दुनियां – जलवायु संकट को लेकर भारत ने ICJ में रखा पक्ष, विकसित देशों को लेकर कही बड़ी बात – #INA
भारत ने जलवायु संकट को लेकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में आवाज उठाई. भारत ने एक सुनवाई के दौरान जलवायु संकट पैदा करने के लिए विकसित देशों की आलोचना की. देश ने विकसित देशों को लेकर कहा, जहां अब विकसित देश मांग कर रहे हैं कि विकासशील देश अपने संसाधनों के इस्तेमाल पर रोक लगाएं. वहीं, दूसरी तरफ उन्होंने वैश्विक कार्बन बजट का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया और जलवायु वित्त से जुड़े अपने वादे भी पूरे नहीं किए, लेकिन अब वो विकासशील देशों से इस के उलट मांग कर रहे हैं.
न्यायालय यह पता लगा रहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए देशों के पास क्या कानूनी दायित्व हैं और अगर वो असफल होते हैं तो इसके क्या परिणाम होंगे.
भारत ने विकासशील देशों का रखा हित
भारत की तरफ से दलील देते हुए विदेश मंत्रालय (एमईए) के संयुक्त सचिव लूथर एम. रंगरेजी ने कहा, अगर जलवायु को होने वाले नुकसान में योगदान असमान है, तो जिम्मेदारी भी असमान ही होनी चाहिए. भारत ने इस मामले में विकासशील देशों का हित रखते हुए कहा, जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान देने के बावजूद विकासशील देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.
रंगरेजी ने कहा, विडंबना यह है कि ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक जलवायु संकट में योगदान देने वाले विकसित देश इस चुनौती से निपटने के लिए तकनीकी व आर्थिक साधनों से संपन्न हैं. उन्होंने कहा कि एक तरफ अमीर देश जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) का फायदा उठा रहे हैं, जबकि विकासशील देशों को अपने खुद के ऊर्जा संसाधनों का इस्तेमाल करने से हतोत्साहित किया गया है और इस्तेमाल न करने की भी मांग की गई है.
उन्होंने आगे कहा, जिन देशों ने जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से विकास किया वो अब विकासशील देशों से उनके पास उपलब्ध राष्ट्रीय ऊर्जा संसाधनों का इस्तेमाल न करने की मांग कर रहे हैं.
“विकसित देशों ने नहीं पूरे किए वादे”
भारत ने जलवायु-वित्त प्रतिबद्धताओं के संबंध में कम कार्रवाई किए जाने की भी आलोचना की. भारत ने कहा, विकसित देशों के ग्रुप ने 2009 में कोपेनहेगन सीओपी में किए गए 100 अरब अमेरिकी डॉलर का योगदान देने और अनुकूलन कोष को दोगुना करने के वादे को अब तक ठोस कार्रवाई में तब्दील नहीं किया है.
भारत ने कहा कि अजरबैजान के बाकू में हुए सीओपी29 में ग्लोबल साउथ के लिए जिस जलवायु वित्त पैकेज पर सहमति दी गई है वो विकासशील देशों की तत्काल जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से बहुत कम है.
भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने जलवायु लक्ष्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की भी पुष्टि की, लेकिन अपने नागरिकों पर ज्यादा बोझ डालने के खिलाफ भी सचेत किया. भारत ने कहा, अपने नागरिकों पर बोझ डालने की भी हमारी एक सीमा है. भारत ने कहा कि न के बराबर उत्सर्जन करने वाले देशों से जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए समान बोझ उठाने की अपेक्षा करना अन्यायपूर्ण है। इसके अलावा विकासशील देशों के दायित्व दो महत्वपूर्ण पहलुओं – जलवायु वित्त और जलवायु न्याय – की पूर्ति पर निर्भर करते हैं.
भारत का जलवायु परिवर्तन में कितना योगदान?
भारत ने कहा कि, वैश्विक जनसंख्या का लगभग 17.8 प्रतिशत हिस्सा भारत में रहता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन में इसका योगदान 4 प्रतिशत से भी कम है. भारत के अनुसार विकसित देशों की तरफ से किए गए वादे के अनुसार वित्तीय, तकनीकी समर्थन नहीं मिलने के बावजूद, वह पेरिस समझौते के तहत अपने निर्धारित राष्ट्रीय योगदान (एनडीसी) के लिए प्रतिबद्ध है.
भारत ने कहा कि विकसित देशों को 2050 से पहले ही कार्बन उत्सर्जन स्तर को नेट जीरो करके एक मिसाल पेश करनी चाहिए. यह सुनवाई प्रशांत द्वीप देशों और वानुअतु के वर्षों के अभियान का नतीजा है, जिसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव के तहत आईसीजे से राय मांगी गई है. अगले दो हफ्ते में छोटे द्वीप राष्ट्रों और बड़े उत्सर्जकों समेत 98 देश अपने विचार इस में पेश करेंगे.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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