National-RBI Monetary Policy: इस बार MPC के लिए फैसले लेना उतना आसान नहीं होगा – #INA

भारी उतारचढ़ाव के बीच स्टॉक मार्केट्स की नजरें 6 जून पर लगी हैं। आरबीआई 6 जून को अपनी मॉनेटरी पॉलिसी का ऐलान करेगा। इस बार मॉनेटरी पॉलिसी की बैठक में फैसले लेना उतना आसान नहीं होगा। 1 अक्टूबर, 2021 को इतिहास बना था। आरबीआई ने रिटेल निवेशकों के लिए डायरेक्ट जी-सेक पोर्टल शुरू किया था। अब आप बगैर किसी इंटरमीडियरी के सीधे इस पोर्टल से बॉन्ड्स खरीद और बेच सकते हैं। इसका मतलब है कि आपको कोई ब्रोकरेज चार्ज चुकाने की भी जरूरत नहीं है।

ऑनलाइन अकाउंट ओपन करना बहुत आसान है और आपका बैंक अकाउंट फ्रंट ऑफिस (ट्रेडिंग ऐप) से लिंक्ड होता है। जैसे ही आप कोई Bonds खरीदते हैं पैसा आपके बैंक अकाउंट से निकल जाता है। फिर आपके स्पेशल डीमैट अकाउंट में बॉन्ड आ जाता है।

अगर आप इस पोर्टल से सॉवरेन गारंटी वाला बॉन्ड खरीद रहे हैं तो आपके प्रिसिंपल और इंटरेस्ट को भारत के राष्ट्रपति की गारंटी होगी। आपके बॉन्ड्स में इनवेस्ट करने के लिए कोई सीमा तय नहीं है। इसकी तुलना बैंक से करने पर हम देखते हैं कि बैंक में जमा पैसे की गारंटी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेश (DICGC) की तरफ से दी जाती है और इसकी लिमिट 5 लाख रुपये है। इसका मतलब है कि अगर बैंक में आपका सेविंग्स, करेंट और फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट है तो भी मैक्सिमम गारंटी प्रति ग्राहक 5,00,000 रुपये होगी।

इस वजह से RBI Bonds बैंक एफडी से अट्रैक्टिव दिखते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि बैंकों को क्यों पैसे की मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। बैंकों को नए डिपॉजिट जुटाने में मुश्किल आ रही है। RBI ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) के जरिए बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी डाल रहा है। लेकिन, बड़े अमाउंट का डिपॉजिट करने वाले लोग यील्ड की जगह अपने पैसे की सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं। आरबीआई नोट छाप सकता है और बॉन्ड्स के निवशकों को उनके पैसे तुरंत लौटा सकता है। लेकिन, बैंकों के पास यह सुविधा नहीं है। बड़े डिपॉजिटर्स इस बात को समझते हैं।

मैंने अपने हाल के अपने एक आर्टिकल में बताया था कि जापान का केंद्रीय बैंक इंटरेस्ट रेट बढ़ा सकता है। मैंन लिखा था कि इससे फाइनेंशियल मार्केट्स में कुछ हलचल पैदा हो सकती है। चूंकि जापान से काफी पैसा भारत आ रहा है ऐसे इसका असर पड़ सकता है। लेकिन, यह असर कितना बड़ा होगा यह कहना मुश्किल है।

उद्योग जगत इकोनॉमी को बढ़ाव देने के लिए इंटरेस्ट रेट्स में कमी की मांग कर रहा है। लेकिन, रेट्स में बहुत ज्यादा कमी इस वक्त सही नहीं होगा। अगर आरबीआई इंटरेस्ट रेट में ज्यादा कमी करता है तो कैश कैरी ट्रेड में अभी जो फायदा मिल रहा है, वह खत्म हो जाएगा और पैसा इंडिया से बाहर जाना शुरू हो जाएगा। इससे नुकसान होगा।

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यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि फाइनेंस अकाउंटिंग कीपिंग के डबल एंट्री सिस्टम पर आधारित होता है। लोन लेने वाला हर व्यक्ति कम इंटरेस्ट रेट चाहता है, जबकि बैंक में पैसा रखने वाला व्यक्ति ज्याद रेट्स चाहता है। खासकर मौजूदा हाई इनफ्लेश जैसी स्थिति में ऐसा देखने को मिलता है। इसलिए इस बार की मॉनेटरी पॉलिसी में आरबीआई के लिए फैसले लेना उतना आसान नहीं होगा।

विजय भंबवानी (लेखक एक सिस्टम आधारित प्रॉपरायटरी फर्म के सीईओ हैं।)

RBI Monetary Policy: इस बार MPC के लिए फैसले लेना उतना आसान नहीं होगा


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