Nation- गिरिजा व्यास को यूं भुला देना… 2014 में हार के बाद न टिकट मिला न संगठन में मौका- #NA

गिरिजा व्यास.
2014 में लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद से गिरिजा व्यास राजनीति से बाहर हो गई थीं. जबकि इस बीच राजस्थान में कांग्रेस की सरकार भी रही. किंतु उनके पुनर्वास के बारे में नहीं सोचा गया. राजस्थान की यह कद्दावर नेता प्रदेश से ले कर केंद्र तक अनेक बार अहम पदों पर रही मगर एक हार के बाद पार्टी ने उन्हें न लोकसभा टिकट दिया न संगठन में कोई मौका. जबकि गिरिजा व्यास महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं. राष्ट्रीय महिला आयोग (NWC) की दो बार अध्यक्ष रहीं. राजस्थान में शिवचरण माथुर तथा हरिदेव जोशी ने उन्हें मंत्रिपद सौंपा था.
केंद्र में नरसिंह राव सरकार में सूचना प्रसारण की उप मंत्री और मनमोहन सरकार में आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन की मंत्री रही थीं. पर इसके बाद वे गुमनाम जिंदगी जी रही थीं. अभी मार्च में नवरात्रि पर गणगौर पूजन करते समय उनकी साड़ी में आग लग गई. वे बुरी तरह झुलस गई थीं.
जिला कांग्रेस से राष्ट्रीय महिला कांग्रेस तक का सफर
एक मई को अहमदाबाद के अस्पताल में जब उन्होंने अंतिम सांस ली तब सबको गिरिजा व्यास की सुधि आई. गिरिजा व्यास एक दबंग महिला नेता थीं. सच को निर्भीकता पूर्वक सच बोलना उनके ही बूते की बात थी. 1970 के दशक में पुरुष वर्चस्व वाली राजनीति में जब उन्होंने जिला कांग्रेस स्तर पर प्रवेश किया तब महिलाओं की स्थिति सिर्फ शो पीस की थी. किंतु गिरिजा व्यास ने सदैव महिलाओं, गरीबों, अल्पसंख्यकों के मुद्दे को पूरे साहस के साथ उठाया और सफलता हासिल की.
दर्शन शास्त्र की विद्वान गिरिजा व्यास खूब सोच-समझ कर राजनीति में आईं. इसके पहले वे उदयपुर के मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में दर्शन से पीएचडी. कर चुकी थीं और एक कॉलेज में प्राध्यापक थीं. लेकिन राजनीति में कदम रखते ही वे लगातार ऊपर चढ़ती गईं. उदयपुर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से राजनीति शुरू करने वाली गिरिजा राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की भी अध्यक्ष रहीं.
सीपी जोशी से छत्तीस का आंकड़ा
राजनीति में उनके दोस्त और दुश्मन खूब थे. पार्टी के अंदर भी और बाहर भी. वे राजीव गांधी की करीबी थीं इसलिए राजस्थान कांग्रेस में जमे-जमाये नेता उनसे डाह रखते. गिरिजा व्यास ने भी सबको छकाया. राजस्थान कांग्रेस के धाकड़ नेता सीपी जोशी से उनका तीन और छह का आंकड़ा था. दोनों ही उदयपुर से थे और शिक्षा भी दोनों ने एक ही विश्वविद्यालय से ली. मगर जब सीपी जोशी विश्वविद्यालय पहुंचे तब गिरिजा व्यास वहां से विदा ले रही थीं.
और जब गिरिजा व्यास पॉलिटिक्स में आईं तब तक जोशी इस फील्ड में जम चुके थे. इसलिए दोनों में खूब भिड़ंत होती. यह सब टिकटों के बंटवारे के समय भी दीखता. जोशी के लोगों का विरोध गिरिजा व्यास करतीं और गिरिजा के लोगों का टिकट जोशी कटवाते. नतीजा यह हुआ कि 2008 में सीपी जोशी एक वोट से चुनाव हार गए और वे मुख्यमंत्री नहीं बन सके.
1985 में विधायक बनीं
हालांकि इस हार के बाबत सीपी जोशी ने कहा कि उनकी पत्नी और बेटी मंदिर चली गईं और वे वोट नहीं दे पाईं. मगर सूत्रों की मानें तो उस समय गिरिजा व्यास केंद्र में NWC की अध्यक्ष थीं और जोशी को महिलाओं के वोट न मिल पाने में उनकी भी भूमिका थी. जोशी नाथद्वारा से लड़े थे और उस सीट से वे कई बार जीत चुके थे किंतु 2008 में वे नहीं जीत सके. जोशी विश्वविद्यालय में उनके जूनियर थे मगर राजनीति में सीनियर. पर यहां उन्होंने जोशी को फिर जूनियर कर दिया.
गिरिजा व्यास 1985 में पहली बार विधायक बनी थीं. उस समय राजीव गांधी ने महिलाओं को राजनीति में लाने का अभियान चलाया था. गिरिजा व्यास न सिर्फ चुनाव जीतीं बल्कि शिवचरण माथुर की सरकार में मंत्री भी बनीं. उनके बाद हरिदेव जोशी ने भी गिरिजा व्यास को अपने मंत्रिमंडल में अहम रोल दिया.
