MP News: जहां डाकुओं का होता था ‘राज’, वहां की गजक भी खास; चंबल की ये मिठाई बना देगी दीवाना, कैसे बनती है ये? – INA
मध्य प्रदेश का चंबल…जब यह नाम कोई लेता है तो जेहन में बस दो ही शब्द कौंधते हैं, वो हैं…डाकू और गजक मिठाई…एक नाम खौफ पैदा करता है तो दूसरा मिठास भर देता है. आज चंबल की इसी खास गजक की कहानी बताएंगे. यह कैसे बनती है ये भी बताएंगे. गजक बनाने में ग्वालियर और मुरैना के कारीगरों को महारत हासिल है. यही वजह है कि अब यह गजक देश के अलावा विदेशों में भी अपनी पहचान बना रही है. इसे बनाने वाले कई कारखाने ऐसे भी हैं, जहां एक दो नहीं बल्कि चार पीढ़ियों से सिर्फ गजक ही बनाई जा रही है. लेकिन चंबल की यह खास गजक कैसे बनाई जाती है, जिसका पूरा देश दीवाना है.
यूं तो गजक 12 महीने मिलती है, लेकिन खास तौर पर इसे लोग सर्दियों में ज्यादा पसंद करते हैं. यही वजह है कि ग्वालियर और मुरैना में इन दिनों जब आप गजक बनाने वाले गली मोहल्लों से गुजरेंगे, तो तिल के ऊपर लकड़ी का हथौड़ा चलाते ठक ठक आवाज आपको आसानी से सुनाई देगी. गजक को बनाने के लिए सबसे पहले सफेद तिल को साफ किया जाता है. उसके बाद एक ओर बड़ी कढ़ाई में तिल को भूना जाता है. दूसरी ओर एक कारीगर की टीम गुड़ की चाशनी बनाने का काम करती है.
ऐसे बनाई जाती है गजक
चाशनी बनाने के बाद उसे दीवार में लगी एक खूंटी पर पूरी ताकत से खींचा जाता है. लंबे-लंबे रस्सियों जैसे तार बनाए जाते हैं, जब चाशनी पूरी तरह से खींचकर सफेद से गुलाबी हो जाती है, तो फिर इसमें तिल मिलाया जाता है. आखरी में चाशनी में मिले हुए तिल की जमीन पर फैला कर लकड़ी के बड़े हथौड़ों से जमकर कुटाई की जाती है. फिर तैयार गजक को छोटी छोटी पट्टियों में काटकर बेचने के लिए रख दिया जाता है.
सालों से चल रहा काम
ग्वालियर में कई प्रसिद्ध गजक बनाने वाले हैं. शहर के हृदय स्थल महाराज बाड़े पर पुराने समय से चली आ रही खंबे वालों की गजक पुराने लोगों को याद आती है. पिछले कई दशकों ये दुकान चलती आ रही है. ये दुकान भले ही छोटी है, लेकिन इस पर बनने वाली गजक की मांग विदेशों तक है. दुकान के संचालक हेमंत शर्मा बताते हैं कि पिछले कई सालों से वह गजक बेच रहे हैं और उनकी पुरानी पीढ़ी से लेकर अब नई पीढ़ी भी इस कारोबार से जुड़ी हैं. खास तौर पर यहां चौड़ी पट्टी की गजक बनाई जाती है, जो कहीं और देखने नहीं मिलेगी.
सर्दियों में खाई जाती है
ज्यादातर लोग सर्दियों में ही गजक खाते हैं और सिर्फ खाते ही नहीं, बल्कि मेहमानों के लिए भी गजक ले जाते हैं. शहर की मोहिनी गजक का स्वाद भी बीते कई सालों से लोगों की जुबान पर बढ़ चढ़कर बोल रहा है. मोहिनी गजक के संचालक अनिकेत पाटिल का कहना है कि तिल और गुड़ से बनी गजक सर्दी लगने से बचाती है और यह शरीर में गर्माहट लाती है. बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों तक को गजक का सेवन करना चाहिए. साथ ही ये इम्यूनिटी को भी डेवलप करती है. क्योंकि गुड़ और तिल का सेवन पुराने जमाने से ही सेहतमंद माना जाता है. ऐसे में हमारी कोशिश रहती है कि साफ सफाई के साथ बेहद गुणवत्ता युक्त क्वालिटी की गजक लोगों के सामने पेश करें और इसमें सफलता भी मिली है. आज हमारी गजक देशभर के कोने-कोने तक जा रही है और लोग इसे पसंद कर रहे हैं.
कारीगरों ने क्या कहा?
स्वादिष्ट गजक बनाने के लिए एक माहिर कारीगरों की जरूरत होती है. तभी गजक का असली स्वाद निखर कर आता है. गजक के बारे में कारीगरों का कहना है, कि सबसे बड़ी कारीगरी चाशनी बनाने में ही दिखानी होती है, क्योंकि अगर चाशनी कम या ज्यादा पक जाए तो गजक ना तो खस्ता बनेगी और ना ही स्वादिष्ट बनेगी. गजक बनाने में अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ती है. क्योंकि यह किसी एक आदमी का काम नहीं बल्कि पूरा टीमवर्क होता है, जिसे मिनटों के अंदर अपना काम पूरा करना होता है.
अलग-अलग होती है कीमत
ग्वालियर में गजक की कई वैरायटी देखने को मिलती हैं, जिसमें खास तौर पर सादा गुड की खस्ता गजक, ड्रायफ्रूट गजक, तिल की बर्फी, ड्रायफ्रूट रोल, तिल के लड्डू, तिल के चिप्स, रेवड़ी, ड्राई फ्रूट तिल मावा बाटी समेत आज आधुनिक युग में तिल, गुड में चॉकलेट मिलाकर कई तरह की नई वैरायटी बनाई जा रही हैं. अब शुगर फ्री तिल गजक भी उपलब्ध है. ग्वालियर में इन सभी गजकों कि अलग-अलग कीमत है. जैसे खस्ता गजक 250 रुपए से 600 तक उपलब्ध हो जाएगी. खास तौर पर सर्दियों और मकर संक्रांति पर्व पर इसकी बहुत डिमांड रहती है और गजक का सालाना व्यापार 700 करोड़ तक होता है.
जहां डाकुओं का होता था ‘राज’, वहां की गजक भी खास; चंबल की ये मिठाई बना देगी दीवाना, कैसे बनती है ये?
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