Nation- पश्चिम बंगाल क्लीनिकल बिल-2025 पर छिड़ा संग्राम, जानें क्या है इसमें खास और भाजपा क्यों कर रही है विरोध- #NA

West Bengal Clinical Establishments Bill, 2025
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने हाल ही में विधानसभा में पश्चिम बंगाल क्लीनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण, विनियमन और पारदर्शिता) (संशोधन) विधेयक-2025 पेश किया है. यह विधेयक मूल रूप से 2017 में बनाए गए अधिनियम में संशोधन करने के लिए लाया गया है. इसका उद्देश्य निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम्स, क्लीनिक्स और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं में पारदर्शिता बढ़ाना, मरीजों को बेहतर सुविधाएं देना और स्वास्थ्य सेवाओं की क्वालिटी को बेहतर करना है. हालांकि, इस विधेयक को लेकर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच तीखी बहस छिड़ गई है. बीजेपी ने इस बिल का विरोध किया है और कई प्रावधानों पर सवाल उठाए हैं.
इस विधेयक में क्या है खास?
यह विधेयक 2017 के मूल अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव लाने का प्रस्ताव करता है. जो इस प्रकार हैं:
- पारदर्शी शुल्क संरचना (Transparent Fee Structure): इस विधेयक में यह अनिवार्य किया गया है कि सभी निजी अस्पतालों, क्लीनिकों और नर्सिंग होम्स को अपनी सेवाओं की दरें और पैकेज शुल्क साफ रूप से बताना होगा. यह जानकारी अस्पताल के अंदर एक प्रमुख स्थान पर बोर्ड या डिस्प्ले के जरिए दिखानी होगी. इसमें कहा गया है कि मरीजों को इलाज शुरू होने से पहले सभी शुल्कों की जानकारी देना अनिवार्य होगा ताकि कोई बिना वजह का खर्च बिल में बाद में न जोड़ा जा सके.
- इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड (EMR): सभी क्लीनिकल प्रतिष्ठानों को हर मरीज का इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड बनाए रखना होगा. यह रिकॉर्ड एडवांस्ड सॉफ्टवेयर के माध्यम से रखा जाएगा, जिससे मरीजों का डेटा सुरक्षित और व्यवस्थित रहे. इस प्रावधान का उद्देश्य मरीजों के इलाज के इतिहास को पारदर्शी बनाना और स्वास्थ्य सेवाओं में जवाबदेही तय करना है.
- न्यूनतम मानकों का पालन अनिवार्य होगा: इस विधेयक में निजी स्वास्थ्य संस्थानों के लिए न्यूनतम मानकों को और सख्त किया गया है. इसमें बुनियादी ढांचा, उपकरण, प्रशिक्षित कर्मचारी, और आपातकालीन सेवाओं की उपलब्धता शामिल भी है. बायोमेडिकल कचरे के निपटान और पर्यावरणीय नियमों का पालन भी अनिवार्य किया गया है. जिससे किसी प्रकार की सुविधाओं के साथ समझौता न हो सके.
- लाइसेंसिंग और नियामक प्रक्रिया: इस विधेयक के अनुसार सभी क्लीनिकल प्रतिष्ठानों को पंजीकरण और लाइसेंस लेना अनिवार्य है. बिना लाइसेंस के कोई भी स्वास्थ्य संस्थान संचालित नहीं हो सकता है. जिला पंजीकरण प्राधिकरण और स्वास्थ्य सेवा निदेशक जैसे निकायों को इन नियमों के पालन की निगरानी का जिम्मा दिया गया है.
- शिकायत निवारण तंत्र: विधेयक में पश्चिम बंगाल क्लीनिकल प्रतिष्ठान नियामक आयोग (डब्ल्यूबीसीईआरसी) को और मजबूत करने का प्रावधान है. यह आयोग मरीजों की शिकायतों का त्वरित निपटान करेगा और उल्लंघन करने वाले संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करेगा.
