National-PFI अब भी एक्टिव, SDPI के नेशनल प्रेसिडेंट एमके फैजी की गिरफ्तारी के बाद हुए ये बड़े खुलासे – #INA

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एमके फैजी को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया है। उन पर प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के साथ आर्थिक संबंध रखने का आरोप है। सीएनएन-न्यूज18 को मिले दस्तावेजों के मुताबिक, पीएफआई का एसडीपीआई पर पूरा नियंत्रण था। इसमें पार्टी के उम्मीदवारों का चयन और फंडिंग जैसी अहम चीजें शामिल थीं।

एमके फैजी की गिरफ्तारी के बाद खुलासे

रेड के दौरान कई ऐसे दस्तावेज मिले हैं, जो दिखाते हैं कि एसडीपीआई की गतिविधियों को पीएफआई संचालित और नियंत्रित करता था। रिपोर्ट के अनुसार, एसडीपीआई अपने रोजमर्रा के काम, नीतियों, चुनावी उम्मीदवारों के चयन, कार्यक्रमों और कार्यकर्ताओं को संगठित करने के लिए पूरी तरह पीएफआई पर निर्भर थी। केरल में पीएफआई के मुख्यालय से एक दस्तावेज मिला है, जिससे पता चलता है कि पीएफआई भारत में इस्लामी आंदोलन को बढ़ाने के लिए ‘जिहाद के अलग-अलग तरीकों’ का इस्तेमाल करता था।

सूत्रों के अनुसार, पीएफआई अंदरूनी तौर पर खुद को इस्लामी आंदोलन बताता था, लेकिन बाहर से एक सामाजिक संगठन के रूप में दिखाने की कोशिश करता था। अपने मकसद को हासिल करने के लिए वह एसडीपीआई, एनसीएचआरओ और एनडब्ल्यूएफ जैसे संगठनों का सहारा लेता था। जब पूछताछ के दौरान एमके फैजी से इस दस्तावेज के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने पुष्टि की कि दस्तावेज में “संगठन” का मतलब पीएफआई और “पार्टी” का मतलब एसडीपीआई था।

जब्त दस्तावेज से बड़ा खुलासा

वहीं केरल में पीएफआई के मुख्यालय से एक और दस्तावेज मिला है, जो “फैजी साहब” को संबोधित एक पत्र है। इसमें राज्य विधानसभा और संसदीय चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया का जिक्र है। इस दस्तावेज से साफ होता है कि पीएफआई सीधे तौर पर एसडीपीआई के उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया में शामिल था। पत्र में बताया गया है कि उम्मीदवार चयन के लिए प्लान बनाया गया था, जिसमें संगठन के कई स्तरों की भागीदारी थी। इसमें “जिन्ना साहब” का भी जिक्र है, जिनकी पहचान एम. मोहम्मद अली जिन्ना के रूप में हुई है। वे 2018 से 2020 तक पीएफआई के राष्ट्रीय महासचिव थे और 2022 में पीएफआई के प्रतिबंधित होने तक संगठन का हिस्सा थे।

दस्तावेज से यह भी पता चलता है कि पीएफआई न केवल एसडीपीआई के उम्मीदवारों को चुनने में शामिल था, बल्कि उसने संसदीय क्षेत्रों में एसडीपीआई को निर्देश भी दिए। उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्टिंग और इंटरव्यू में राज्य सचिवालय की भूमिका थी। जब फैजी से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने स्वीकार किया कि “NWC” का मतलब राष्ट्रीय कार्य समिति** (National Working Committee) है और यह भी माना कि एसडीपीआई ने इस दस्तावेज में दिए गए कुछ निर्देशों का पालन किया था।

असली मकसद ‘जिहाद’ को बढ़ावा देना

सूत्रों के मुताबिक, ‘जिहाद’ पीएफआई और एसडीपीआई दोनों का अंतिम लक्ष्य था। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, एसडीपीआई शुरू से ही अपने रोजमर्रा के काम और फंडिंग के लिए पीएफआई पर निर्भर था। हालांकि ये संगठन सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में शामिल रहते थे, लेकिन उनका असली मकसद बिना किसी फतवे या डराने-धमकाने की रणनीति अपनाए ‘जिहाद को बढ़ावा देना’ था।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ‘पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों’ की वित्तीय गतिविधियों की जांच की। साल 2013 में कोच्चि में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने इस मामले की पड़ताल शुरू की थी, जिसे बाद में 2022 में दिल्ली में एनआईए को सौंप दिया गया। जांच में सामने आया कि ‘पीएफआई के सदस्यों ने भारत और विदेशों से पैसे जुटाने की साजिश रची।’ बैंकिंग सिस्टम, हवाला और दान के जरिए मिले इन फंड्स का भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया गया।

PFI अब भी एक्टिव, SDPI के नेशनल प्रेसिडेंट एमके फैजी की गिरफ्तारी के बाद हुए ये बड़े खुलासे


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