National-मुफ्त रेवड़ी की महंगी पॉलिटिक्स, जो दे रहा गंभीर संकट को न्यौता! सरकारी खजानों पर लग रही सेंध – #INA

Freebies Culture in India : मेरे चुनाव जीतने पर, हर घर के लिए एक मिनी हेलीकॉप्टर, एक करोड़ रुपये सालाना डिपोजिट, शादियों में सोने के जेवरात, तीन मंजिला घर सबको मिलेंगे…ये बातें सुनने के बाद आपको लग रहा हो कि बॉलीवुड के 90 की दशक की किसी कॉमेडी फिल्म का सीन चल रहा है। पर ये बातें किसी फिल्मी सीन का हिस्सी नहीं बल्कि अपने देश में होने वाले चुनाव में किया गया वादा है। हेलीकॉप्टर से लेकर तीन मंजिला घर तक, देने का वादा तमिलमाडु चुनाव में किया गया था। साल 2021 में मदुरै से चुनाव लड़ रहे निर्दलीय उम्मीदवार थुलम सरवनन ने ये सारे वादे किए थे।

हांलाकि सरवनन ने ये सारे वादे आम लोगों को रेवड़ी कल्चर से जागरुक करने के लिए किया था। अब आप सोच रहे होंगे रेवड़ी कल्चर क्या है और अगर कोई नेता मुफ्त में सामान दे रहा है तो उसका असर हमारे जेब पर कैसे पड़ रहा है? इस सब सवालों का जवाब जानने से पहले आपको हाल ही की गई सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी जरुर पढ़नी चाहिए।

रेवड़ी कल्चर पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सवाल पूछा, “आप मुफ्त की योजनाएं लागू करके परजीवियों या पैरासाइट की जमात नहीं खड़ी कर रहे हैं? दुर्भाग्य की बात है कि मुफ्त में मिलने वाली चीजों के कारण…. लोग काम करने से बचने लगे हैं। उन्हें मुफ्त में राशन मिल रहा है। उन्हें बिना कुछ काम किए ही पैसे मिल रहे हैं.” कोर्ट का कहना था कि सरकार लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने पर फोकस करें। हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब कोर्ट ने फ्रीबीज को लेकर सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट, पहले भी कई मौकों पर मुफ्त रेवड़ी देने की आलोचना कर चुका है।

सुप्रीम कोर्ट ने रेवड़ी कल्चर को लेकर जो टिपण्णी की है, फिलहाल देश की हकीकत यही है। देश में पिछले दो से तीन सालों में ‘रेवड़ी कल्चर’ तेजी से बढ़ी है, क्योंकि ये चुनाव जीतने के लिए नेताओं के ये रास्ता थोड़ा आसान लगने लगा है। और अगर जनता की बात की जाए तो अगर कोई चीज मुफ्त में मिल रही है तो फिर लेने से क्यों हिचकें। राज्य-दर-राज्य सोशल वेलफेरय की नाम पर अब ‘रेवड़ी’ का चलन हो चुका है। रेवड़ी कल्चर क्या है और भारत में इसका चलन कब से हुआ आइए इसे पहले जानते हैं।

कहां से हुई रेवड़ी कल्चर की शुरुआत

रेवड़ी कल्चर या फ्रीबीज क्या है, इसकी परिभाषा भारत में तय नहीं है। 2022 के जुलाई महीने में पहली बार यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। वहीं अक्टूबर 2024 में इस पर आखिरी बार सुनवाई हुई थी, तब केंद्र सरकार से मुफ्त रेवड़ी की परिभाषा देने के लिए कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट भले फ्रीबीज को लेकर सख्त टिप्पणी करें, लेकिन फ्रीबीज के समर्थन में सभी राजनीतिक पार्टियां है। भारत में इसकी शुरुआत भी दशकों पहले हो चुकी है। वोट के बदले मुफ्त चीजें देने का चलन देश में सबसे पहले 60 के दशक में देखा गया था।

इसकी शुरुआत 1967 में तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में हुई थी। उस समय द्रमुक ने एक रुपये में डेढ़ किलो चावल देने का वादा किया था। इस वादे के दम पर द्रमुक ने तमिलनाडु से कांग्रेस का सफाया कर दिया था। उस दौर में ही अकाली दल ने पंजाब में किसानों को फ्री बिजली देने का वादा किया। तब से आज तक यह सिलसिला चलता जा रहा है। तमिलनाडु से शुरू हुआ यह मर्ज धीरे-धीरे सभी राज्यों में फैल चुका है।

चुनाव से पहले वादों की बौछार

2006 में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने थे। तब डीएमके ने सरकार बनने पर सभी परिवारों को फ्री कलर टीवी देने का वादा कर दिया। इन चुनाव में डीएमके ने को जीत मिली। पार्टी ने तर्क दिया कि हर घर में टीवी होने से महिलाएं साक्षर होंगी और सोशल चेंज आएगा। अब ऐसे में सवाल उठता है क्या फ्रीबीज और सरकार की वेलफेयर योजनाएं एक ही हैं या अलग-अलग? आमतौर पर फ्रीबीज का ऐलान चुनाव से पहले किया जाता है, जबकि वेलफेयर स्कीम्स किसी भी समय लागू की जाती है।

