Political – बंगाल में BJP-कांग्रेस के खिलाफ जीती थीं ममता, दिल्ली में केजरीवाल क्यों हुए फेल? जानें वजह- #INA
अरविंद केजरीवाल, ममता और पीएम मोदी.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जो कर पाईं वो अरविंद केजरीवाल दिल्ली में नहीं कर पाएं. दिल्ली में तीसरी बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी को बुरी तरह से पराजय मिली है और भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला है. दिल्ली में भाजपा कमल खिलाने में सफल रही है, लेकिन भाजपा ने यही सपना पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव में देखा था और राज्य की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के खिलाफ पूरी ताकत से चुनाव लड़ा था, हालांकि ममता बनर्जी नंदीग्राम विधानसभा सीट से हार गई थीं, लेकिन उनकी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, बड़े बहुमत के साथ बहुमत हासिल की और ममता बनर्जी के नेतृत्व में तीसरी बार पश्चिम बंगाल में मां, माटी, मानुष की सरकार बनी.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल का चुनाव अकेले लड़ा था. तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस, भाजपा और माकपा के खिलाफ लड़ाई लड़कर जीत हासिल की थी और उस जीत को उसने 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बरकरार रखा था. इसी तरह से आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा, भाजपा और कांग्रेस के साथ उसका मुकाबला था, लेकिन केजरीवाल फेल हो गये और लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली की सभी सात सीटों पर बीजेपी जीती और विधानसभा चुनाव में भी केजरीवाल की हार हुई.
आइए जानते हैं कि वो क्या वजह थी, जिसकी वजह से ममता बनर्जी तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रही और केजरीवाल को पराजय का सामना करना पड़ा.
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केजरीवाल का मुफ्त की रेवड़ी का भी नहीं चला दांव
राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय ममता बनर्जी की जीत और केजरीवाल के पराजय की वजह बताते हैं कि चाहे बंगाल की राजनीति हो या फिर दिल्ली, दोनों कि सियासत मुफ्त की रेवड़ी पर चलती हैं. ममता बनर्जी लक्ष्मी भंडार योजना से महिलाओं को हर माह 1000 रुपए दे रही हैं. छात्र-छात्राओं को साइकिल से लेकर लड़कियों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं. उसी तरह से दिल्ली में भी केजरीवाल ने मुफ्त की रेवड़ी फ्री में पानी, बिजली में सब्सिडी, बसों में महिलाओं की मुफ्त यात्रा आदि का ऐलान किया था, लेकिन बंगाल और दिल्ली में अंतर समझना होगा.
ग्रामीण वोटर्स में ममता की पैठ, शहरी मतदाता केजरीवाल से निराश
उन्होंने कहा कि बंगाल में बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी है, जबकि दिल्ली के वोटर शहरी हैं. बंगाल में शहरी इलाकों में बीजेपी ने भी अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन ग्रामीण वोटर्स से हर समय ममता बनर्जी का साथ दिया है. शहरी वोटरों ने मुफ्त की रेवड़ी की जगह दिल्ली के विकास को तरजीह दी और यही केजरीवाल पिछड़ गये हैं. दिल्ली की जनता ने दिल्ली के विकास को महत्व दिया. प्रदूषण के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि यमुना की गंदगी का मुद्दा आदि ने दिल्ली की जनता को प्रभावित किया. इसी तरह से केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप दिल्ली के हाईक्लास वोटर्स पचा नहीं पाए. चुनाव से ठीक पहले अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ अभियान शुरू किया गया. इससे यमुना के पार रहने वाले बड़ी संख्या में बंगालियों और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों ने भाजपा को वोट दिया, क्योंकि वे अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे. उन्हें लगा कि केजरीवाल उन्हें सुरक्षा नहीं दे पाएंगे. इसलिए उनका एक वर्ग खुलकर भाजपा का समर्थन किया और यही बात मुस्लिम वोटर्स को लेकर भी हुई.
