MP News: ‘आपके केस की सुनवाई हम नहीं कर सकते’… पति-पत्नी से जज साहब ने ऐसा क्यों कहा? – INA

मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित फैमिली कोर्ट में तलाक का अजीब मामला आया है. यहां एक महिला ने अपने पति पर देर से घर आने का आरोप लगाते हुए तलाक अर्जी लगाई तो पति ने भी खाना ठीक से नहीं बनाने की बात कहते हुए केस फाइल कर दिया. चूंकि यह दंपत्ति जैन धर्म से हैं और फैमिली कोर्ट में इस तरह की मामलों की सुनवाई हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत होता है. ऐसे में कोर्ट ने इन दोनों की अर्जी खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि हिन्दू धर्म के नियमों के तहत जैन धर्म के लोगों के संबंध में निर्णय नहीं लिया जा सकता.

अपना फैसला सुनाते हुए फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश ने स्थिति भी स्पष्ट की.कोर्ट की यह टिप्पणी इस समय सुर्खियों में है. दरअसल आपसी विवाद की वजह से महिला और उनके पति दोनों ही एक दूसरे से तलाक लेने पर राजी हो गए थे. अब बस तलाक अर्जी पर कोर्ट की मुहर का इंतजार था. इसके लिए दोनों पक्ष के वकीलों ने कोर्ट में अपने अपने तर्क रखे. कहा कि वैवाहिक विवादों के निपटारे के लिए जैन समाज के लिए अलग से कोई कानून नहीं है. अब तक हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत ही निस्तारण होता रहा है. मुस्लिम को छोड़कर बाकी सभी हिंदू मैरिज एक्ट में शामिल किया जाता था.

2014 में जैन धर्म को मिला अल्पसंख्यक का दर्जा

दोनों पक्ष के वकीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने अपने फैसले में पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब भारत एक खोज का उल्लेख किया. लिखा कि जैन निश्चित रूप से हिन्दू धर्म या वैदिक धर्म नहीं है. कोई भी जैन आस्था से भी हिन्दू नहीं हो सकता. इसलिए 1947 में ही जैन समाज के लोगों ने संविधान सभा के समक्ष अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की थी. यह मांग 2014 तक बनी रही. इसके बाद केंद्र सरकार ने जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा देते हुए अलग धर्म की मान्यता दी. इसके साथ ही जैन धर्म के लोगों को अपनी धार्मिक परंपराओं के पालन का संवैधानिक हक मिला.

इस आधार पर खारिज हुई अर्जी

इस दौरान कोर्ट में वकीलों ने तर्क दिया कि जैन अनुयायियों के विवाह में सप्तपदी की हिन्दू परंपराओं का पालन किया जाता है. इसके जवाब में कोर्ट ने दसवीं सदी में आचार्य श्री वर्धमान सुरीश्वर द्वारा लिखित ग्रंथ आचार्य दिनकर का उल्लेख करते हुए कहा कि जैन समाज के लिए जिस विधि का उल्लेख किया गया है वह हिन्दू विवाह विधि से अलग है. इसलिए भी हिन्दू मैरेज एक्ट के प्रावधान यहां लागू नहीं होते. इसी के साथ कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की रुलिंग का उल्लेख किया. इसमें लिखा है कि न सिर्फ संविधान बल्कि की हिन्दू संहिता ने भी जैन धर्म को अलग मान्यता दी. जैन धर्म के किसी अनुयाई को उनके धर्म से विपरीत मान्यता वाले धर्म से जुड़ी व्यक्तिगत विधि का लाभ देना उचित नहीं है. यह कहते हुए कोर्ट ने तलाक की अर्जी खारिज कर दी है. मामले की यह सुनवाई एडिशनल सेशन जज धीरेंद्र सिंह की कोर्ट में हुई.

‘आपके केस की सुनवाई हम नहीं कर सकते’… पति-पत्नी से जज साहब ने ऐसा क्यों कहा?


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