Nation- दिल्ली चुनाव: मोदी के एक दांव से बदलेगी प्रवेश वर्मा की किस्मत, नई दिल्ली सीट पर बढ़ गई केजरीवाल की टेंशन!- #NA

दिल्ली की सत्ता की धुरी माने जाने वाली नई दिल्ली विधानसभा सीट को फतह करने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है. पहले अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा को टिकट दिया और अब जीत की इबारत लिखने की कवायद में जुट गई है. ऐसे में मोदी सरकार के द्वारा उठाया गया एक कदम नई दिल्ली सीट पर प्रवेश वर्मा की किस्मत बदलने वाला माना जा रहा तो अरविंद केजरीवाल की सियासी टेंशन बढ़ा सकता है.
दिल्ली चुनाव की सियासी सरगर्मी के बीच मोदी सरकार ने गुरुवार को आठवें वेतन आयोग के गठन की मंजूरी को देकर बड़ा सियासी दांव चला है. पीएम मोदी का 8 वें वेतन आयोग का फैसला दिल्ली में बीजेपी के लिए मुफीद साबित हो सकता है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा सियासी इफेक्ट नई दिल्ली सीट पर पड़ सकता है.
इसकी वजह यह है कि दिल्ली में सरकारी कर्मचारी और पेंशनर सबसे ज्यादा नई दिल्ली सीट पर ही रहते हैं, जो प्रवेश वर्मा के लिए सियासी संजीवनी तो केजरीवाल के लिए चिंता का सबब बन सकते हैं?
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नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल को घेरने का प्लान
मोदी सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. केंद्र सरकार के फैसले को बीजेपी नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल को घेरने की रणनीति के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है.
नई दिल्ली सीट पर सबसे ज्यादा सरकारी कर्मचारी हैं. नई दिल्ली विधानसभा सीट में ही तमाम सरकारी कॉलोनियां हैं. सरकारी कर्मचारियों के वेतन में सुधार के कदम को बीजेपी अपनी उपलब्धि और केजरीवाल के खिलाफ सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है.
दिल्ली की वरिष्ठ पत्रकार आनंद राणा ने टीवी-9 भारतवर्ष डिजिटल से बात करते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल 2013 से लगातार नई दिल्ली सीट से जीत रहे हैं और चौथी बार चुनावी मैदान में है. इस बार उनकी राह पहले की तरह आसान नहीं है. पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल को घेरने के मकसद से ही मोदी सरकार ने अचानक गुरुवार को आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दी. इसकी वजह नई दिल्ली सीट पर हार-जीत सरकारी कर्मचारी और पेंशनर तय करते हैं.
नई दिल्ली सीट पर सरकारी कर्मचारी
अरविंद केजरीवाल जिस नई दिल्ली विधानसभा सीट से चौथी बार चुनावी मैदान में उतरे हैं, वहां पर करीब 20 फीसदी से भी ज्यादा सरकारी कर्मचारी रहते हैं. ये वोटर नई दिल्ली सीट पर जीत हार तय करने वाले माने जाते हैं. इन लोगों को दिल्ली सरकार के मुफ्त-बिजली, पानी और शिक्षा के फैसलों से उतना फर्क नहीं पड़ता, जितना केंद्र सरकार के आठवें वेतन आयोग के गठन के ऐलान से होने की संभावना है. वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से सीधे सरकारी कर्मचारियों के वेतन का फायदा है.
नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में भारत सरकार की तीनों शाखाओं का मुख्यालय है, जिसमें राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और सर्वोच्च न्यायालय हैं. नई दिल्ली के लुटियन जोन में तमाम केंद्रीय मंत्रालय के मुख्यालय हैं. इसके अलावा अपनी नगर पालिका है, जिसे NDMC के नाम से जाना है. इसके चलते सरकारी कर्मचारी बड़ी संख्या में नई दिल्ली सीट क्षेत्र में रहते हैं.
नई दिल्ली विधानसभा सीट के तहत सरोजनी नगर, गोल मार्केट, एम्स, नैरोजी नगर, नेताजी नगर, आईएनए मार्केट, लक्ष्मी बाई नगर, किदवई नगर, लोधी कॉलोनी, जोर बाग और बीके दत्त कॉलोनी जैसे इलाके हैं, जहां पर बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी रहते हैं.