ममता के साथ रहे मुस्लिम वोटर्स, दिल्ली में बंटे
पार्थ मुखोपाध्याय कहते हैं कि जबकि बंगाल में ममता बनर्जी चाहे मुस्लिम हो या फिर बांग्लादेश से आये प्रवासी या भी सीएए या फिर एनआरसी का मुद्दा हो, ममता बनर्जी केंद्र सरकार के खिलाफ खड़ी रहीं और मुस्लिमों और बांग्लादेश से आकर बसे लोगों को यह आश्वास्त करने में सफल रही कि राज्य में उनकी सरकार बन रही है और केंद्र में चाहे बीजेपी की ओर सरकार क्यों न हो. उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक दीपक रस्तोगी कहते हैं कि मुस्लिम वोट की यह खासियत है कि प्राय उस ओर ही जाता है, जिनके जीतने की ज्यादा संभावना रहती है और पश्चिम बंगाल के मुस्लिमों ने यह देखा कि ममता बनर्जी उन्हें सुरक्षा दे पाएंगी और बीजेपी के खिलाफ लड़ पाएगी. इस कारण बंगाल के मुस्लिमों ने एकजुट होकर ममता बनर्जी को वोट दिया. कांग्रेस को मुस्लिमों का वोट नहीं मिला, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों के एक वर्ग का वोट कांग्रेस को मिला. इससे मुस्लिम वोट विभाजित हुए. दिल्ली में कई विधानसभा की सीटें ऐसी हैं कि जिन पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को लगभग उतने ही वोट मिले हैं, जितने वोट से आप के उम्मीदवार पराजित हुए हैं.
ममता ने बनाया कैडर, केजरीवाल ने खो दिया विश्वास
दीपक रस्तोगी कहते हैं कि ममता बनर्जी ने लेफ्ट के खिलाफ लंबे आंदोलन से एक विश्वासनीयता बनाई है. ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस का अपना कैडर है, वह कैडर सदा ही ममता बनर्जी के साथ रहा है. भाजपा की तरह ही ममता बनर्जी का कैडर है, जो उसका समर्थन करता है. इस कैडर ने ममता बनर्जी का साथ नहीं छोड़ा है, हालांकि चुनाव से पहले कई बड़े नेता टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये थे, लेकिन पार्टी के कैडर ममता बनर्जी के साथ ही रहे.
दीपक रस्तोगी ने कहा कि जबकि केजरीवाल के ज्यादातर वोटबैंक कांग्रेस के थे. केजरीवाल की एंट्री राजनीति बदल देने के वादे के साथ हुई थी, लेकिन केजरीवाल उन वादों को पूरा नहीं सके. उन्होंने खुद ही स्वीकार किया था कि बीजेपी से जिस तरह से रोड़े अटकाये वो अपने वादे नहीं पूरा कर सके.
उन्होंने कहा कि पब्लिक को यह लगा कि केवल वादों से नहीं होगा. नया काम नहीं किया. कांग्रेस के काम को आगे बढ़ाया, जो काम शीला दीक्षित का ब्रेन चाइल्ड ही था. कांग्रेस नहीं भुना पाई थी. मुफ्त बिजली और पानी इनका धारदार हथियार है.. भाजपा ने यह वादा कर दिया कि दूसरे राज्यों में दे रही है.
उन्होंने कहा कि केजरीवाल का कैडर ही नहीं है. ममता का कैडर साथ है. वहीं, केजरीवाल ममता की तरह अपना कैडर नहीं बना सके. भ्रष्टाचार और शीशमहल के आरोप केजरीवाल पर लगे. उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन ममता पर निजी तौर पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा, हालांकि टीएमसी के कई नेता भ्रष्टाटार के आरोप में जेल तक गए हैं.
बंगाल में BJP-कांग्रेस के खिलाफ जीती थीं ममता, दिल्ली में केजरीवाल क्यों हुए फेल? जानें वजह
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