Nation- दलितों को पहनाए जनेऊ, रुकवाया हिंदू-मुस्लिम दंगा, बापू भी थे मुरीद… कहानी छत्तीसगढ़ के ‘गांधी’ की- #NA
दलितों को पहनाए जनेऊ, रुकवाया हिंदू-मुस्लिम दंगा, बापू भी थे मुरीद… कहानी छत्तीसगढ़ के ‘गांधी’ की
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित सुंदरलाल शर्मा
छत्तीसगढ़ का गांधी कहे जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित सुंदरलाल शर्मा की 21 दिसंबर को जयंती मनाई जाती है. देश की आजादी के बाद भी अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी का गांव आज भी विकास की आस लगाए बैठा है. पंडित सुंदर लाल शर्मा के गांव की कई मांगे हैं, जो आज भी पूरी नही हो पाई. गांववालों का कहना है कि उनकी सबसे बड़ी मांग गांव मे पंडित सुंदर लाल शर्मा के नाम से कन्या कालेज खोले जाने की है. क्योकि छात्र छात्राओं को कालेज के लिए मगरलोड या फिर राजिम तक जाना पड़ता है. इसके अलावा और भी कई मांगे है जो अबतक पूरी नही हुई हैं.
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के सम्मान में उनके नाम पर पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना की गई. छत्तीसगढ़ के गांधी के रूप में विख्यात पंडित सुंदरलाल शर्मा का जन्म 21 दिसंबर 1881 को धमतरी जिले के अंतिम छोर राजिम के पास महानदी के तट पर ग्राम चंद्रसुर में हुआ था. उनके पिता पंडित जियालाल तिवारी कांकेर रियासत में विधि सलाहकार थे.पढ़ाई में अत्यधिक रुचि होने से उन्होंने स्वाध्याय करके संस्कृत, बांग्ला, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू, उड़िया आदि भाषा भी सीख ली.
राज्य में की कवि समाज की स्थापना
बचपन में ही सुंदरलाल शर्मा ने कविताएं लेख एवं नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था. वह आंशु कवि थे. नाटक लेखन तथा रंगमंच में उनकी गहरी रुची थी. सन 1898 में उन्होंने पंडित विश्वनाथ दुबे के सहयोग से राज्य में कवि समाज की स्थापना की. यह ऐसी पहली साहित्य संस्था थी जिसे छत्तीसगढ़ अंचल में साहित्यिक चेतना जागृत की. पंडित सुंदरलाल शर्मा के हृदय में बचपन से ही हिंसा के प्रति घृणा का भाव था. जीव हत्या या मांसाहार को देख उन्होंने बाल सुलभ से अनशन शुरू कर दिया. परिणाम स्वरुप स्वजनों द्वारा उसी दिन से मांसाहार का परित्याग कर दिया गया.
विदेशी वस्तुओं का किया विरोध
पंडित सुंदरलाल शर्मा सन 1903 में अखिल भारतीय कांग्रेस के सदस्य बने. उन्होंने 1907 में सूरत में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में जाने वाले छत्तीसगढ़ के युवाओं का नेतृत्व किया. सूरत से लौटते ही उन्होंने नारायण राव मेघा वाले तथा अन्य सहयोगी के साथ मिलकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार प्रसार का आंदोलन शुरू किया. उनका मानना था कि जब भारत के लोग स्वदेश में बनी वस्तुओं का उपयोग नहीं करेंगे, तब तक ना तो गांव की गरीबी मिटेगी और ना ही राष्ट्रीय भावनाओं का जागरण होगा. इस हेतु उन्होंने अपनी जमीन जायदाद बेचकर राजिम धमतरी और रायपुर में स्वदेशी वस्तुओं की कई दुकानें खोली तथा लगातार घाटा होने पर भी उन्हें वर्षों चलाया.
शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए काम
गांव से अज्ञानता अंधविश्वास तथा कृतियों को मिटाने के लिए वे शिक्षा के प्रचार प्रसार को आवश्यक समझते थे. इसके लिए उन्होंने राजिम में संस्कृत पाठशाला तथा कुछ वर्षों बाद एक वाचनालय स्थापित किया. रायपुर के ब्राह्मण पारा में बाल समाज पुस्तकालय की स्थापना का श्रेय भी उन्हें ही है. पंडित सुंदरलाल शर्मा ऐसे प्रथम विचारक थे, जिनकी स्पष्ट मान्यता थी कि दलितों के भी समाज में संवर्णों की भांति राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक अधिकार हैं. वे दलितों को समझ में बराबरी का दर्जा प्रदान करने के लिए सतत संघर्षशील थे.