गहलोत और गिरिजा के समय कांग्रेस की हार
राजनीति में गिरिजा व्यास अपनी चलाती थीं. यूं भी उस समय तक राजस्थान में महिलाओं की भूमिका एकदम नगण्य थी. लेकिन उन्होंने अपनी पहल और अपने धाकडपन से राजस्थान में महिलाओं के लिए राजनीति का रास्ता सुगम कर दिया था. यद्यपि उनकी अपने समकालीन नेताओं से कभी नहीं पटी. अशोक गहलोत से भी उनके रिश्ते अच्छे नहीं थे पर अशोक गहलोत ने कभी भी अपनी पसंद और नापसंद जाहिर नहीं होने दी.
अशोक गहलोत 1998 में जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तब गिरिजा व्यास राजस्थान कांग्रेस की अध्यक्ष थीं. उस समय भी दोनों में अबोलापन था. नतीजा यह हुआ कि 2003 के चुनाव में कांग्रेस विधानसभा में कुल 57 सीटों पर सिमट गई. 2003 की इस दुर्दशा का हश्र यह हुआ कि 2004 का लोकसभा चुनाव वे भाजपा से हार गईं.
2018 में विधानसभा में जाने की उनकी रुचि नहीं थी
जयपुर में रह रहे वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन बताते हैं, कि डॉ गिरिजा व्यास मूलतः दर्शन की विद्यार्थी रहीं और कथक नृत्यांगना बनना उनका शौक था. छोटी उम्र में पिता के निधन के बाद उन्होंने मां और भाइयों को संभाला. वे विद्वान और कलाविद थीं. शायद इसी वजह से पॉलिटिक्स में थोड़ी मिसफिट थी. आजीवन अविवाहित रहीं गिरिजा व्यास में काफी हद तक अक्खड़पन था. यद्यपि वे राजस्थान के अन्य नेताओं की तुलना में आम जनता की शिकायतें सुनना पसंद करती थीं, सम्भवतः इसीलिए कांग्रेस के दिग्गज नेता उन्हें निकट नहीं आने देते थे.
वे 2014 का लोकसभा चुनाव चित्तौड़ से लड़ीं और भाजपा प्रत्याशी से हार गईं. उसके बाद कांग्रेस पार्टी ने उनके पुनर्वास के बाबत कभी नहीं सोचा. उस समय वे 68 वर्ष की थीं और संगठन के काम वे बखूबी निभा सकती थीं. बीच में 2018 में उन्हें विधानसभा का टिकट मिला लेकिन उन्होंने यह चुनाव अनमनेपन से लड़ा.
पार्टी नेताओं ने ही उन्हें गुमनामी की तरफ धकेल दिया
जो लोग राजनीति की बारीकियां समझते हैं, उन्हें पता होगा कि हर राजनीतिक दल के शीर्ष व नीति निर्धारक विचारक जनाधार बढ़ाने वाले नेताओं को पसंद नहीं करते. 1985 से 2014 तक किसी न किसी सदन का प्रतिनिधित्व करने वाली गिरिजा व्यास को 2014 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद विस्मृत कर दिया गया. संजीदा और संवेदनशील गिरिजा व्यास महिलाओं के अधिकार को लेकर काफी मुखर रहती थीं.
मनमोहन सरकार ने उन्हें लगातार दो बार राष्ट्रीय महिला आयोग (NWC) की अध्यक्षता सौंपी थी. पहले 2005 से 2008 तक और इसके फौरन बाद 2008 से 2011 तक. मालूम हो महिला आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है. मेवाड़ क्षेत्र के लोग उनकी मिलन सारिता को याद करते हैं. इसके बावजूद वे भुला दी गईं.
जीवन में संयोग भी खूब आए
1985 में वे अपने राजनीतिक सफर का पहला चुनाव लड़ीं और जीतीं. विधानसभा में उनकी वक्तृता के कौशल को देखकर मुख्यमंत्री ने उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में उप मंत्री बनाया. उनके बाद हरिदेव जोशी जब मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने गिरिजा व्यास को स्वतंत्र प्रभार का राज्य मंत्री बना दिया. 1990 का विधानसभा चुनाव वे हारीं लेकिन जून 1991 में वे उदयपुर सीट से लोकसभा का मध्यावधि चुनाव जीत गईं.
त्रिभुवन कहते हैं कि यह भी दिलचस्प है कि वे राजीव गांधी सरकार की घटती साख के कारण विधानसभा चुनाव हारीं किंतु उन्हीं राजीव गांधी की मृत्यु के कारण उपजी सहानुभूति से वे लोकसभा सीट जीत गईं. 1996 का लोकसभा चुनाव भी वे जीतीं पर 1998 का चुनाव हार गईं. एक वर्ष बाद जब फिर लोकसभा चुनाव हुए तो उन्होंने भाजपा के उसी उम्मीदवार को हरा दिया जिससे 1998 में पराजित हुई थीं.
सिद्धांतों पर डटी रहीं
2004 का लोकसभा चुनाव वे भाजपा की किरण माहेश्वरी से हार गईं किंतु 2009 में उन्होंने चित्तौड़ से लड़ा और जीता. क्योंकि उदयपुर सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई थी. 2009 के चुनाव में वे चित्तौड़ से पराजित हो गईं साथ ही उनका राजनीतिक कद भी. 2018 में उदयपुर विधानसभा सीट से उन्हें पार्टी ने टिकट दिया मगर खराब स्वास्थ्य के चलते वे विधानसभा चुनाव में खेत रहीं. उन्होंने कभी न तो पार्टी बदली न सिद्धांतों से समझौता किया.
गिरिजा व्यास को यूं भुला देना… 2014 में हार के बाद न टिकट मिला न संगठन में मौका
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