Nation- कभी सोनिया-ठाकरे-पवार के थे करीबी, अब मंत्री पद को तरसे…कैसे खत्म हो गया छगन के भुजाओं का बल?- #NA

कभी सोनिया-ठाकरे-पवार के थे करीबी, अब मंत्री पद को तरसे…कैसे खत्म हो गया छगन के भुजाओं का बल?

छगन भुजबल

देवेंद्र फडणवीस कैबिनेट के विस्तार के बाद छगन भुजबल सियासी सुर्खियों में है. येवला से एनसीपी सिंबल पर विधायक चुने गए भुजबल मंत्री न बनाए जाने से नाराज चल रहे हैं. ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले भुजबल की गिनती एक वक्त में महाराष्ट्र के सबसे बड़े नेताओं में होती थी.

शरद पवार से लेकर बालासाहेब ठाकरे और सोनिया गांधी तक भुजबल की सीधी पहुंच थी, लेकिन सियासत ने ऐसी करवट ली कि भुजबल अब मंत्री पद को तरस रहे हैं.

राजनीति में कैसे आए छगन भुजबल?

पुणे से 10वीं तक की पढ़ाई करने वाले भुजबल शुरुआत के दिनों में अपनी मां के साथ बायकुला में सब्जी बेचा करते थे. 1960 के दशक में भुजबल बाल ठाकरे के मराठा आंदोलन से जुड़ गए. जब शिवसेना का गठन हुआ, तो वे इसके संस्थापक सदस्य बने.

शिवसेना की स्थापना के वक्त बालासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र में फायरब्रांड नेताओं को तरजीह दे रहे थे. भुजबल को इसका फायदा मिला. वे पहले पार्षद और फिर 2 बार मुंबई के मेयर चुने गए.

1985 में बालासाहेब ठाकरे ने भुजबल को मझगांव सीट से विधायकी का टिकट दिया. भुजबल जीतने में कामयाब रहे. 1990 में भी वे इसी सीट से विधायक चुने गए.

1991 में भुजबल ने शिवसेना से बगावत कर कांग्रेस का दामन थाम लिया. भुजबल ने यह बगावत उस वक्त की थी, जब मुंबई में बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ बोलने का कोई नेता रिस्क नहीं लेता था.

भुजबल इसके बाद कांग्रेस में आ गए और करीब 8 साल तक ओल्ड ग्रैंड पार्टी में रहे. 1998 में एनसीपी का जब गठन हुआ तो भुजबल शरद पवार के साथ हो लिए. भुजबल को विलासराव देशमुख की सरकार में डिप्टी सीएम बनाया गया.

भुजबल इसके बाद कई मुख्यमंत्रियों के साथ मंत्री और उप मुख्यमंत्री रहे. इनमें सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे का नाम शामिल हैं.

2023 में भुजबल शरद पवार का साथ छोड़ अजित के साथ आ गए. उन्हें उस वक्त अजित के साथ शिंदे कैबिनेट में जगह भी मिली. 2024 में शरद पवार ने भुजबल के क्षेत्र से ही अपनी पार्टी का प्रचार शुरू किया था. इसके बावजूद भुजबल चुनाव जीत गए.

जीत के बाद भुजबल को कैबिनेट में शामिल होने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें फडणवीस कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया.

भुजबल क्यों और कैसे साइड लाइन होते गए?

1. विश्वसनीयता की कमी- शिवेसना से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले भुजबल बालासाहेब ठाकरे के सबसे विश्वासपात्र थे. 1991 में जब हिंदुत्व का मुद्दा परवान चढ़ रहा था, तब भुजबल ने जाति एंगल देते हुए ठाकरे से बगावत कर दी. भुजबल इसके बाद कांग्रेस में चले गए, लेकिन शरद पवार ने जब खुद की पार्टी बनाई तो वे भी इसमें आ गए.

2023 में भुजबल शरद पवार का साथ छोड़ अजित के साथ चले गए, जबकि भुजबल को एनसीपी में शरद का सबसे करीबी नेता माना जाता था. कहा जाता है कि 2023 में एनसीपी की टूट के वक्त भुजबल ने ही शरद पवार को अंधेरे में रखा था.

दरअसल, शरद ने पार्टी बचाने की जिम्मेदारी भुजबल को सौंपी थी, लेकिन आखिरी वक्त में भुजबल भी अजित के साथ चले गए.

2. बड़बोलापन भी एक वजह- फायरब्रांड नेता भुजबल अपने बयानों की वजह से सुर्खियों में रहते हैं. एकनाथ शिंदे की सरकार में मंत्री रहते हुए भुजबल ने खुल कर ओबीसी का पक्ष लिया था, जिसकी वजह से मराठा आंदोलनकारियों के निशाने पर पूरी सरकार आ गई थी.

वहीं 2023 में भुजबल ने ब्राह्मण समाज को लेकर विवादित टिप्पणी कर दी थी. भुजबल ने कहा था कि ब्राह्मण समाज में कोई भी अपने बच्चे का नाम शिवाजी-संभाजी नहीं रखता है. उनके इस बयान पर भी काफी हंगामा हुआ.

इन विवादों की वजह से सरकार की खूब किरकिरी हुई.

3. ज्यादा उम्र भी अहम फैक्टर- छगन भुजबल 77 साल के हो गए हैं. फडणवीस कैबिनेट में उम्र का खास ख्याल रखा गया है. अधिकांश मंत्री पद 65-70 साल के उम्र के नेताओं को ही दी गई है. कैबिनेट में सबसे उम्रदराज मंत्री भाजपा के गणेश नाइक (74) हैं.

कहा जा रहा है कि 75 प्लस होने की वजह से ही कैबिनेट से भुजबल का पत्ता कटा है. वहीं भुजबल जिल नासिक से आते हैं, वहां से दादा जी भुसे और नरहरि जिरवाल को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. ऐसे में क्षेत्रीय समीकरण भी भुजबल फिट नहीं बैठ रहे थे.

4. भ्रष्टाचार का आरोप- 2003 में तेलगी केस ने महाराष्ट्र और देश की सियासत में हड़कंप मचा दिया. तेलगी पर नकली स्टांप बेचकर पैसा कमाने का आरोप था. इस केस में छगन भुजबल का भी नाम सामने आया, जिसके बाद उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ गई. भुजबल इसके बाद साइड लाइन हो गए.

2009 में उन्हें फिर से कैबिनेट में शामिल किया गया, लेकिन इस बार भी उन पर महाराष्ट्र सदन में निर्माण को लेकर घोटाले का आरोप लगा. 2016 में ईडी ने भुजबल को गिरफ्तार भी किया था.

इलेक्शन एफिडेविट के मुताबिक भुजबल पर अभी करीब 3 मुकदमें भ्रष्टाचार से जुड़े हैं, जिसकी जांच एसीबी और ईडी कर रही है.

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