खबर फिली – वो फिल्म, जिसके शुरू होते ही सिनेमाघर बन जाते थे मंदिर, चप्पल बाहर उतारकर पिक्चर देखते थे लोग – #iNA @INA

70 के दशक में जब अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र और राजेश खन्ना का दौर हुआ करता था, उस समय किसी ने ये नहीं सोचा होगा कि एक छोटी सी फिल्म इन दिग्गजों की मूवीज को टक्कर देने वाली है. इस फिल्म के शुरुआती रुझान कुछ ऐसे थे कि महज तीन दिन की कमाई देखकर इस मूवी को फ्लॉप मान लिया गया था. दरअसल माना जा रहा था कि उस दौर में माइथोलॉजिकल फिल्मों का ट्रेंड एक दशक पहले ही खत्म हो चुका था, तो ऐसे में उस देवी पर बनी फिल्म को देखने कौन ही आएगा, जिनके बारे में पहले कभी सुना ही न गया हो. पर सिनेमाघरों में लड़खड़ाती इस फिल्म के साथ न जाने कौन सा करिश्मा हुआ कि इसने करोड़ों की कमाई कर डाली.

अब तो आप समझ ही गए होंगे कि आखिर हम किस फिल्म की बात कर रहे हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं 1975 में रिलीज हुई फिल्म ‘जय संतोषी मां’ की. इस मूवी को लेकर लोगों में इस कदर क्रेज था कि लोग झुंड बनाकर इसे देखने के लिए जाते थे और सिनेमाघर हाउसफुल हो जाते थे. कहा जाता है कि ‘जय संतोषी मां’ को हिट कराने में सबसे बड़ा हाथ उस दौर में महिलाओं का था. इसलिए महिलाओं के लिए हर शनिवार को एक अलग शो हुआ करता था.

थिएटर का दरवाजा बंद होते ही मंदिर में बदल जाते थे सिनेमाघर

डायरेक्टर विजय शर्मा की फिल्म ‘जय संतोषी मां’ में अनीता गुहा ने संतोषी माता का किरदार निभाया था. कहा जाता है कि ‘जय संतोषी मां’ को देखने के लिए गांव-देहात के लोग शहरों में आया करते थे. इसीलिए फिल्म के शोज भी बढ़ा दिए गए थे. महिलाओं से जब शहरों के सिनेमा हॉल रोशन होते थे तो कहा जाता है कि थिएटर के दरवाजे बंद होते ही अंदर का नजारा बिल्कुल किसी मंदिर जैसा हो जाता था. फिल्म शुरू होने से पहले आरती होती थी और प्रसाद भी बांटा जाता था. महिलाएं ‘मैं तो आरती उतारूं रे संतोषी माता की’ गाने के लिए आरती की थाल तैयार करती थीं. पर्दे पर फूल उछाले जाते और सिक्के भी फेंके जाते थे.

जूते चप्पल संभालकर एक शख्स ने खूब की कमाई

इस फिल्म में अनीता गुहा के अलावा कनन कौशल, भारत भूषण और आशीष कुमार भी अहम किरदार में नजर आए थे. अन्नू कपूर ने अपने रेडियो चैनल पर एकबार इस फिल्म का जिक्र करते हुए बताया था कि “धार्मिक थीम पर होने के चलते जब भी इस फिल्म को देखने के लिए लोग थिएटर्स में जाते थे तो जूते-चप्पल बाहर ही उतार देते थे. सिर्फ इतना ही नहीं पटना में तो एक शख्स ने जूते चप्पल संभालने को अपनी कमाई का जरिया बना लिया था. एक थिएटर के बाहर उसने जूते चप्पल संभालने के लिए स्टॉल लगाया था और फिल्म के सिनेमाघरों से हटते-हटते उस आदमी की कमाई लगभग 1.70 लाख रुपये हो गई थी.”

इस फिल्म के बाद लोगों ने शुरू किया व्रत

कहा जाता है कि ‘जय संतोषी मां’ फिल्म से पहले लोगों को संतोषी माता के बारे में न तो ज्यादा कुछ मालूम था और ही कोई व्रत रखता था. लेकिन इस फिल्म के बाद संतोषी मां को लेकर लोगों में भक्ति बढ़ गई और लोगों ने संतोषी माता का व्रत रखना शुरू कर दिया. आज भी शुक्रवार को कई महिलाएं संतोषी माता का व्रत करती हैं.


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