National-असीम मुनीर का फील्ड मार्शल बनना, पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी! अयूब खान की तरह तख्तापलट न कर दें 'मुल्ला मुनीर' – #INA

पाकिस्तान ने सेना प्रमुख असीम मुनीर को प्रमोशन देकर फील्ड मार्शल बनाने का ऐलान किया है। फील्ड मार्शल पारंपरिक रूप से सेनाओं में एक मानद रैंक होती है। फील्ड मार्शल का पद ब्रिटिश सेना से लिए गए नाम पर बना सेना का सर्वोच्च पद है। यह टॉप मिलिट्री अथॉरिटी का एक प्रतीक है, जो आमतौर पर असाधारण वॉर टाइम लीडरशिप के सम्मान में दिया जाता है। मुनीर पाकिस्तान के दूसरे फील्ड मार्शल होंगे। पूर्व राष्ट्रपति और मिलिट्री तानाशाह मोहम्मद अयूब खान पाकिस्तान के पहले फील्ड मार्शल थे और मजे की बात ये है कि उन्होंने खुद ही खुद को इस सर्वोच्च पद से नवाजा था। अयूब खान ही वो शख्स थे, जिन्होंने पाकिस्तान में पहली बार सैन्य तख्तापलट कर, सरकार को सत्ता से बेदखल किया और मिलिट्री शासन यानी मार्शल लॉ लगाया।

असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाए जाने की घोषणा के बाद अयूब खान को याद करना भी बेहद जरूरी है, क्योंकि इतिहास बताता है कि पाकिस्तान में फील्ड मार्शल के रिकॉर्ड कुछ अच्छे नहीं रहे। ऐसे में ये जानना इसलिए भी अहम हो जाता है, क्योंकि पाकिस्तान में वजीरों से ज्यादा ताकत जनरलों के पास होती है। चलिए जानते हैं कि आखिर मुनीर का फील्ड मार्शल बनना पाकिस्तान के लिए क्यों है खतरे की घंटी?

अयूब खान को सेना प्रमुख बनाना विवादित फैसला

इसके लिए हमें सबसे पहले इतिहास के पन्ने पलटने होंगे, जिसकी शुरुआत अयूब खान से होती है। आजादी और बंटवारे के बाद अयूब खान पाकिस्तानी सेना में सबसे वरिष्ठ मुस्लिम अधिकारियों में से एक थे।

प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने कई वरिष्ठ अधिकारियों की अनदेखी करते हुए अयूब खान को पाकिस्तानी सेना का कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किया था, जो एक विवादित कदम था।

उस समय रक्षा सचिव इस्कंदर मिर्जा ने इस पद के लिए अयूब की पैरवी करने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के सामने सबसे जूनियर मेजर जनरल, अयूब खान, जो 1928 में कमीशन हुआ, उसे इस पद पर प्रमोट करने के लिए ठोस तर्क दिए, वो भी तब जब अयूब खान का नाम लिस्ट में शामिल भी नहीं था।

अयूब खान बने रक्षा मंत्री

1954 में, अर्थव्यवस्था के मुद्दों पर प्रधानमंत्री मुहम्मद अली बोगरा के मिलिट्री और गवर्नर-जनरल गुलाम मुहम्मद के साथ संबंध बिगड़ गए। इसके चलते कैबिनेट के पुनर्गठन के लिए दबाव बनाया गया और जनरल अयूब खान रक्षा मंत्री और इस्कंदर मिर्जा अक्टूबर 1954 में गृह मंत्री बने।

अयूब की सोच उनके रक्षा मंत्री बनते ही झलकने लगी। उनका एक सबसे बड़ा मकसद था- सेनाओं को राजनेताओं के हस्तक्षेप से बचाना। क्योंकि उन्हें राजनेताओं से एक नफरत सी थी। 1954 से 1958 के बीच अयूब ने बड़ी ही चतुराई से सिविल और मिलिट्री संबंधों को अपने पक्ष में मजबूत कर लिया था।

पश्चिमी ताकतों (खासकर अमेरिका) के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे, जिससे उन्हें सेना का आधुनिकीकरण करने और प्रभाव बढ़ाने में मदद मिली।

अयूब खान ने किया तख्तापलट

इसके बाद 27 अक्टूबर, 1958 को अयूब खान ने वो किया जो किसी ने सोचा भी नहीं होगा। खान ने सैन्य तख्तापलट कर राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा को पद से हटा दिया। बड़ी बात ये है कि ये वही इस्कंदर मिर्जा थे, जिन्होंने जूनियर अधिकारी अयूब खान को सेना प्रमुख बनाने के लिए प्रधानमंत्री लियाकत अली के सामने पैरवी की थी।

अयूब खान के तख्तापलट करते ही, पाकिस्तान में पहले सैन्य शासन की शुरुआत हुई। उन्होंने मार्शल लॉ घोषित किया, संविधान को निलंबित किया और खुद पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए। खान ने पाकिस्तान की सेना और राजनीतिक तंत्र पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया।

खुद को फील्ड मार्शल घोषित किया

इसके करीब पांच साल बाद 1959 में, अयूब खान ने खुद को फील्ड मार्शल के पद पर प्रमोट किया, जो सर्वोच्च सैन्य पद था। हैरानी की बात ये है कि अयूब खान ने किसी बड़े युद्ध या ऑपरेशन को लीड नहीं किया था, जिसके लिए उन्हें ये पद दिया जाता। तब पाकिस्तान में इस प्रमोशन के लिए कोई औपचारिक सैन्य मिसाल भी मौजूद नहीं थी।