दलितों से करवाया यज्ञ, पहनाए जनेऊ
अस्पृश्यता को वे भारत की गुलामी तथा हिंदू समाज के पतन का प्रमुख कारण मानते थे. उन्होंने दलितों के उत्थान एवं संगठन के लिए गांव-गांव घूम कर उनकी हीन भावना दूर की. उनसे यज्ञ करवाया तथा उन्हें जनेऊ पनाकर समाज में सवर्णों की बराबरी का दर्जा प्रदान किया. जनेऊ पहनते समय उनसे प्रतिज्ञा कर ली जाती थी कि वह मादक द्रव्य तथा मांस का सेवन नहीं करेंगे. वह गौ हत्या के विरोधी थे. उन्होंने 1916 में उसके विरुद्ध एक आंदोलन चलाया.
राष्ट्रपति महात्मा गांधी का पहली बार हुआ छत्तीसगढ़ आगमन
अगस्त 1920 में बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में कंडेल ग्राम में नहर सत्याग्रह आरंभ हुआ. यह भारत का पहला सत्याग्रह आंदोलन था, जिसे स्वयं किसानों ने संगठित होकर चलाया. इस समय सुंदरलाल शर्मा के प्रयासों से 20 दिसंबर 1920 को राष्ट्रपति महात्मा गांधी का पहली बार छत्तीसगढ़ आगमन हुआ. गांधी जी के आने से पूर्व ही कंडेल सत्याग्रह का सफलतापूर्वक अंत हो गया. गांधी जी ने रायपुर धमतरी और कुरूद की आमसभा में व्याख्यान देकर स्वतंत्रता की ज्योति जलाई. सन 1933 में जब गांधी की दूसरी बार छत्तीसगढ़ आए तो उन्होंने पंडित सुंदरलाल शर्मा के अन्त्योदधार कार्यक्रम की मुख्य कारण से प्रशंसा कर इस मामले में उन्हें अपना अग्रज एवं गुरु का कर सम्मानित किया.
हिंदू मुस्लिम एकता के थे पक्षधर
पंडित सुंदरलाल शर्मा हिंदू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे. सन 1925 में धमतरी में हिंदू मुस्लिम का दंगा हुआ था. तब शर्मा जी ने दोनों पक्षों में समझौता कराकर इसे शांत किया. एकता के इस प्रयास के लिए धमतरी के 15000 से अधिक हिंदू एवं मुसलमानों ने उनका अभिवादन किया. इस बीच सन 1929 में उनकी धर्मपत्नी बोधनी बाई से देहांत हो गया, जिससे वह बहुत दुखी हो गए.
हिंदी और छत्तीसगढ़ी में लिखे 18 ग्रंथ
सन 1930 में जंगल सत्याग्रह का नेतृत्व करने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा राजद्रोह का अभियोग लगाकर दो वर्षों का कठोर कारावास दिया गया. सन 1931 में गांधी इरविन समझौते के कारण उन्हें जेल से मुक्त कर दिया गया. स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें कई बार जेल यात्रा करनी पड़ी तथा ब्रिटिश सत्ता के जुल्म का शिकार होना पड़ा. वे सत्यवादी थे, उनका विचार था कि सत्य के लिए डरो मत चाहे जियो या मरो. उन्होंने छत्तीसगढ़ी बोली को भाषा का रूप दिलाने के लिए अथक प्रयास किया. इसके लिए उन्होंने स्वयं हिंदी तथा छत्तीसगढ़ी में 18 ग्रंथो की रचना की. इनमें पहलाद चरित्र, करुणा पचीसी, प्रहलाद पदावली, श्री रघुराज गुण कीर्तन, ध्रुव चरित्र, छत्तीसगढ़ी दान लीला शामिल हैं.
28 दिसंबर 1940 को हुआ निधन
पंडित सुंदरलाल शर्मा एक अच्छे चित्रकार तथा मूर्तिकार थे. वह प्राकृतिक दृश्य का सुंदर चित्रांकन करते थे. वह एक सफल कृषक थे तथा कृषि कार्य में भी अपना विचारों के अनुकूल वैज्ञानिक एवं नवीनतम पद्धति का उपयोग करते थे. पंडित सुंदरलाल शर्मा को सन 1914 में आधुनिक ढंग से खेती का सफलता प्राप्त करने के लिए शासन द्वारा पुष्कलित किया गया था. जीवन के अंतिम वर्षों में भी पद की लालसा से दूर अपने गांव में कृषि कार्य में संलग्न हुए. 28 दिसंबर 1940 को उनका देहांत हो गया. लोग उन्हें छत्तीसगढ़ के गांधी के रूप में याद करते हैं.
रिपोर्ट-सूरज साहू/धमतरी
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