- जुर्माना और सजा: इसमें नियमों का उल्लंघन करने वाले संस्थानों के लिए सख्त दंड का प्रावधान है. जिसमें लाइसेंस रद्द करना, जुर्माना और अन्य कानूनी कार्रवाइयां शामिल हैं. जो कोई भी बिना पंजीकरण और लाइसेंस के क्लिनिकल प्रतिष्ठान चलाता है उसे एक लाख रुपये तक के जुर्माने का देना पड़ेगा. साथ ही बिना लाइसेंस के क्लिनिकल संस्थान के संचालन के प्रत्येक दिन के लिए एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया जाएगा. जो अधिकतम दस लाख रुपये तक हो सकता है. जो कोई भी जानबूझकर ऐसे क्लिनिकल संस्थान में सेवा करता है और विधिवत रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस प्राप्त नहीं है, उसे पच्चीस हजार रुपये तक का जुर्माना देना पड़ेगा.
बीजेपी के विरोध की वजह क्या है?
पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया है. विधानसभा में बिल पेश होने के दौरान बीजेपी के विधायक मौजूद नहीं थे, जिसे टीएमसी ने विपक्ष की गैर-जिम्मेदारी बताया. बीजेपी के नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने इस विधेयक को लेकर कई आपत्तियां जताई हैं. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा है.
- निजी अस्पतालों पर बढ़ेगा अत्यधिक कंट्रोल: बीजेपी का कहना है कि यह विधेयक निजी अस्पतालों और क्लीनिकों पर अनावश्यक सरकारी नियंत्रण थोपता है. जिससे फीस स्ट्रक्चर को नियंत्रित करने और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड रखने जैसे प्रावधानों को लागू करने में छोटे और मध्यम स्तर के स्वास्थ्य संस्थानों को भारी आर्थिक बोझ उठाना पड़ सकता है. सुवेंदु अधिकारी ने तर्क दिया कि कई छोटे क्लीनिक और नर्सिंग होम्स के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वे इस एडवांस्ड सॉफ्टवेयर या अन्य तकनीकी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें. इससे ग्रामीण और छोटे शहरों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं.
- स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश पर असर: बीजेपी का मानना है कि इस विधेयक के सख्त नियम निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश को कम करेंगे. एक तो पहले से ही पश्चिम बंगाल में बुनियादी स्वास्थ्य व्यवस्था की कमी है, दूसरा इस विधेयक के बाद से निजी अस्पताल और छोटे क्लीनिक भी खत्म हो जाऐंगे. कड़े नियमों और दंड के डर से निजी निवेशक राज्य में नए अस्पताल या क्लीनिक खोलने से हिचक सकते हैं, जिससे मरीजों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मिलने में बाधा आएगी.
- राजनीतिक उद्देश्य का आरोप: बीजेपी ने इस विधेयक को टीएमसी की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बताया है. सुवेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी सरकार इस बिल के जरिए निजी अस्पतालों को निशाना बना रही हैं, ताकि वह जनता के बीच अपनी छवि को और मजबूत कर सकें. यह विधेयक ममता बनर्जी की ‘जनवादी’ छवि को चमकाने का एक प्रयास बस है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह महज एक कागजी दावे से ज्यादा कुछ भी नहीं.
- लागू करने में व्यावहारिक समस्याएं: बीजेपी ने इस बात पर जोर दिया कि विधेयक में कई प्रावधान अव्यावहारिक हैं. उदाहरण के लिए सभी मरीजों का इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड बनाए रखना छोटे क्लीनिकों के लिए मुश्किल हो सकता है क्योंकि उनके पास न तो तकनीकी संसाधन हैं और न ही प्रशिक्षित कर्मचारी. ऐसे में ये क्लीनिक कैसे चल पाएंगे. इसके अलावा फी डिस्प्ले की अनिवार्यता से निजी अस्पतालों को अपनी सेवाओं की कीमतें कम करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा जिससे उनकी आय प्रभावित होगी.
