Nation- नई दिल्ली से कालकाजी और ओखला तक… जानें 70 सीटों का A टू Z समीकरण- #NA
राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, वीरेंद्र सचदेवा
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग जारी है. राजधानी की सभी 70 सीटों पर 699 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनकी किस्मत का फैसला एक करोड़ 56 लाख से ज्यादा मतदाता तय करेंगे. आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपने सत्ता को बचाए रखने की कवायद में है, तो बीजेपी और कांग्रेस अपनी वापसी में है. इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और बसपा सहित कई अन्य दल भी चुनाव मैदान में हैं. ऐसे में सभी की निगाहें दिल्ली चुनाव पर लगी हैं, जिसके नतीजे 8 फरवरी को आएंगे.
दिल्ली की 70 सीटों पर 699 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, जिसमें 603 पुरुष और 96 महिला कैंडिडेट हैं. दिल्ली में इस बार ‘किसकी बनेगी सरकार’ का फैसला 1,56,14,000 मतदाता करेंगे, जिसमें 83,76,173 पुरुष और 72,36,560 महिला हैं, जबकि अन्य थर्ड जेंडर 1,267 वोटर हैं. इस बार कुल 13,033 मतदान केंद्रों वोटिंग की व्यवस्था की गई है.
दिल्ली में किस दल के कितने उम्मीदवार?
दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सभी 70 सीटों पर अपने-अपने प्रत्याशी उतार रखे हैं. बीजेपी दिल्ली की 68 सीट पर चुनाव लड़ रही है और दो सीटों पर उसके सहयोगी दल किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें एक सीट पर जेडीयू और एक सीट पर चिराग पासवान की एलजेपी (आर) के उम्मीदवार मैदान में हैं. जेडीयू बुराड़ी सीट पर तो एलजेपी (आर) देवली सीट पर चुनाव लड़ रही है.
बसपा दिल्ली की 70 सीटों में से 69 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. बसपा ने बाबरपुर सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM दो सीटों पर चुनाव लड़ रही, जिसमें एक सीट मुस्तफाबाद और दूसरी ओखला सीट है. इसके अलावा अजित पवार की एनसीपी ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा है. सीपीआई ने 6 सीट, तो सीपीएम दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है. सीपीआई (माले) ने भी दिल्ली के दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.
दिल्ली में किसका क्या दांव पर लगा हुआ है?
दिल्ली से आम आदमी पार्टी की सियासी लॉन्चिंग हुई और पहली ही चुनावी बाजी में दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही. 2013 से लेकर 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब रही है. अरविंद केजरीवाल पहली बार कांग्रेस के समर्थन से भले ही मुख्यमंत्री बने हों, लेकिन उसके बाद दिल्ली में विपक्ष का सफाया कर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई. दिल्ली के विकास मॉडल के नाम पर ही आम आदमी पार्टी ने पंजाब की सत्ता अपने नाम की, तो गोवा और गुजरात में खाता खोलने में कामयाब रही.
आम आदमी पार्टी ने 2013 चुनाव में 28 सीटें जीती थीं, तो 2015 में 67 सीट पर जीत का परचम फहराया था. इसके बाद 2020 के चुनाव में बीजेपी 62 सीटें जीतने में सफल रही है. पिछले दो चुनाव में आम आदमी पार्टी ने विपक्ष का पूरी तरह सफाया कर दिया है, लेकिन इस बार की सियासी स्थिति काफी अलग है. आम आदमी पार्टी ने 2020 में जीते 62 विधायकों में से 36 को ही चुनावी मैदान में उतारा है और 26 का टिकट काटा या फिर पार्टी छोड़कर चले गए हैं. दिल्ली के दम पर ही आम आदमी पार्टी का सियासी आधार टिका हुआ है, जिसके लिए केजरीवाल ने पूरी ताकत लगा दी है.
बीजेपी और कांग्रेस की क्या उम्मीद लगी?
