Nation- जिस दीक्षा भूमि में पीएम मोदी ने डॉ आंबेडकर को किया नमन, जानें क्या है उसका इतिहास- #NA

दीक्षा भूमि में डॉ आंबेडकर का नमन करते पीएम मोदी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को नागपुर की जिस दीक्षा भूमि पर डॉक्टर भीमराव बाबासाहेब आंबेडकर के स्मारक को नमन करने गए थे, वहां 14 अक्टूबर 1956 को बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी. उन्होंने अपने 5 लाख अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म का त्याग करते हुए बौद्ध धर्म को अपनाया था. कारण बाबासाहेब हिंदू धर्म में जात-पात ऊंच नीच और काला गोरा इस भेद और वर्ण प्रथा के खिलाफ थे.
रविवार को पीएम मोदी ने बाबासाहेब और भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमा को नमन किया और कुछ डेट स्कूप में बैठकर ध्यान भी किया.
इस दीक्षा भूमि में आने वाले अनुयायियों के कहना है कि पीएम मोदी यहां आए अच्छी बात है, लेकिन जब तक देश में समता का राज नही होगा, तब-तक प्रधानमंत्री का हर प्रयास बेकार है. लोगों की मिली जुली प्रतिक्रिया रही. कुछ लोगो ने इसे पीएम मोदी का दिखावा बताया तो कुछ ने कहा कि बदलाव दलित जनता को खुद करना होगा.
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दीक्षा भूमि, नागपुर: एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहर
दीक्षा भूमि केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि यह सामाजिक क्रांति, आत्मसम्मान और धर्म परिवर्तन का प्रतीक है. यह वही स्थान है, जहां डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी. यह स्थल हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणा का केंद्र बना हुआ है.
दीक्षा भूमि: धर्म परिवर्तन की ऐतिहासिक घटना
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने जीवन भर सामाजिक अन्याय और जाति-व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष किया. उन्होंने महसूस किया कि जातिवाद से मुक्ति पाने के लिए एक सामाजिक और धार्मिक क्रांति आवश्यक है. इसी उद्देश्य से उन्होंने हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला किया.
14 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षा भूमि पर उन्होंने अपने लगभग 5 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली. यह भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी धर्मांतरण घटनाओं में से एक थी.
डॉ आंबेडकर का बौद्ध धर्म अपनाने का कारण
उन्होंने महसूस किया कि हिंदू धर्म में जातिवाद की गहरी जड़ें हैं और इसमें दलितों के लिए समानता की कोई गुंजाइश नहीं है.
बौद्ध धर्म समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित है.
गौतम बुद्ध के धम्म (धर्म) में उन्हें सामाजिक न्याय और मानवता के लिए एक रास्ता दिखा.
दीक्षा भूमि की वास्तुकला और संरचना
दीक्षा भूमि का मुख्य आकर्षण इसका विशाल स्तूप है, जिसे बौद्ध स्थापत्य शैली में बनाया गया है.
मुख्य विशेषताएं:
विशाल गुंबद: दीक्षा भूमि का मुख्य स्तूप सफेद रंग का एक विशाल गुंबद है, जो बौद्ध वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है.
संगमरमर से निर्मित: इस संरचना का निर्माण संगमरमर और अन्य उच्च-गुणवत्ता की सामग्रियों से किया गया है.
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा: स्तूप के अंदर डॉ. आंबेडकर की एक बड़ी प्रतिमा स्थापित है, जो उनके योगदान को दर्शाती है.
संग्रहालय और पुस्तकालय: यहां एक पुस्तकालय भी है, जहां बौद्ध धर्म और डॉ. आंबेडकर के विचारों से संबंधित अनेक किताबें उपलब्ध हैं.
दीक्षा भूमि का सामाजिक और धार्मिक महत्व
बौद्ध अनुयायियों के लिए तीर्थ स्थल
दीक्षा भूमि केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन चुका है. हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आकर धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस (14 अक्टूबर) मनाते हैं.
समता और सामाजिक न्याय का प्रतीक
डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाकर जाति-व्यवस्था के खिलाफ एक बड़ा संदेश दिया. इसलिए दीक्षा भूमि समानता, न्याय और बंधुत्व का प्रतीक मानी जाती है.
शैक्षणिक और सांस्कृतिक केंद्र
यहाँ एक बौद्ध अध्ययन केंद्र भी स्थित है, जहां बौद्ध धर्म और डॉ. आंबेडकर के विचारों पर शोध किया जाता है.
जिस दीक्षा भूमि में पीएम मोदी ने डॉ आंबेडकर को किया नमन, जानें क्या है उसका इतिहास
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