Nation- भिखारी बने व्यापारी! राम मंदिर निर्माण ने बदली कई पीढ़ियों की परंपरा, अब भीख नहीं अयोध्या में व्यापार कर रहे लोग- #NA
अयोध्या राम मंदिर.
“राम राज बैठें त्रैलोका, हरषित भए गए सब सोका…” तुलसीदास जी ने राम राज्य की व्याख्य अपने इन्हीं शब्दों से की है, जिसे हम और आप अक्सर पढ़ते या किसी अन्य के मुखारविंद से सुनते आ रहे हैं, लेकिन क्या कलयुग में ये पंक्तियां सच हो सकती हैं. अगर हम हां कहे तो आपको अचंभा होगा, लेकिन ऐसा हो चुका है, जिनकी कई पीढ़ियां अयोध्या समेत कई अन्य तीर्थ स्थलों पर भिक्षाटन कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रही थीं, अब उनके जीवन में राम मंदिर निर्माण से अप्रत्याशित बदलाव हो गया है, जिसकी कभी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.
अयोध्या में भिखारियों की संख्या में भारी कमी आई है. ये सिर्फ कहने की बात नहीं है. इसका प्रमाण है. जब भी आप देश या प्रदेश में कहीं किसी तीर्थ स्थान पर दर्शन-पूजन के लिए जाते हैं तो आप अक्सर देखते होंगे कि वहां छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियां आपसे कुछ पैसे या कुछ खिलाने की बात और हाथों से इशारा करते नजर आते हैं. कुछ वर्ष पहले अयोध्या में भी ऐसा ही नजारा था, लेकिन जब से राम जन्मभूमि में रामलला विराजमान हुए हैं, अयोध्या में भिक्षाटन करने वाले बच्चों-बच्चियों में भारी कमी देखी जा रही है.
पहले जो बच्चे-बच्चियां सरयू तट, राम जन्मभूमि, हनुमानगढ़ी और कनक भवन के इर्द-गिर्द आपको भिक्षाटन करते दिखाई देते थे, अब उनके हाथ में रोजगार आ गया है. अब वो हर रोज मिनिमम 500 रुपए कमा रहे हैं और गौरव का जीवन जी रहे हैं. इसको लेकर हमारी टीवी9 डिजिटल की टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की है. ये रिपोर्ट भिक्षाटन करने वाले लोगों से, बच्चों बच्चियों से, उनके परिवार के लोगों से बात आधार पर तैयार की गई है.
चंदन-टीका लगाकर कर रहे कमाई
लता मंगेशकर चौक पर लोगों को चंदन टिका लगाने वाली सीमा (उम्र 10 वर्ष-परिवर्तित नाम) ने बताया कि वह मांग-मांग कर अपना पेट भरती थी, लेकिन दो-तीन महीने पहले उसने मांगी गई भीख में मिले पैसे से चंदन-टीका खरीदा और अब वो हर रोज अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं को चंदन-टीका लगाती है. इससे उसकी दिनभर में 200 से 300 तक की कमाई आराम से हो जाती है. वह अपना जीवन आसानी से जी रही है. पहले वो अयोध्य में भंडारे के भोजन से या मांग का पेट भरती थी, लेकिन अब उसको एक काम मिल गया है.
राम मंदिर ने बदल दिया हमारा जीवन
55 वर्षीय एक महिला जो दो बार पैरालिसिस का अटैक झेल चुकी हैं, उन्होंने बताया कि ये सब मोदी और योगी की देन है. उन्हीं की वजह से आज हमको एक सम्मानित व्यापार मिला है. महिला ने बताया कि पहले वह लोगों के घरों में खाना बनाने और दिहाड़ी मजदूरी करती थीं. इस बीच उनके पति एक दुर्घटना में घायल हो गए. परिवार पर जीवन-यापन का संकट आ गया, फिर उन्होंने श्रद्धालुओं को टीका-चंदन लगाने का काम शुरू किया. अब घर का खर्च और उनके पति की दवा का खर्च आसानी से मिल जाता है. उनके परिवार में पति और उनके अलावा छह बच्चे भी हैं, लेकिन अब उनके जीवन में बड़ा बदलाव आ गया है.
हमारी हर रोज 500 की आमदनी
शिवा (परिवर्तित नाम) पहले अपने पिता के साथ उनकी गुटखा-तंबाकू की दुकान पर साथ रहते थे, लेकिन अब वो खुद पैसा कमाते हैं. शिवा लोगों को टीका-चंदन लगाते हैं और हर रोज 500 रुपये की आमदनी करते हैं. वहीं दिल्ली के रहने वाले 68 वर्षीय कन्हैया लाल बताते हैं कि वो पहले होटल में रसोईया थे, लेकिन उन्हें सांस संबंधी बीमारी हो गई. उन्होंने होटल में खाना बनाने का काम छोड़ दिया.
वो हरिद्वार चले गए. हरिद्वार में उनका काम अच्छा नहीं चला. फिर उन्होंने अयोध्या की तरफ रुख किया. अब वो एक साल से अयोध्या में हैं और यहां उनका काम बढ़िया चल रहा है. कन्हैया लाल वजन तौलने की मशीन को लेकर अयोध्या में विभिन्न जगहों पर विचारण करते देखे जाते हैं. वजन तौलने की मशीन से अर्जित दान से उनका गुजारा हो जाता है.
शुभम (परिवर्तित नाम) ने बताया कि मेरे परिवार के सभी लोग मांग कर खाते हैं. मेरे परिवार में कई सदस्य हैं, वो सभी मांगने का काम करते हैं, लेकिन मैं लोगों को टीका-चंदन लगाता हूं. मैं मांगने का काम नहीं करता हूं. पहले मैं भी भीख मांगने का ही काम करता था, लेकिन अब मैंने ये काम छोड़ दिया है.
शुभम की बहन बताती है कि उसके परिवार के लगभग सभी लोग मांग कर ही जीवन-यापन करते हैं, लेकिन उसका भाई ये काम नहीं करता है. अब वो लोगों को टीका-चंदन लगाता है. रामू (परिवर्तित नाम) बताता है कि पहले वो लोगों के हाथ-पैर दबाया करता था. उसके मां-बाप खाना बनाने का काम करते हैं. अब हम चंदन-टीका लगाने का काम करते हैं. अब हम हाथ-पैर दबाने का काम नहीं करते हैं.
भिखारी बने व्यापारी! राम मंदिर निर्माण ने बदली कई पीढ़ियों की परंपरा, अब भीख नहीं अयोध्या में व्यापार कर रहे लोग
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