बीजेपी दिल्ली की सियासत में सिर्फ एक ही बार 1993 में सरकार बना सकी है. 1998 में सत्ता से बेदखल होने के बाद आजतक वापसी नहीं कर सकी है. 27 साल से दिल्ली में सत्ता का वनवास बीजेपी झेल रही है. इस बार बीजेपी ने जिस तरह से अरविंद केजरीवाल के चक्रव्यूह रचा है और उसके बाद भी जीत नहीं पाती तो दिल्ली की सियासत में फिर उसकी वापसी करना मुश्किल ही हो जाएगा. बीजेपी ने अपने तमाम दिग्गज नेताओं को इस बार चुनावी मैदान में उतारा है, तो पीएम मोदी से लेकर अमित शाह सहित तमाम पार्टी नेताओं ने पूरी ताकत झोंक दी है.
दिल्ली में बीजेपी लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहती है, लेकिन विधानसभा की चुनावी बाजी हार जाती है. पिछले दो चुनाव से यही वोटिंग ट्रेंड देखने को मिलता है. 2015 में बीजेपी सिर्फ 3 सीटें ही दिल्ली में जीत सकी थी और 2020 में 8 सीटें उसके खाते में गई थीं. पिछले दस साल से डबल डिजिट में भी नहीं पहुंची, जबकि दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए बीजेपी को कम से कम 36 सीटें चाहिए होंगी.
दिल्ली में कांग्रेस का सियासी आधार पूरी तरह से खत्म हो गया है और इस बार चुनाव में वह वापस नहीं पाती है तो उसका सियासी वजूद ही खत्म हो जाएगा. दिल्ली की सत्ता पर 15 साल तक काबिज रहने के बाद भी कांग्रेस 2015 और 2020 में खाता नहीं खोल सकी. कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में पूरा दम लगा दिया है. दिल्ली के सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. इस बार दलित और मुस्लिम बहुल सीटों पर जिस तरह से कांग्रेस ने फोकस किया है और राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में केजरीवाल को निशाने पर रखा है, उसके चलते समझा जा सकता है कि दिल्ली का चुनाव कांग्रेस के लिए कितना अहम है.
दिल्ली की इन सीटों पर सभी की निगाहें
नई दिल्ली सीट पर सबसे ज्यादा 23 उम्मीदवार मैदान में हैं, जबकि सबसे कम उम्मीदवार कस्तूरबा नगर और पटेल नगर सीट पर पांच-पांच हैं. नई दिल्ली विधानसभा सीट इस चुनाव की सबसे हॉट सीट बनी हुई है. यहां से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के टिकट पर चौथी बार मैदान में हैं, उनके सामने बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और कांग्रेस ने पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित किस्मत आजमा रहे हैं.
मनीष सिसोदिया इस बार जंगपुरा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस ने फरहाद सूरी और बीजेपी ने कांग्रेस से आए तरविंदर सिंह मारवाह को उतारा है, जिसके चलते मुकाबला काफी रोचक हो गया. इसके बाद कालकाजी सीट पर निगाहें लगी हुई हैं. मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ कालकाजी सीट पर कांग्रेस ने अलका लांबा और बीजेपी ने रमेश बिधूड़ी को प्रत्याशी बनाकर जबरदस्त तरीके से घेराबंदी की है.
ग्रेटर कैलाश विधानसभा सीट से सौरभ भारद्वाज चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी से शिखा राय और कांग्रेस से गर्वित सिंघवी मैदान में हैं. बल्लीमरान सीट पर इमरान हुसैन चुनाव लड़ रहे हैं, जिनके खिलाफ कांग्रेस से हारुन यूसुफ और बीजेपी से कमल बागड़ी मैदान में हैं. मंत्री गोपाल राय बाबरपुर सीट से हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैं तो बीजेपी से अनिल वशिष्ठ और कांग्रेस से हाजी इशराक चुनाव लड़ रहे हैं. मुस्तफाबाद सीट पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं, यहां से दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन AIMIM से चुनाव लड़ रहे हैं, तो बीजेपी से मोहन बिष्ट, कांग्रेस से अली मेंहगी और आम आदमी पार्टी से आदिल खान चुनाव लड़ रहे हैं.
