MP News: झाबुआ का भगोरिया उत्सव कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है, जानें सब कुछ – INA
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मध्य प्रदेश के झाबुआ एवं अलीराजपुर जिले का भगोरिया पर्व संस्कृति के क्षेत्र में विश्व मानचित्र में प्रदेश को विशेष स्थान दिलाता है. ग्रीष्म ऋतु की दस्तक के साथ आम के बौर (फूल) की खुशबू से सराबोर हवाओं के झोंकों के साथ आदिवासियों का लोकप्रिय पर्व भगोरिया होलिका दहन से सात दिन पहले प्रारंभ होता है. आदिवासी अंचलों में पर्व के सात दिन पूर्व से जो बाजार लगते है, उन्हें आदिवासी अंचल में त्योहारिया हाट अथवा सरोडिया हाट कहा जाता है.
भगोरिया पर्व आदिवासियों का महत्वपूर्ण त्यौहार है. इसलिए भगोरिया हाट प्रारंभ होने से पूर्व के साप्ताहिक हाट में इस त्योहार को मनाने के लिए अंचल के आदिवासी ढोल, मांदल, बांसुरी, कपडे़, गहने एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी करते है. साज-सज्जा का सामान खरीदते है. इसीलिए इन्हें त्योहारिया हाट कहा जाता है.
क्या है भोगर्या अथवा भगोरिया पर्व?
कुछ लोग इसे पारंपारिक प्रणय पर्व भी कहते हैं. हाट बाजारों में आदिवासी युवक-युवतियां एक दूसरे को पसंद करते हैं. बाजार में एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं. युवक पहले युवती को गुलाल लगाता है, यदि युवती को युवक पसंद आ जाता है तो वो उसे गुलाल लगाती है. यदि युवक युवती को पसंद नहीं आता है तो गुलाल को पोंछ देती है. सहमती पर दोनों एक दूसरे के साथ भाग जाते हैं. गांव वाले भगोरिया हाट में बने प्रेम प्रसंग को विवाह सूत्र में बांधने के लिए दोनों परिवारों से बातचीत करते है और होलिका दहन हो जाने के बाद विवाह संपन्न करवाये जाते है.
भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढू्ंढने आते हैं. इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है इसी तरह सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है. यदि लड़की पान खा ले तो, हां समझा जाता है.
युवक- युवतियां करते हैं ये काम
भगोरिया हाट में झुले चकरी, पान, मीठाई, सहित श्रृंगार की सामग्रियां, गहनों आदि की दुकानें लगती हैं, जहां युवक एवं युवतियां अपने अपने प्रेमी को वैलेंटाइन की तरह गिफ्ट देते नजर आते हैं. आज कल भगोरिया हाट से भगा ले जाने वाली घटनायें बहुत ही कम दिखाई देती हैं. क्योंकि शिक्षा के प्रसार के साथ शहरी सभ्यता की छाप के बाद आदिवासियों के इस पर्व में काफी बदलाव दिखाई दे रहा है.
भगोरिया पर्व का इतिहास
भगोरिया कब और क्यों शुरू हुआ. इस बारे में लोगों में एकमत नहीं है. भगोरिया पर लिखी कुछ किताबों के अनुसार, भगोरिया राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था. इस समय दो भील राजाओं कासूमार और बालून ने अपनी राजधानी भगोर में विशाल मेले और हाट का आयोजन करना शुरू किया. धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्ही का अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहना शुरू हुआ. वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है कि इन मेलों में युवक-युवतियां अपनी मर्जी से भागकर शादी करते हैं इसलिए इसे भगोरिया कहा जाता है.
भगोरिया मेले में आने वाले विदेशी पर्यटकों हेतु पर्यटन विकास निगम द्वारा आलीराजपुर जिले के सोंडवा गांव में टेंट विलेज बनाया जाता है.
झाबुआ का भगोरिया उत्सव कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है, जानें सब कुछ
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