Maharashtra में 'सत्ता का खेल' सभी राज्यों से क्यों है अलग? 2019 के बाद बदला समीकरण #INA

Maharashtra Elections: 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में जो हुआ, शायद ही किसी ने इसकी कल्पना की होगी. जिस तरह से सरकार बनाने के लिए प्रदेश में सत्ता का खेल हुआ. उसे देखकर हर कोई हैरान रह गया. ऐसी राजनीति किसी राज्य में इससे पहले नहीं देखी गई होगी. 2019 में बीजेपी और शिवसेना साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़े और जीत दर्ज की, लेकिन उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. 

5 सालों में महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा फेरबदल

जिसके लिए बीजेपी तैयार नहीं हुई. मतभेद इतना बढ़ गया कि शिवसेना ने कांग्रेस के साथ मिलकर प्रदेश में सरकार बना ली. कांग्रेस के साथ शिवसेना का गठबंधन राजनीतिक विशेषज्ञों की भी सोच से पड़े थी, लेकिन कहते हैं ना कि राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है. कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर ठाकरे ने करीब ढाई साल तक प्रदेश में सरकार चलाई. फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि फिर से लोग हैरान रह गए. शिवसेना दो गुटों में विभक्त हो गई.

जनता का भरोसा डगमगाया

उद्धव ठाकरे के करीबी एकनाथ शिंदे 41 विधायकों के साथ अलग हो गए और बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया. शिवसेना के दो गुटों में विभक्त होने के कुछ समय बाद एनसीपी भी दो गुटों में विभक्त हो गई. चाचा-भतीजे की तकरार ने महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल मचाकर रख दिया. एनसीपी दो गुटों में बंट गई और महाराष्ट्र में अलग सियासी खेल देखने को मिला. बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) ने मिलकर महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाई और एकनाथ शिंदे प्रदेश के नए सीएम बने. 

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शिवसेना और एनसीपी में विभाजन

इन पांच सालों में ऐसी पार्टियां एक साथ आए, जिससे ना सिर्फ राजनीति विशेषज्ञ बल्कि आम जनता भी सोच में पड़ गए. महाराष्ट्र की जनता में पार्टियों को लेकर भरोसा कम देखा जा रहा है. इन पांच सालों में पार्टियों ने जिस तरह से राजनीति को चमकाने के लिए अलग-अलग विचारधारा होने के बाद भी एक साथ आ गए. इससे जनता किसी भी पार्टी पर भरोसा नहीं कर पा रही है. हालांकि शिवसेना के दो गुटों में विभक्त होने के बाद शिंदे और ठाकरे और एनसीपी के विभक्त होने के बाद शरद पवार और अजित पवार ने पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह के लिए चुनाव आयोग के पास गए. 

महायुति या महाविकास अघाड़ी?

चुनाव आयोग ने शिंदे और अजित पवार को पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह दिया. इस फैसले को ठाकरे और पवार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हालांकि अब तक इस पर फैसला नहीं आया है. यहां तक कि ठाकरे और शरद पवार दोनों ही बागी नेताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए और उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर को फैसला करने के लिए कह दिया. राहुल नार्वेकर ने भी महायुति के पक्ष में फैसला सुनाया. अब देखना दिलचस्प होगा कि 20 नवंबर को प्रदेश में मतदान होने वाला है और 23 नवंबर को चुनाव के नतीजे घोषित किए जाएंगे. देखना दिलचस्प होगा कि इस बार जनता किस गठबंधन पर अपना भरोसा जताती है, महायुति या महाविकास अघाड़ी?


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