खबर फिली – Zakir Hussain: घर के बर्तनों से बनाते थे धुन, 11 साल की उम्र में पिता से सीखा तबला, जीते 3 ग्रैमी अवॉर्ड – #iNA @INA

Ustad Zakir Hussain Health Update: संगीत की दुनिया का बेताज बादशाह जाकिर हुसैन की तबीयत खराब है. उस्ताद जाकिर हुसैन का 73 साल के हैं और उनका इलाज चल रहा है. रिपोर्ट्स की मानें तो उन्हें दिल की बीमारी है. साल 2023 में ही उन्हें संगीत जगत में अतुलनीय योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है. फैंस और शुभचिंतक इस महान तबलावादक की सलामती की दुआएं कर रहे हैं.

डेढ़ की उम्र में पिता ने कान में सुनाई ताल

उस्ताद जाकिर हुसैन को संगीत विरासत में मिली. उनके पिता पहले से ही देश के मशहूर तबलावादकों में से एक थे. वे देश-विदेश में बड़े-बड़े कॉन्सर्ट किया करते थे. जब बेटा हुआ तो डेढ़ दिन के जाकिर के कानों में पिता ने ताल गा दी. बस फिर क्या था, संगीत का परिवार मिला, पिता का आशीर्वाद मिला और वहीं से जाकिर के उस्ताद बनने का आधार तय हो गया. उस समय डेढ़ दिन के जाकिर को दिया आशीर्वाद उनके बेटे को तबले की दुनिया का सबसे बड़ा उस्ताद बना देगा इसका अंदाजा तो खुद उस्ताद अल्लाह राखा को भी नहीं होगा.

घर के बर्तन से बनाते थे धुनें

जाकिर एक्स्ट्राऑर्डिनरी लीग के माने जाते हैं. तबला बजाने वाले तो बहुत होंगे लेकिन जाकिर जैसा कोई नहीं. उनकी उंगलियों में जादू है. बचपन से ही वे अपनी कलाकारी किया करते थे. वे तबले से कभी चलती ट्रेन की धुन निकालते थे तो कभी भी भागते हुए घोड़ों की धुन निकाल कर दिखाते थे. जाकिर हुसैन की खास बात ये थी कि वे संगीत की गहराइयों को अपनी परफॉर्मेंस के जरिए दर्शकों से रूबरू कराकर बनाकर उसमें भी मनोरंजन पैदा कर देते थे. लेकिन इसकी शुरुआत तो उन्होंने घर के बर्तनों से की.

जाकिर हुसैन पर लिखी किताब जाकिर एंड इज तबला ‘धा धिन धा’ में इस बारे में मेंशन किया गया है. किताब के मुताबिक जाकिर हुसैन किसी भी सतही जगह पर तबला बजाने लगते थे. वे इसके लिए सोचते नहीं थे कि सामने वाली चीज क्या है. घर में किचन के बर्तनों को भी उल्टाकर के वो उसपर धुने बनाते थे. इसमें कई बार गलती से भरा बर्तन होता तो उसका सामान अनजाने में गिर भी जाता था.

पिता से सीखा संगीत

उस्ताद जाकिर हुसैन ने बहुत कम उम्र से ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था. खासकर उनका रुझान भी शुरू से तबला सीखने की ओर ही था. क्योंकि ताल और बोलों के बीच ही उनकी तरबीयत हुई और इसी माहौल के बीच वे बड़े हुए. उन्होंने अपने पिता को तबले की धुन पर दुनिया को मोहित करते देखा. साथ ही पिता ही थे जिन्होंने उस्ताद को सबसे पहले तबले पर हाथ बैठाना सिखाया और तबले के साथ संतुलन बनाना सिखाया. इसके बाद तो उस्ताद जाकिर हुसैन ने उस्ताद खलीफा वाजिद हुसैन, कंठा महाराज, शांता प्रसाद और उस्ताद हबीबुद्दीन खान से भी संगीत और तबले के गुण सीखे.

देश के असली भारत रत्न थे जाकिर हुसैन

गुरुओं का आशीर्वाद और जाकिर के समर्पण का ही नतीजा था जो उन्होंने अपने करियर में 3 ग्रैमी अवॉर्ड जीते हैं. उनकी कला सिर्फ देशभर में ही सीमित नहीं रही और दुनियाभर के लोगों को जाकिर हुसैन ने प्रभावित किया. भले ही उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया हो लेकिन फैंस उन्हें भारत रत्न दिलाने की भी सिफारिश करते हैं. फिलहाल सोशल मीडिया पर उनकी सलामती की दुआ मांगी जा रही है.


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