दुनियां – बात केवल दिल्ली की नहीं, भारत के किसी भी शहर की हवा साफ नहीं! लैंसेट की रिपोर्ट में दावा – #INA

जब भी भारत में प्रदूषण की बात होती है, चर्चा अक्सर दिल्ली तक सिमट जाती है. लेकिन लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ की एक ताज़ा रिसर्च बताती है कि सिर्फ दिल्ली नहीं बल्कि भारत का ऐसा कोई भी शहर नहीं है जिसकी हवा सांस लेने लायक हो.
हालिया रिसर्च के मुताबिक देश भर में प्रदूषण का स्तर इतना खराब है कि भारत में ऐसा कोई इलाका नहीं बचा, जहां हवा का वार्षिक औसत स्तर WHO के मानकों पर खरा उतरता हो.
मानकों पर नहीं खरा नहीं उतरता देश
इस अध्ययन में यहां तक बताया गया है कि भारत की 81.9 फीसदी आबादी ऐसे इलाकों में रहने को मजबूर है जहां की वायु गुणवत्ता का स्तर देश के अपने नेशनल एम्बियंट क्वालिटी स्टैंडर्ड्स (एनएएक्यूएस) पर भी खरा नहीं उतरता है. एनएएक्यूएस को 2009 में लाया गया था और भारत में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि इसे अब अपडेट करने की जरूरत है.
नेशनल एम्बियंट क्वालिटी स्टैंडर्ड्स के मुताबिक भारत में सुरक्षित वायु गुणवत्ता का मतलब होता है पीएम 2.5 के 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पांच माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की सिफारिश करता है. PM2.5, न केवल श्वसन प्रणाली को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है, बल्कि दिल के दौरे और स्ट्रोक के खतरे को भी बढ़ाता है,
ब्लड प्रेशर को भी बढ़ाता है और बच्चों में विकास संबंधी देरी का कारण बनता है.
हर साल हो रही है 15 लाख मौत
नए अध्ययन के मुताबिक पीएम 2.5 के ऊंचे स्तर की वजह से भारत में हर साल 15 लाख लोगों की मौत हो रही है जो कुल मौतों का 25 फीसदी है. अध्ययन के मुताबिक अगर देश में वायु की गुणवत्ता इन मानकों को हासिल कर भी लेती तब भी वायु प्रदूषण के प्रति लंबे एक्सपोजर की वजह से तीन लाख लोग हर साल मर ही जाते
अध्ययन में ये भी सामने आया है कि पीएम 2.5 के स्तर में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की बढ़ोतरी से दूसरे कारणों को मिला कर मौत का खतरा 8.6 फीसदी बढ़ जाता है. देश में इसका औसत स्तर 2019 में अरुणाचल प्रदेश के निचले सुबनसिरी जिले में 11.2 से लेकर 2016 में दिल्ली और गाजियाबाद में 119 तक पाया गया.

Copyright Disclaimer Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing. Non-profit, educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

Table of Contents

सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

Source link

Back to top button
Close
Crime
Social/Other
Business
Political
Editorials
Entertainment
Festival
Health
International
Opinion
Sports
Tach-Science
Eng News