National-Budget 2025: आखिर मनमोहन सिंह ने बजट 1991 में क्या किया था, जिससे इंडिया की ग्रोथ को पंख लग गए? – #INA
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 1991 का पूर्ण यूनियन बजट पेश किया था। इस बजट की आज भी काफी चर्चा होती है। सवाल है कि आखिर इस बजट में ऐसा क्या था? तब देश की राजनीतिक स्थितियां कैसी थीं? तब भारत किस तरह की आर्थिक स्थिति से गुजर रहा था? इंडियन इकोनॉमी की ग्रोथ कितनी थी?
1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या लोकसभा चुनावों के बीच हो गई थी। चुनावों में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं। नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की अल्पमत सरकार बनी थी। इस सरकार के वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह थे। उन्होंने वित्त वर्ष 1991-92 का पूर्ण बजट 24 जुलाई, 1991 को पेश किया। इस बजट ने भारत की तेज आर्थिक ग्रोथ के लिए जमीन तैयार कर दी। इससे पहले इंडिया की ग्रोथ काफी सुस्त थी। लेकिन, मनमोहन सिंह के पहले बजट ने बीमार इकोनॉमी को ऐसी दवा दी, जिसका असर आज तक दिख रहा है।
मनमोहन सिंह ने सबसे पहले तेज ग्रोथ के रास्ते की बाधाओं को हटाया। विदेशी और देशी निवेश बढ़ाने के कदम उठाए। इसके लिए कई सेक्टर के दरवाजे प्राइवेट कंपनियों के लिए खोल दिए गए। परमिट राज को खत्म करने के लिए कानूनों में बदलाव किए गए। इससे देश के युवाओं के लिए प्राइवेट सेक्टर में नौकरी की राह खुली। इससे पहले नौकरी के लिए सिर्फ सरकारी विभागों के विज्ञापनों पर नजरें जमाए रहते थे। अंगड़ाई लेती इंडियन इकोनॉमी को इन युवाओं की ऊर्जा मिली। इकोनॉमी ने पैसेंजर ट्रेन की जगह एक्सप्रेस ट्रेन की तरह दौड़ना शुरू कर दिया।
इकोनॉमिस्ट्स का कहना है कि मनमोहन सिंह के रिफॉर्म्स का काफी ज्यादा असर देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर देखने को मिला। एक साल में विदेशी मुद्रा भंडार दोगुना हो गया। करीब 10 साल यानी 2001-02 तक यह छह गुना (54 अरब डॉलर) हो गया। यह इसलिए बहुत मायने रखता है कि मनमोहन सिंह के वित्तमंत्री बनने से पहले देश का विदेशी मुंद्रा भंडार सिर्फ कुछ हफ्तों के आयात के लिए पर्याप्त रह गया था।
अगर मनमोहन सिंह ने सही वक्त पर कदम नहीं उठाया होता तो इंडिया गंभीर संकट में फंस सकता था। जरूरी चीजों के आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं रहने से भारत की स्थिति ठीक वैसी हो सकती थी, जैसी 2022 में श्रीलंका की हो गई थी। लेकिन, मनमोहन सिंह ने बहुत सूझबूझ से इस संकट को टाल दिया था।
मनमोहन सिंह 5 साल तक वित्त मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने ऐसे कई कदम उठाए जिससे इंडियन इकोनॉमी की बुनियाद मजबूत हो गई। उन्होंने कॉर्पोरेट टैक्स यानी कंपनियों पर लगने वाले टैक्स में कमी की। डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स में इकोनॉमी की ग्रोथ को ध्यान में रख बदलाव किए। इससे टैक्स कलेक्शन बढ़ा। सरकार के हाथ में ज्यादा पैसे आने लगे। इससे टैक्स और जीडीपी का रेशियो बढ़ना शुरू हो गया। उसके बाद से सरकार चाहे कांग्रेस की बनी या बीजेपी की, हर वित्तमंत्री ने टैक्स सिस्टम को आसान बनाने और रेवेन्यू बढ़ाने की कोशिशें जारी रखीं।
सरकार की इनकम बढ़ने से ढांचागत सुविधाओं पर खर्च बढ़ाना मुमकिन हुआ। आज देश में ऐसे कई एक्सप्रेसवे हैं, जिन पर 100 की रफ्तार से गाड़ियां दौड़ रही हैं। पैसेंजर और गुड्स ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने के लिए रेल इंफ्रास्ट्रक्चर को लगातार बेहतर बनाने की कोशिश सरकार कर रही है। सरकार ने इस वित्त वर्ष में 11 लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत खर्च करने का टारगेट तय किया है। इसका मकसद इंडिया के इंफ्रास्ट्रक्चर को विश्व-स्तरीय बनाना है। सरकार मनमोहन सिंह के उस विजन पर आज भी काम कर रही है कि तेज आर्थिक ग्रोथ के लिए बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाना होगा।
Budget 2025: आखिर मनमोहन सिंह ने बजट 1991 में क्या किया था, जिससे इंडिया की ग्रोथ को पंख लग गए?
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