Political – दिल्ली चुनाव में मायावती का कांशीराम वाला सियासी प्रयोग, क्या बसपा के लिए निकलेगा चुनावी अमृत?- #INA
![Political – दिल्ली चुनाव में मायावती का कांशीराम वाला सियासी प्रयोग, क्या बसपा के लिए निकलेगा चुनावी अमृत?- #INA Political – दिल्ली चुनाव में मायावती का कांशीराम वाला सियासी प्रयोग, क्या बसपा के लिए निकलेगा चुनावी अमृत?- #INA](http://images.tv9hindi.com/wp-content/uploads/2025/01/mayawati-akash-aanand.jpg)
मायावती और आकाश आनंद.
दिल्ली की सियासत में एक समय बसपा नंबर तीन की पार्टी हुआ करती थी. दिल्ली में बसपा के दो विधायक और 14 फीसदी वोट शेयर हुआ करता था, लेकिन अरविंद केजरीवाल के सियासी उदय के बाद बसपा गुम सी हो गई है. बसपा प्रमुख मायावती लंबे समय से बसपा की समय से वापसी की तलाश में है, लेकिन न तो पार्टी दिल्ली में ही कमाल दिखा पा रही है और न ही यूपी सियासत में. ऐसे में मायावती ने दिल्ली चुनाव में बसपा के कायापलट करने के लिए कांशीराम वाला सियासी प्रयोग आजमाया है, जिसमें पार्टी कैडर से जुड़े नेताओं पर पर खास भरोसा जताया है.
बसपा ने दिल्ली चुनाव में इस बार 69 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. बसपा ने टिकट वितरण में इस बार दूसरे दलों से आए नेताओं पर भरोसा जताने के बजाय पार्टी कैडर से जुड़े नेताओं को प्रत्याशी बनाया है. इतना ही नहीं बसपा ने अपने कोर वोट बैंक का खास ख्याल रखते हुए 69 में से 45 कैंडिडेट दलित समाज से दिए है. जिसमें खासकर जाटव समाज पर विश्वास जताया है. इसके अलावा अति पिछड़ी जाति के उम्मीदवार भी ठीक-ठाक है.
दिल्ली चुनाव में कांशीराम का प्रयोग
कांशीराम ने बसपा के गठन के बाद नब्बे के शुरुआती दौर में बसपा ने यूपी की सियासत में ऐसा ही प्रयोग किया था. कांशीराम ने अपने कैडर के नेताओं को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा था. जिसके जरिए बहुजन समाज के बीच सियासी और सामाजिक चेतना जगाने में कामयाब रहे. बसपा के देशभर में सिमटते जनाधार को दोबारा से मजबूत करने के लिए मायावती ने कांशीराम के तर्ज पर दिल्ली के चुनाव में सियासी प्रयोग किया है. जिसके लिए दूसरे दलों से आए हुए नेताओं पर भरोसा जताने के ज्यादा पार्टी कैडर से जुड़े युवा नेताओं पर विश्वास जताया है.
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सामान्य सीटों पर बसपा का दलित दांव
बसपा ने दिल्ली की 69 सीटों से 45 सीट पर दलित समाज से प्रत्याशी दिए हैं. इसमें 12 सीटें दलित समुदाय के रिजर्व वाली हैं जबकि 33 सीटें अन रिजर्व हैं. इस तरह से मायावती ने दिल्ली की 33 जनरल सीटों पर भी दलित समाज को टिकट देकर अपने खिसकते हुए दलित वोटों को जोड़े रखने की कवायद की है.
बसपा के दलित उम्मीदवारों का जातीय विश्लेषण करने पर देखते हैं तो मायावती ने 35 सीटों पर अपने सजातीय जाटव समाज को प्रत्याशी बनाया है. जाटव वोटर बसपा का कोर वोटबैंक माना जाता है और पार्टी जाटव के जरिए अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रही है.
मायावती ने जाटव समाज के अलावा वाल्मीकि और खटीक दलित समाज से भी उम्मीदवार उतारे हैं, जो दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं. इतना ही नहीं बसपा ने इस बार दिल्ली में ज्यादातर युवा नेताओं को टिकट दिया है, जिसमें 40 साल से कम उम्र के 30 से भी ज्यादा प्रत्याशी हैं. इसके अलावा बसपा का कोई उम्मीदवार ऑटो चालक है तो कई गुमटी लगाता है. बसपा प्रमुख मायावती ने एक तीर से कई निशाना साधने की कवायद की है.