8 वें केंद्रीय वेतन आयोग के फैसले से माना जा रहा है कि कर्मचारियों को वेतन वृद्धि का लाभ को बीजेपी वोटों में तब्दील करना चाहती है. सरकारी कर्मचारी अगर इस फैसले के साथ जाते हैं तो प्रवेश वर्मा के लिए अहम साबित हो सकता है और केजरीवाल के लिए टेंशन बढ़ा सकता है.
2024 में सरकारी कर्मचारी ने दिखाए तेवर
लोकसभा चुनाव के वक्त सरकारी कर्मचारियों ने केंद्र की मोदी सरकार को कड़ा संदेश दिया था. केंद्रीय सरकारी कर्मचारी संगठन लंबे समय से ओपीएस और आठवें वेतन आयोग की मांग कर रहे थे, लेकिन मोदी सरकार रजामंद नहीं थी. इसका असर कई विधानसभा सीटों पर पड़ा था.
नई दिल्ली सीट से 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी बांसुरी स्वराज जरूर जीत गयी थी, लेकिन सरकारी कर्मचारियों के प्रभाव वाले इलाकों में बीजेपी पिछड़ गई थी.
नई दिल्ली लोकसभा सीट में 10 विधानसभा सीटें आती हैं, लेकिन तीन सीटें ऐसी हैं, जहां सरकारी कर्मचारी बड़ी संख्या में हैं. नई दिल्ली, दिल्ली कैंट और आरके पुरम. इन सीटों पर बांसुरी स्वराज अपने प्रतिद्वंद्वी से पीछे रह गई थीं. सरकारी कर्मचारियों का झुकाव आम आदमी पार्टी की तरफ था. ऐसे में बीजेपी की बांसुरी स्वराज नई दिल्ली सीट पर 2200 वोटों से पीछे रही थीं. दिल्ली कैंट में यह अंतर 1200 वोट का था. वहीं, आरके पुरम में भी वह 900 वोटों से पीछे रही थीं. इन तीनों ही सीटों पर आम आदमी पार्टी को बीजेपी से ज्यादा वोट मिले थे.
प्रवेश वर्मा के लिए संजीवनी बनेगा?
केंद्रीय कर्मचारियों को आठवें वेतन आयोग के गठन का लंबे समय से इंतजार था. ऐसे में चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार का फैसले को बीजेपी का बड़ा दांव माना जा रहा. इस घोषणा से पार्टी चुनाव में निश्चित रूप से इस घोषणा के वोट में बदलने की उम्मीद लगा रही है. खासकर नई दिल्ली विधानसभा सीट पर सरकारी कर्मचारियों का विश्वास जीतने की है. ऐसे में नई दिल्ली सीट पर भी बीजेपी बढ़त लेने की उम्मीद लगा रही है, जहां अरविंद केजरीवाल का मुकाबला बीजेपी के पूर्व सांसद रहे प्रवेश वर्मा से हैं.
अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली सीट पर घेरने के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अपने मजबूत नेताओं को उनके खिलाफ उतार रखा है. प्रवेश वर्मा के पिता साहिब सिंह वर्मा और संदीप दीक्षित की मां शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. ऐसे में केजरीवाल इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले में फंसते दिख रहे हैं.
नई दिल्ली विधानसभा सीट के तहत नगरपालिका क्षेत्र एक बड़े प्रशासनिक जिले, नई दिल्ली जिले का हिस्सा है. नई दिल्ली सीट पर करीब तीन लाख वोटर हैं, जिसमें 89.8 फीसदी हिंदू धर्म की है. मुस्लिम 5 फीसदी, ईसाई 2.9 फीसदी और सिख 2 फीसदी है. अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली क्षेत्र में सरकारी कर्मचारियों के साधकर ही अभी तक अपनी जीत की इबारत लिखते रहे हैं, जिसमें बीजेपी ने सेंधमारी के लिए बड़ा सियासी दांव चला है.
