खबर बाजार -Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर से इनवेस्टर्स को कितना डरना चाहिए? – #INA

इंडिया ने 6 मई की रात पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। ऑपरेशन सिंदूर के तहत की गई कार्रवाई से पहुंचे नुकसान के बारे में अभी कनफर्म रिपोर्ट नहीं है। बताया जाता है कि इंडिया के एक्शन में 9 आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया गया। 7 मई को मार्केट्स गिरावट के साथ खुले। लेकिन, जल्द संभलने में कामयाब हो गए। शुरुआती 3-4 घंटों में मार्केट में सीमित दायरे में उतारचढ़ाव देखने को मिला है।
पाकिस्तान के रुख पर निर्भर करेगी स्थिति
बड़ा सवाल यह है कि क्या बड़ी मुश्किल खत्म हो गई है? दरअसल, इंडियन मार्केट्स की चाल सीमा से जुड़ी स्थितियों पर निर्भर करेगी। Bernstein की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडिया और पाकिस्तान के बीच टकराव बढ़ने का वैश्विक असर देखने को मिलेगा। हालांकि, टकराव कितना बढ़ेगा यह पाकिस्तान के जवाबी कार्रवाई पर निर्भर करेगा। पाकिस्तान यह दिखाने की कोशिश करेगा कि उसने भारत के एक्शन का जवाब दे दिया है। पाकिस्तानी मीडिया और सोशल मीडिया के मुताबिक, पाक की कार्रवाई में इंडिया को बड़ा नुकसान हुआ है। लेकिन, इंडियन अफसर्स की तरफ से इन दावों की पुष्टि नहीं हुई है।
पहले ऐसी घटनाओं के बाद आई है तेज रिकवरी
पिछले कुछ सालों की बात की जाए तो ऐसी घटनाओं के बाद मार्केट में तेज रिकवरी देखने को मिली है। उदाहरण के लिए कारगिल की लड़ाई के दौरान मार्केट में रिकवरी में कई दिन का समय लगा। लेकिन, भारतीय आर्म्ड फोर्सेज पर उड़ी और पुलवामा हमलों के बाद मार्केट में तुरंत रिकवरी देखने को मिली थी। दो हफ्ते में बाजार नुकसान से उबर गया था। ज्यादातर एक्सपर्ट्स का कहना है कि इंडिया और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू नहीं होगा।
इंडियन मार्केट्स में नहीं आती है ज्यादा गिरावट
ब्रोकरेज फर्म आनंद राठी की स्टडी के मुताबिक, टकराव के वक्त इंडियन मार्केट्स में औसतन 7 फीसदी गिरावट आती है। मीडियन करेक्शन 3 फीसदी रहता है। अगर 2001 के संसद पर हमले को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कभी इंडियन मार्केट्स में ऐसी घटनाओं से बड़ी गिरावट आई है। आम तौर पर पाकिस्तान से तनाव चरम पर पहुंच जाने पर गिरावट 2 फीसदी से ज्यादा की नहीं आई है। 7 मई को मार्केट में आई गिरावट से भी इसकी पुष्टि होती है।
अप्रैल में इंडियन मार्केट ऑल-टाइम हाई से काफी गिरा था
इंडियन मार्केट्स सितंबर 2024 के अपने ऑल-टाइम हाई से करीब 20 फीसदी गिर गए थे। ऐसे में जियोपॉलिटिकल टेंशन की वजह से मार्केट में उतना ज्यादा करेक्शन आने की उम्मीद नहीं है, जितना पहले लग रहा था। दुनिया के दूसरे देशों में भी टकराव के बाद जल्द रिकवरी देखने को मिली है। पहला विश्वयुद्ध शुरू होने पर फाइनेंशियल मार्केट में डर का माहौल था। इससे स्टॉक्स की कीमतें 30 फीसदी तक क्रैश कर गई थी। युद्ध की वजह से मार्केट्स छह महीनों के लिए बंद रहे। मार्केट ओपन होने पर डाओ जोंस में शानदार तेजी देखने को मिली। यह 2015 में 88 फीसदी से ज्यादा चढ़ा था।
दुनिया के दूसरे स्टॉक मार्केट्स में भी जल्द संभल जाते हैं
दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त भी स्टॉक मार्केट्स में ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिला था। 1939 में पोलैंड पर हिटलर के हमले से मार्केट 10 फीसदी चढ़ा था। लेकिन, मार्केट्स पर सबसे ज्यादा असर पर्ल हार्बर पर जापाने के हमले से पड़ा था। तब अमेरिकी स्टॉक मार्केट्स में 2.9 फीसदी गिरावट आई थी। लेकिन एक महीने से कम समय में मार्केट रिकवर करने में कामयाब हो गया था। 1939 से 1945 में युद्ध खत्म होने के बीच डाओ जोंस में 50 फीसदी उछाल आया था।
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टकराव बढ़ने से रोकने की होती हैं कोशिशें
हाल में हमास के हमलों से 1,300 से ज्यादा इजराइली नागरिकों की मौत हुई थी। लेकिन, अमेरिकी स्टॉक मार्केट्स में 2 हफ्तों में रिकवरी दिखी। हालांकि, इजराइल के प्रमुख सूचकांक में रिकवरी में समय लगा। पहले युद्ध से मार्केट को रिकवर करने में महीनों का समय लगता था। अब मार्केट कुछ ही दिन में रिकवर कर जाता है। आलियांज में इकोनॉमिक एडवाइजर मोहम्मद ए एल एरियन का कहना है कि दो वजहों से मार्केट ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं दिखाता है। पहला, यह माना जाता है कि टकराव ज्यादा नहीं बढ़ेगा। दूसरा, इनवेस्टर्स को यह भरोसा होता है कि केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप करेंगे। इससे उतारचढ़ाव घटेगा।
टकराव बढ़ा तो पाकिस्तान को होगा काफी नुकसान
अभी के मामले में भौगोलिक और समय के लिहाज से यह टकराव सीमित रहेगा। हालांकि, अगर टकराव की स्थिति बनी रहती है तो कमजोर अर्थव्यवस्था वाले पाकिस्तान को गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।
शिशिर अस्थाना
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