Nation: आखिर ज्योतिष में ग्रहों के साथ नक्षत्रों को क्यों दिया जाता है इतना महत्व? #INA

नई दिल्ली, 16 जून (.)। वैदिक ज्योतिष के अनुसार आकाश में तारों का जो समूह होता है, उसे नक्षत्र कहा जाता है। वहीं ज्योतिषीय गणना के लिए आकाश को 27 नक्षत्रों में बांटा गया है।

अब इसको वैदिक ज्योतिष में अपनी कुंडली के हिसाब से देखिए तो ज्यादा समझ में आएगा। किसी भी कुंडली की ज्योतिषीय गणना के लिए कुल 9 ग्रह और 12 राशियां होती हैं, इसके साथ ही 27 नक्षत्र भी हैं। यानी हर एक ग्रह को 3 नक्षत्रों का स्वामी माना गया है।

वैसे ही कुंडली के हर भाव का स्वामी और कारक ग्रह भी होते हैं। जैसे कुंडली के पहले भाव के स्वामी मंगल देव होते हैं और इस भाव के कारक ग्रह सूर्य हैं। वहीं दूसरे भाव के स्वामी शुक्र देव और कारक ग्रह गुरु बृहस्पति देव हैं। तीसरे भाव के स्वामी बुध और इस भाव के कारक ग्रह मंगल हैं। चौथे भाव के स्वामी चंद्रमा और इस भाव के कारक ग्रह चंद्र देव हैं। पांचवें भाव के स्वामी सूर्य देव और इनके कारक ग्रह गुरु हैं। छठे भाव के स्वामी ग्रह बुध होते हैं और इसके कारक ग्रह केतु होते हैं। सातवें भाव के स्वामी ग्रह शुक्र देव और इसके कारक ग्रह शुक्र और बुध दोनों ही हैं। आठवें भाव के स्वामी ग्रह मंगल और कारक ग्रह शनि, मंगल और चंद्रमा हैं। नौवें भाव के स्वामी ग्रह देव गुरु बृहस्पति और कारक ग्रह गुरु बृहस्पति देव ही हैं। दसवें भाव के स्वामी ग्रह शनिदेव और कारक भी शनिदेव हैं। ग्यारहवें भाव के स्वामी ग्रह भी शनिदेव होते हैं और कारक गुरु हैं। वहीं बारहवें भाव के स्वामी गुरु बृहस्पति हैं और कारक ग्रह राहु माने गए हैं।

ये तो हुई भाव में ग्रहों के फलों की गणना करने के लिए उनका तरीका लेकिन अब कौन सा ग्रह किस घर में है और कौन से नक्षत्र में है इसके बारे में जानकर ही आगे की गणना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन 27 नक्षत्रों को दक्ष प्रजापति की पुत्रियां माना गया है।

अब एक और वैदिक ज्योतिष का तथ्य समझना जरूरी है। चंद्रमा लगभग 27 दिनों में पृथ्वी की पूरी परिक्रमा करता है। जिस प्रकार सूर्य मेष से लेकर मीन राशि तक हर महीने भ्रमण करते हैं। वैसे ही एक माह में चंद्रमा जिस भी मुख्य सितारों के समूहों के बीच भ्रमण करते हैं उससे 27 अलग-अलग तारा समूह का निर्माण होता है। यानी चंद्रमा सभी 27 नक्षत्रों में इसी तरह विचरण करते हैं।

अब इसी 27 दिन के काल को ही नक्षत्र मास कहा जाता है। इस प्रकार 27 दिनों का एक नक्षत्र मास होता है।

ऐसे में वैदिक ज्योतिष और हिंदू कैलेंडर के अनुसार जो 27 नक्षत्र हैं, वे हैं अश्विन, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती। ऐसे में इन नक्षत्रों में जन्मे जातकों के स्वभाव पर नक्षत्रों का पूरा प्रभाव देखने को मिलता है।

अब एक और वैदिक ज्योतिष के चरण को समझिए। हम 108 मनके की माला धारण करते हैं। उसके पीछे भी नक्षत्रों की गणना का मेल है। हर नक्षत्र के 4 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108 होते हैं। ऐसे में माला में 108 दाने रखने के पीछे का यही ज्योतिषी कारण है।

इन नक्षत्रों के स्वामी के बारे में जानना भी जरूरी है क्योंकि हर नक्षत्र के स्वामी ग्रह के बारे में जानने पर ही पता चलेगा कि उस नक्षत्र काल में पैदा हुए जातक का स्वभाव कैसा होगा। ऐसे में इसके बारे में ज्योतिष के जानकार श्रीकांत सौरभ ने बताया कि वैदिक ज्योतिष के अनुसार अश्विन, मघा और मूल नक्षत्र के स्वामी केतु, भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के स्वामी शुक्र, कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा के स्वामी सूर्य, रोहिणी, हस्त और श्रवण के स्वामी चंद्र, मृगशिरा, चित्र और घनिष्ठा के स्वामी मंगल, आर्द्रा, स्वाति और शतभिषा के स्वामी राहु, पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद के स्वामी गुरु, पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद के स्वामी शनि देव और बाकी के तीन आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती के स्वामी बुध देव हैं।

हमारा भाव चक्र 360 डिग्री में बांटा गया है। ऐसे में इन 27 नक्षत्रों की जो डिग्री होती है, वह 13 डिग्री और 20 कला की होती है। इनमें से अश्विन, मघा और मूल नक्षत्र जिनके स्वामी केतु हैं और आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती जिनके स्वामी बुध देव हैं, इन 6 नक्षत्रों को गण्ड मूल नक्षत्र के रूप में वर्णित किया गया है। श्रीकांत सौरभ ने बताया कि पराशर ज्योतिष के अनुसार इन नक्षत्रों में जन्मे जातक को बेहद खास माना गया है।

अब एक बार कुंडली पर ध्यान दीजिए। कुंडली के 12 घरों में जहां भी 9 ग्रह स्थित होते हैं, वहां कोई न कोई नक्षत्र होता है। यानी नक्षत्र को ग्रहों का घर कहा गया है। ऐसे में जिस नक्षत्र वाले घर में जो ग्रह होगा, उसका स्वभाव भी वैसा ही होगा और वह वैसा ही फलाफल देगा। इसको ऐसे समझें कि दुनिया के अलग-अलग वातावरण में रहने वाले लोगों की सोच, जीने की शैली, बोलचाल और स्वभाव सब अलग होते हैं। ऐसा ही नक्षत्रों की वजह से ग्रहों के साथ भी होता है।

–.

जीकेटी/

डिस्क्लेमरः यह . न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ हमारा चैनल टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

आखिर ज्योतिष में ग्रहों के साथ नक्षत्रों को क्यों दिया जाता है इतना महत्व?





देश दुनियां की खबरें पाने के लिए ग्रुप से जुड़ें,

#INA #INA_NEWS #INANEWSAGENCY

Copyright Disclaimer :->/b>Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
Credit By :-This post was first published on newsnationtv.com, we have published it via RSS feed courtesy of Source link,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close