केजरीवाल की बढ़ गई सियासी टेंशन
बीजेपी हर हाल में नई दिल्ली विधानसभा सीट जीतना चाहती है, जिसके लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रही है. बीजेपी ने अपने वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतार रखा है तो पार्टी के रणनीतिकार एक-एक मोहल्ले पर नजर बनाए हुए हैं. ऐसे में अरविंद केजरीवाल का आरोप तो यहां तक लगा दिया है कि बीजेपी ने नई दिल्ली सीट पर छह फीसदी वोट कटवा दिए हैं और 13000 से ज्यादा नए वोटर्स बनवा दिए हैं.
ये नए वोटर्स वो हैं, जिन्हें यूपी बिहार से लाया गया है. केंद्र सरकार के कर्मचारियों के घर 10-10, 20-20 लोगों के वोट बनाए जा रहे हैं. ऐसे में साफ समझा जा सकता है कि नई दिल्ली की लड़ाई कैसे केजरीवाल के लिए सियासी टेंशन का सबब बनी हुई है. अब मोदी सरकार ने आठवें वेतन आयोग का गठन करके और भी सियासी चिंता बढ़ा दी है.
नई दिल्ली सीट जो जीता वही सिकंदर
नई दिल्ली विधानसभा सीट जीतने वाली पार्टी की सिर्फ सरकार ही नहीं बनती बल्कि सत्ता के सिंहासन पर उसी का कब्जा होता है. पिछले सात चुनाव में छह बार नई दिल्ली सीट जीतने वाले नेता दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं. 1993 में नई दिल्ली सीट गोल मार्केट के नाम से जानी जाती थी. इस चुनाव में बीजेपी के टिकट पर कीर्ति आजाद विधायक चुने गए थे. दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनी.
नई दिल्ली विधानसभा सीट पर 1998 से लेकर 2008 तक लगातार तीन बार शीला दीक्षित ने जीत दर्ज की और दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी. अरविंद केजरीवाल ने अपने सियासी सफर का आगाज नई दिल्ली विधानसभा सीट से किया. 2013 से लेकर 2020 तक लगातार तीन बार केजरीवाल नई दिल्ली विधानसभा सीट से विधायक बने और तीनों ही बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. इस तरह अब तक जो भी राजनीतिक दल नई दिल्ली सीट पर काबिज हुआ, वही दिल्ली की सत्ता का सिकंदर बना.
केजरीवाल का नई दिल्ली सीट पर घटता जनाधार
अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट पर 2013 में पहली बार चुनाव लड़े थे. केजरीवाल को 44,269 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस की शीला दीक्षित को 18,405 वोट मिले थे और बीजेपी के विजेंद्र गुप्ता को 17,952 वोटों से संतोष करना पड़ा था. केजरीवाल ने 25,864 वोट से जीत दर्ज की है.
2015 में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी से नूपुर शर्मा मैदान में उतरी थी. केजरीवाल को 57213 वोट मिले थे तो बीजेपी की नुपुर शर्मा को 25,630 वोट मिले थे. केजरीवाल 31,583 वोट से जीते थे.
2020 के विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी से सुनील यादव मैदान में उतरे, लेकिन वो जीत नहीं सके. केजरीवाल को 46226 वोट मिले थे तो बीजेपी के सुनील यादव को 21697 वोटों से शिकस्त दी थी. इस सीट पर तीसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी रोमेश सभरवाल रहे और उन्हें महज 3206 वोट मिले थे.
इस तरह नई दिल्ली सीट से भले ही केजरीवाल लगातार जीत रहे हों, लेकिन सियासी आधार कम हुआ है. ऐसे में जीत का अंतर भी घट गया है. 2024 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को सिर्फ 2200 वोट ही बीजेपी से ज्यादा मिले हैं. ऐसे में बीजेपी ने इस बार नई रणनीति के साथ उतरी है तो कांग्रेस ने भी घेर रखा है. इस तरह केजरीवाल के खिलाफ विपक्ष ने जबरदस्त चक्रव्यूह रचा है.
दिल्ली चुनाव: मोदी के एक दांव से बदलेगी प्रवेश वर्मा की किस्मत, नई दिल्ली सीट पर बढ़ गई केजरीवाल की टेंशन!
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