मायावती ने एक तीर से कई निशाना साधा
बसपा प्रमुख मायावती ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह से पार्टी कैडर और युवा नेताओं को टिकट देकर उतारा है. उसके पीछे एक सोची समझी रणनीति है. बसपा एक तरफ अपने कैडर के नेताओं को टिकट देकर उस आरोप को काउंटर करने की कोशिश की है, जिसमें उस पर पैसे देकर टिकट देने का आरोप लगता है. इसके अलावा मुस्लिम बहुल सीटों पर दलित उम्मीदवार उतारकर बीजेपी के बी-टीम वाले नैरेटिव को तोड़ने की कवायद मानी जा रही है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में रिजर्व के साथ जिस तरह से सामान्य सीटों पर दलित प्रत्याशी उतारे हैं, उसके जरिए दिल्ली में दलित समाज के विश्वास को दोबारा से हासिल करने की है. दिल्ली में 1998 से बाद से लगातार 2008 तक बढ़ती रही. 2008 के चुनाव में बसपा के दो विधायक और 14 फीसदी वोट शेयर हो गया था, लेकिन केजरीवाल के सियासी उदय के बाद बसपा पूरी तरह साफ हो गई. दलितों का वोट भी बसपा से छिटककर आम आदमी पार्टी के साथ चला गया. इस तरह मायावती की कोशिश इस बार अपने दलित मतदाताओं के विश्वास को जीतने की है.
मायावती ने दिल्ली चुनाव में जिस तरह से युवाओं को टिकट देकर मैदान में उतारा है. उसके पीछे नगीना सीट से सांसद बने चंद्रशेखर आजाद के बढ़ते सियासी प्रभाव को काउंटर करने की है. चंद्रशेखर आजाद के सांसद बनने के बाद दलित युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ी है और लगातार उसे लुभाने की कोशिश कर रहे. यही वजह है कि बसपा युवाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है ताकि चंद्रशेखर की तरफ जा रहे युवाओं को रोका जा सके. दिल्ली में बसपा के 69 में से 35 उम्मीदवार 45 साल से कम के हैं.
बसपा की दिल्ली में सोशल इंजीनियरिंग
बसपा ने दिल्ली में दलित समाज पर सबसे ज्यादा भरोसा जताया है, लेकिन उसके साथ एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने का दांव भी चला है. बसपा ने जाट, गुर्जर, ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, पंजाबी और ओबीसी जातियों से भी उम्मीदवार उतारे हैं. सीट के जातीय मिजाज और सियासी समीकरण के लिहाज से बसपा ने उम्मीदवार उतारे हैं. बसपा ने भले ही मुस्लिम बहुल किसी भी सीट पर किसी भी मुस्लिम को टिकट न दिया हो, लेकिन पांच सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. इस तरह बसपा ने अपने कोर वोटबैंक दलित समाज के साथ मुस्लिम, गुर्जर और जाट के समीकरण को बनाने की कवायद की है.
मायावती के सिपहसालार के कंधों पर भार
दिल्ली चुनावों की जिम्मेदारी मायावती ने राष्ट्रीय समन्वयक और अपने भतीजे आकाश आनंद को सौंपी है, जो दिल्ली में तीन चुनावी रैली कर चुके हैं. इसके अलावा मायावती ने दिल्ली को पांच जोन में बांटकर अपने वरिष्ठ नेताओं को लगा रखा है. सुदेश आर्या, सीपी मसंह, धर्मवीर अशोक, रणधीर बेनीवाल और सुजीत सम्राट जैसे नेताओं को सौंपी है. इन्हीं पांचों नेताओं के कंधे पर पार्टी उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार अभियान की योजना बनाने के साथ-साथ नुक्कड़ सभाएं और घर-घर जाकर वोट मांगने की जिम्मेदारी है. मायावती पिछले 7 दिनों से दिल्ली में डेरा जमाए हुए है और हर दिन बारीकी के साथ मंथन कर रही है, लेकिन अभी तक चुनाव प्रचार में नहीं उतर सकीं.
बसपा के लिए क्यों कठिन दिल्ली की राह
मायावती के तमाम कोशिशों के बाद भी बसपा के लिए दिल्ली चुनाव की राह काफी कठिन और मुश्किलों भरी नजर आ रही. कांग्रेस से लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होता नजर आ रहा है. तीनों ही दलों की नजर दलित वोट बैंक पर लगी हुई है. बीजेपी ने इस बार 14 दलित, कांग्रेस ने 13 दलित और आम आदमी पार्टी ने 12 दलित प्रत्याशी उतारे हैं. बीजेपी और कांग्रेस ने रिजर्व सीटों के अलावा सामान्य सीट पर भी दलित दांव खेला है.
दिल्ली में बसपा जिस वोटबैंक के जरिए राजनीतिक बुलंदी चढ़ने की कोशिश कर रही थी, वो लगातार खिसका है. दलित वोटर बीजेपी से लेकर आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ खड़ा है. दलितों का बड़ा तबका आम आदमी पार्टी का कोर वोट बैंक बन चुका है. केजरीवाल उन्हें साधे रखने के लिए तमाम जतन कर रहे हैं.
2020 में बसपा के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी और पार्टी का वोट एक फीसदी से भी नीचे चला गया था. दिल्ली की 16 सीटों पर बसपा को एक हजार से ज्यादा वोट मिले थे, बाबरपुर सीट पर उसे दस हजार से अधिक वोट मिला था. ऐसे में मायावती के लिए दिल्ली के चुनाव में बसपा की सियासी नैया पार लगाना आसान नहीं है?
दिल्ली चुनाव में मायावती का कांशीराम वाला सियासी प्रयोग, क्या बसपा के लिए निकलेगा चुनावी अमृत?
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