- स्वास्थ्य सेवाओं पर नकारात्मक प्रभाव: बीजेपी का तर्क है कि सख्त नियमों के कारण कई छोटे और मध्यम स्तर के स्वास्थ्य संस्थान बंद हो सकते हैं. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता कम हो सकती है, जहां पहले से ही सरकारी अस्पतालों की कमी है. सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि यह विधेयक मरीजों के हितों की रक्षा करने के बजाय उन्हें और मुश्किल में डाल सकता है, क्योंकि निजी स्वास्थ्य संस्थान बंद होने से लोग सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हो जाएंगे. जो पहले से ही भीड़ और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं. ऐसे में बेचारा गरीब आदमी कहां जाएगा?
- केंद्र-राज्य की राजनीतिक तनातनी: बीजेपी ने इस विधेयक को केंद्र सरकार के स्वास्थ्य योजनाओं जैसे आयुष्मान भारत के खिलाफ एक कदम बताया है. पार्टी का कहना है कि टीएमसी सरकार केंद्र की योजनाओं को लागू करने में बाधा डाल रही है और इस बिल के जरिए वह बस अपनी पावर दिखाने की कोशिश कर रही है. पश्चिम बंगाल में आयुष्मान भारत योजना को लागू न करने का हवाला देते हुए बीजेपी ने आरोप लगाया कि ममता सरकार स्वास्थ्य सेवाओं पर भी राजनीति कर रही हैं.
विधेयक से जनता पर ये संभावित प्रभाव पड़ेगा
इस विधेयक के लागू होने से पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य क्षेत्र में कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं. जैसे:
- मरीजों के लिए लाभ: शुल्क पारदर्शिता से मरीजों को अनावश्यक खर्चों से बचाया जा सकता है. इलाज की लागत पहले से पता होने से मरीज बेहतर निर्णय ले सकेंगे. इसके साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड से मरीजों का डेटा सुरक्षित रहेगा और जरूरत पड़ने पर इसे आसानी से एक्सेस भी किया जा सकेगा.
- स्वास्थ्य संस्थानों पर बनेगा दबाव: निजी अस्पतालों को नए नियमों का पालन करने के लिए अतिरिक्त निवेश करना पड़ सकता है, जैसे कि सॉफ्टवेयर अपग्रेड और कर्मचारियों को ट्रेनिंग देना. लेकिन छोटे क्लीनिकों के लिए इन नियमों का पालन करना मुश्किल हो सकता है, जिससे कुछ संस्थान बंद भी हो सकते हैं.
- राजनीतिक प्रभाव: टीएमसी इस विधेयक को मरीजों के हित में एक बड़ा कदम बताकर अपनी छवि मजबूत करने की कोशिश कर रही है. वहीं बीजेपी इसे टीएमसी की ‘वोट बैंक’ राजनीति का हिस्सा बता रही है. यह विधेयक 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
हेल्थ एक्सपर्ट्स और कानूनी जानकारों का कहना है कि इस विधेयक के कई प्रावधान काफी सकारात्मक हैं. लेकिन इन्हें लागू करने में कई चुनौतियां का सामना भी करना पड़ सकता है. उदाहरण के लिए:
- पारदर्शिता की जरूरत: विशेषज्ञों का मानना है कि शुल्क प्रदर्शन और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड जैसे कदम मरीजों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं, लेकिन इसके लिए व्यापक जागरूकता और तकनीकी ढांचे की जरूरत है.
- छोटे संस्थानों पर प्रभाव: छोटे क्लीनिकों और नर्सिंग होम्स के लिए इन नियमों का पालन करना मुश्किल हो सकता है. ऐसे में सरकार को इनके लिए विशेष छूट या सहायता देने की जरूरत होगी.
- निगरानी तंत्र: विधेयक में नियामक आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह कितनी स्वतंत्रता और पारदर्शिता के साथ काम करता है.
पश्चिम बंगाल क्लीनिकल बिल-2025 पर छिड़ा संग्राम, जानें क्या है इसमें खास और भाजपा क्यों कर रही है विरोध
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