National-'आरक्षण ट्रेन का डिब्बा बन गया है, इसमें बैठे लोग नहीं चाहते…': रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने सुनाई खरी-खरी – #INA

Reservation Row News: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने मंगलवार (6 मई) को भारत में जातिगत आरक्षण व्यवस्था की तुलना रेल के डिब्बे से की। जज ने कहा कि आरक्षण रेलगाड़ी के डिब्बे जैसा हो गया है। जो लोग इस डिब्बे में चढ़ते हैं, वे दूसरों को इसमें नहीं घुसने देना चाहते। महाराष्ट्र के पंचायत चुनाव में OBC आरक्षण पर सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “रिजर्वेशन रेलगाड़ी के डिब्बे की तरह हो गया है, जो लोग इसमें चढ़ गए हैं, वे दूसरों को इसमें आने नहीं देना चाहते।”
वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन याचिकाकर्ता की ओर से दलील दे रहे थे कि राज्य में राजनीतिक रूप से पिछड़े और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की जानी चाहिए। शंकरनारायणन ने कहा कि महाराष्ट्र के बंठिया आयोग ने ओबीसी को आरक्षण दिया था, बिना यह दावा किए कि वे राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं।
उन्होंने कहा, “बात यह है कि इस देश में आरक्षण का धंधा रेलवे की तरह हो गया है। जो लोग डिब्बे में घुस गए हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और उसमें घुसे। यही पूरा खेल है…। याचिकाकर्ता का भी यही खेल है।” जस्टिस कांत ने कहा कि राज्यों को अधिक वर्गों की पहचान करने के लिए बाध्य किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे आरक्षण के किसी भी लाभ से वंचित न हों। साथ ही कहा कि यह किसी एक विशेष परिवार या समूह तक सीमित नहीं होना चाहिए।
जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर, 2025 से 9 फरवरी, 2027 को अपनी रिटायरमेंट तक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के रूप में कार्य करेंगे। वह जस्टिस बीआर गवई का स्थान लेंगे, जो 14 मई को CJI बनने वाले हैं। साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत कोटा लागू करने के महाराष्ट्र सरकार के अध्यादेश को रद कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग को 4 सप्ताह के भीतर स्थानीय निकायों के चुनावों को अधिसूचित करने का निर्देश दिया है। दो जजों की पीठ ने कहा कि ओबीसी आरक्षण के मुद्दे के कारण महाराष्ट्र में लंबे समय से लंबित स्थानीय निकाय चुनावों में और देरी नहीं की जा सकती। ओबीसी समुदायों को 2022 की रिपोर्ट से पहले राज्य में मौजूद आरक्षण दिया जाएगा।
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव 2016-17 में हुए थे। इसके देरी का मुख्य कारण ओबीसी उम्मीदवारों के कोटे को लेकर कानूनी लड़ाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा ओबीसी के लिए 27% कोटा लागू करने के अध्यादेश को रद्द कर दिया था।
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शीर्ष अदालत ने स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की जांच के लिए एक समर्पित आयोग के गठन का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी, एसटी और ओबीसी के लिए कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि चुनावों में ओबीसी आरक्षण से संबंधित मामले में यथास्थिति बनाए रखी जाए, जिसका अर्थ है कि उस समय ओबीसी कोटा लागू नहीं किया जा सकता है।
'आरक्षण ट्रेन का डिब्बा बन गया है, इसमें बैठे लोग नहीं चाहते…': रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने सुनाई खरी-खरी
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