RBI जता चुका है चिंता

राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए वादों की बौछार तो कर देती हैं, लेकिन इसका बोझ सरकारी खजाने पर पड़ता है। टैक्सपेयर के पैसे का इस्तेमाल कर बांटी जा रहीं फ्रीबीज सरकार को ‘आर्थिक संकट’ की ओर धकेल सकती हैं। साल 2023 में ‘स्टेट फाइनेंसेस: अ रिस्क एनालिसिस’ नाम से आई आरबीआई की रिपोर्ट में फ्रीबीज पर काफी चिंता जताई गई थी। आरबीआई की इस रिपोर्ट में उन पांच राज्यों के नाम दिए गए हैं, जिनकी स्थिति बिगड़ रही है. इनमें पंजाब, राजस्थान, बिहार, केरल और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अब राज्य सरकारें सब्सिडी की बजाय मुफ्त ही दे रही हैं।

पांच साल में राज्य सरकारों का सब्सिडी पर खर्च 60% से ज्यादा बढ़ गया है। मार्च 2019 तक सभी राज्य सरकारों पर 47.86 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो मार्च 2023 तक बढ़कर 76 लाख करोड़ से ज्यादा हो गया। हम सभी को ये सीधा सा गणित तो मालूम ही हो कि कमाई कम है और खर्चा ज्यादा. तो इस खर्च को पूरा करने के लिए कर्ज लेना होगा।

भारत में अधिकतर राज्यों में इस समय महिलाओं को सीधे कैश ट्रांफर जैसे स्कीम से लुभाया जा रहा है। मध्यप्रदेश से महिलाओं को कैश देने की कामयाब स्कीम देश के 13 राज्यों ने अपना ली है। इन राज्यों में महिलाओं के हर साल दो लाख करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं। अभी हाल ही में बीते दिल्ली चुनाव में पार्टियों ने दिल्ली में मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी जैसे वादों के साथ-साथ महिलाओं को 2500 रुपए प्रतिमाह देने का वादा किया। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल दिल्ली में 62 हज़ार करोड़ आमदनी होने का अनुमान है जबकि खर्च ₹64 हज़ार करोड़ होने का अनुमान है।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में सड़क, पुल जैसे इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए इस साल ₹7 हज़ार करोड़ कम पड़ गए। दिल्ली सरकार ने पिछले वर्षों में इंफ़्रास्ट्रक्चर के लिए जितना बजट रखा था उससे 39% कम खर्च किया। वहीं कांग्रेस भी कर्नाटक और तेलंगाना में मुफ्त रेवड़ी के सहारे ही सत्ता में है। झारखंड में जेएमएम ने भी फ्रीबीज का जमकर इस्तेमाल किया है, यहां महिलाओं को 2500 रुपए प्रतिमाह दिया जा रहा है।

राज्यों पर बढ़ता कर्ज का बोझ

मुफ्त रेवड़ी के चक्कर में महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्य अब राजकोष के घाटे से जूझ रहे हैं। इनमें से कई राज्यों को सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने में भी दिक्कत हो रही है। यही नहीं, फंड की कमी की वजह से कई राज्यों को अब अपने पैसे को खर्च करने में विकल्प को चुनना पड़ रहा है। महाराष्ट्र सरकार वित्तीय तनाव कम करने के लिए कई योजनाओं पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है, ताकि आने वाले वर्षों में वित्तीय स्थिति को सुधारा जा सके। 2024-25 के बजट में राज्य के वित्तीय घाटे का अनुमान 1.10 लाख करोड़ रुपये था, जो अब बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपये के पार जाने की संभावना है।

कर्ज का बढ़ रहा बोझ

मध्य प्रदेश लाडली बहना 3.8 लाख करोड़ कर्ज
महाराष्ट्र लाडकी बहीण योजना 7.8 लाख करोड़ कर्ज
कर्नाटक राज्य सरकार की पांच गारंटी 6.65 लाख करोड़ कर्ज
पंजाब मुफ्त बिजली बस यात्रा 3.74 लाख करोड़
हरियाणा लाडो लक्ष्मी 3.17 लाख करोड़
झारखंड महतारी योजना 1.09 लाख करोड़

इस खबर का अंत हम एक चीनी कहावत से करते है, जिसमें कहा गया है, “किसी व्यक्ति को एक मछली दो और वह एक दिन के लिए खा सकता है। उसे मछली पकड़ना सिखाओ, और वह जीवन भर खा सकता है।”

मुफ्त रेवड़ी की महंगी पॉलिटिक्स, जो दे रहा गंभीर संकट को न्यौता! सरकारी खजानों पर लग रही सेंध


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