अयूब ने अपने इन सभी कदमों को सही ठहराते हुए कहा, “अगर वर्तमान अराजक स्थितियों को और आगे बढ़ने दिया जाता तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करता।” उनका कहना था, “मेरा लक्ष्य एक ऐसे लोकतंत्र को बहाल करना था, जिसे लोग समझ सकें और काम कर सकें, न कि अनिश्चित काल तक शासन करना।”

1965 में भारत के साथ युद्ध और आर्थिक संकट के बाद बढ़ते जन अक्रोश और दबाव के चलते 1969 में अपने इस्तीफे तक अयूब खान पाकिस्तान के फील्ड मार्शल बने रहे। इस तरह से पाकिस्तान के पहले फील्ड मार्शल का खिताब उन्होंने खुद ही अपने नाम कर लिया।

असीम मुनीर का भी विवादों से पुराना नाता

अब एक नजर डालते हैं, वर्तमान परिस्थिति पर तो असीम मुनीर का रिकॉर्ड भी पाकिस्तान के भीतर बहुत अच्छा नहीं है। नवंबर 2022 से पाकिस्तान के सेना प्रमुख बने जनरल असीम मुनीर राजनीतिक हस्तक्षेप, सिविल-मिलिट्री टकराव और क्षेत्रीय अस्थिरता से जुड़े कई विवादों के केंद्र में रहे हैं।

असीम मुनीर को इमरान खान की सरकार में ISI का चीफ बनाया गया था, लेकिन उनके साथ कथित मतभेद के बाद उनका कार्यकाल केवल आठ महीने बाद जून 2019 में खत्म हो गया। कभी इमरान के बहुत खास माने जाने वाले मुनीर उनके कट्टर विरोधी हो गए और शहबाज सरकार ने सत्ता में आते ही उन्हें सेना प्रमुख बनाया।

मुनीर की अपनी सैन्य भूमिका के बावजूद पाकिस्तान की राजनीति में हस्तक्षेप करने के लिए खूब आलोचना होती है। उन पर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) पार्टी को दबाने का आरोप है।

इमरान की हत्या की साजिश रचने का आरोप

इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद 2023 में हुए दंगों में शामिल नागरिकों पर उन्होंने सैन्य अदालतों में मुकादमा चलवाया। इमरान खान ने मुनीर पर उनके खिलाफ साजिश रचने, समझौतों का उल्लंघन करने और यहां तक ​​कि उनकी हत्या की साजिश रचने तक का आरोप लगाया है।

याद कीजिए किस तरह अयूब खान ने अपनी पैरवी करने वाले इस्कंदर मिर्जा को राष्ट्रपति पद से हटाकर तख्तापलट किया था, कुछ इसी तरह मुनीर ने भी इमरान खान के पतन में अहम भूमिका निभाई।

कई रिपोर्ट में पूर्व अमेरिकी राजदूत जाल्मे खलीलजाद के हवाले से बताया, 9 मई की अशांति के दौरान, मुनीर ने कथित तौर पर वरिष्ठ अधिकारियों को धमकाया था। दंगों में शामिल लोगों के परिवारों को भी धमकी दी थी कि अगर उन्हें “कुछ हुआ तो वह अपने साथ दूसरों को भी ले डूबेंगे”। हालांकि इन दावों का पाकिस्तानी अधिकारियों ने खंडन किया था।

अप्रैल 2025 में मुनीर ने कश्मीर को पाकिस्तान की “गले की नस” बताया और मुसलमानों और हिंदुओं के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों पर जोर दिया, जो टू-नेशन थ्योरी की ओर इशारा करता है।

मुनीर 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के दौरान पाकिस्तान की ISI के प्रमुख थे और उन पर 2025 के पहलगाम आतंकी हमले का मास्टरमाइंड होने का भी आरोप है, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे। पहलगाम हमले से कुछ समय पहले उनके भड़काऊ भाषण को कश्मीर में आतंकवाद भड़काने की एक साजिश की तरह देखा जाता है।

पाकिस्तान के आम चुनाव में सेना का हस्तक्षेप

2024 के पाकिस्तानी आम चुनाव सैन्य हस्तक्षेप के आरोपों से प्रभावित हुए थे। रिपोर्ट्स बताती हैं कि असीम मुनीर के नेतृत्व में सेना ने सही नतीजों को रोकने के लिए चुनाव परिणामों में हेरफेर किया, जिसके कारण चुनाव रिजल्ट में देरी हुई और कई इलाकों में कम्युनिकेशन सर्विस को निलंबित कर दिया गया था।

अयूब और मुनीर की मानसिकताएं काफी हद तक मिलती-जुलती हैं। अयूब की तरह मुनीर भी नहीं चाहते कि सेना या पावर सेंटर से उनकी पकड़ छूट जाए। इसमें एक बड़ा कारण मुनीर पर लगे घोटालों के आरोप भी हैं। उन्हें डर है कि कहीं पद से हटने के बाद ये सभी मामले खुले तो उनका क्या होगा।

ऑपरेशन सिंदूर में भारत से मुंह की खाने के बाद भी शहबाज सरकार ने मुनीर के छवि को चमकाने और पाकिस्तानी सेना के टूटे हुए मनोबल को बढ़ाने के लिए उन्हें फील्ड मार्शल पद पर प्रमोट तो कर दिया, लेकिन पाक सरकार देश के इतिहास और ‘मुल्ला मुनीर’ की चालबाजियों को अब भी नहीं समझ पाई।

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