सुल्तानपुर माजरा सीट पर आप के मुकेश अहलावत के खिलाफ कांग्रेस से जय किशन और बीजेपी से कर्म सिंह कर्मा मैदान में हैं. नागलोई जाट सीट पर आम आदमी पार्टी के रघुविंदर शौकीन चुनाव लड़ रहे हैं, तो बीजेपी से पूर्व विधायक मनोज शौकीन और कांग्रेस से रोहित चौधरी चुनावी मैदान में हैं. अरविंद केजरीवाल के करीबी माने जाने वाले ओखला के विधायक अमानतुल्लाह खान के लिए भी इस बार काफी मुश्किल राह हो गई है. अमानतुल्लाह खान हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैं, लेकिन बीजेपी ने मनीष चौधरी, कांग्रेस ने अरीबा खान, तो ओवैसी ने शिफाउर रहमान को उतारकर उनकी राह में कांटे बिछा दिए हैं.
क्या बदलेगा दिल्ली का सियासी गेम?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है. 2020 में 17 सीटों पर हार जीत का अंतर 10 हजार वोटों से कम का था, जिसमें 13 सीटें आम आदमी पार्टी ने जीती थीं और 4 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. इस बार कड़ी टक्कर में अगर कुछ वोट इधर से उधर हुए तो सारा सियासी गेम ही बदल जाएगा, जिसके चलते आम आदमी पार्टी ने सभी कम मार्जिन से जीती सीटों के विधायकों की जगह नए चेहरे उतारे हैं. बीजेपी ने भी अपने दो सीटों पर इस बार नए चेहरे उतारे हैं.
दिल्ली में 18 फीसदी वोटर्स स्विंग वोटर्स, जो विधानसभा में अलग और लोकसभा चुनाव में अलग वोटिंग करते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की 7 सीटों पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ी थी. आम आदमी पार्टी ने 4 और कांग्रेस ने 3 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन बीजेपी सभी सातों सीटें जीतने में कामयाब रही.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी 54.7 फीसदी वोट, जबकि कांग्रेस-आप गठबंधन को 43.3 फीसदी वोट मिले था, लेकिन विधानसभा चुनाव में सभी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी को दिल्ली की 52 विधासभा सीटों पर बढ़त मिली थी, जबकि आम आदमी पार्टी को दस और कांग्रेस को 8 सीटों पर बढ़त मिली थी.
हालांकि, दिल्ली का वोटिंग पैटर्न 2019 और 2014 के लोकसभा चुनाव में भी दिखे थे, लेकिन विधानसभा चुनाव नतीजे आए तो पूरी तरह उलटा था. आम आदमी पार्टी क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही, जिसके पीछे 18 फीसदी स्विंग वोटर की भूमिका थी. दिल्ली में हर बार स्विंग वोटर ही सत्ता की दशा और दिशा तय करते हैं.
दिल्ली में जो मतदाता लोकसभा में बीजेपी को जिताते हैं, तो वो विधानसभा में आम आदमी पार्टी के साथ हैं. लोकसभा की तरह ही वोटिंग पैटर्न दिल्ली विधानसभा चुनाव में रहता है, तो बीजेपी दिल्ली में सत्ता का वनवास तोड़ने में कामयाब रहेगी और अगर विधानसभा में स्विंग वोटर अपना मिजाज बदल जाता तो फिर गेम बदल जाएगा.
दिल्ली की सभी विधानसभा सीटों की लिस्ट यहां देखें
दिल्ली विधानसभा चुनाव के सभी उम्मीदवारों की लिस्ट यहां देखें
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