिकल गोल्ड की झंझट नहीं होती और लिक्विडिटी भी बनी रहती है।
2025 में गोल्ड FOFs ने 3 साल का 19-20% रिटर्न दिया है, जिससे ये विकल्प और भी आकर्षक हो गया है। लेकिन ये निवेशक भी ओवरएक्सपोजर से बच रहे हैं और गोल्ड के साथ इक्विटी म्यूचुअल फंड्स का संतुलन बनाए हुए हैं।
म्यूचुअल फंड्स: गोल्ड एक्सपोजर का स्मार्ट तरीका
2024 में गोल्ड ETFs का AUM ₹58,900 करोड़ तक पहुंच गया, जो सालाना आधार पर 89% की बढ़त है। इसमें से कुछ पैसा प्रॉफिट बुकिंग की वजह से निकला भी है। SBI गोल्ड फंड जैसे विकल्प SIP की सुविधा देते हैं, जिससे छोटी राशि से निवेश शुरू किया जा सकता है। मल्टी एसेट फंड्स भी पॉपुलर हो रहे हैं क्योंकि ये एक ही प्रोडक्ट में डाइवर्सिफिकेशन देते हैं।
गोल्ड में निवेश करने में रिस्क भी है
Scripbox के फाउंडर और सीईओ अतुल सिंघल का कहना सोना बेशक अभी शानदार प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन इसकी चमक के साथ रिस्क भी आता है। अगर 2013 की तरह करेक्शन हुआ, तो कीमतें 30% तक गिर सकती हैं। साथ ही, सोने से डिविडेंड नहीं मिलता, और इसकी लंबी अवधि की परफॉर्मेंस इक्विटी से कम रही है। जैसे कि 2014 से 2024 के बीच 10 साल में सोने ने 178% रिटर्न दिया है। वहीं, Nifty का रिटर्न 185% रहा।
15% से ज्यादा अलोकेशन रखने से अवसरों का नुकसान हो सकता है, खासकर उन निवेशकों के लिए जो ग्रोथ की तलाश में हैं। इसलिए SIP के जरिए धीरे-धीरे निवेश करना बेहतर रणनीति है।
संतुलन ही है असली ‘गोल्डन रूल’
एक्सपर्ट का मानना है कि सोने का ₹1 लाख के पार जाना एक मजबूत संकेत है कि यह एसेट क्लास अब भी निवेश पोर्टफोलियो में अहम जगह रखता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सारा पैसा सोने में लगा दिया जाए। HNIs को 10-15% और Mass Affluent को 5-10% तक की हिस्सेदारी रखनी चाहिए, वह भी डिजिटल या म्यूचुअल फंड्स के जरिए।
अगर किसी ने पहले ही ज्यादा निवेश कर रखा है, तो यह सही वक्त हो सकता है थोड़ा प्रॉफिट बुक करने का। एक्सपर्ट के मुताबिक, गोल्ड में निवेश जरूर करें, लेकिन संतुलन के साथ, ताकि आपका पोर्टफोलियो चकाचौंध में रास्ता न भटके।
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Gold Trend: गोल्ड में रिकॉर्ड तेजी से खुली बड़े निवेशकों की आंख, अब धड़ाधड़ खरीद रहे सोना
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