National-संदीप दीक्षित ने लिया '12 साल पुरानी हार का बदला', जानें नई दिल्ली की 'रिवेंज' पॉलिटिक्स की कहानी – #INA
‘तेरी जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के’, दिल्ली चुनावी नतीजों के देखते हुए कांग्रेस के लिए अगर ये बात कही जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। दिल्ली विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आ चुका है और इन नतीजों ने आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। नतीजों में कांग्रेस पिछले दो चुनाव की तरह इस चुनाव में भी जीरो पर है। इस चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस की हार की हो रही है। कांग्रेस हार कर भी केजरीवाल से बदला लेने में कामयाब रही है। दिल्ली के नतीजों में सबसे मजेदार फैक्ट है ये है कि नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल जितने वाटों से हारे हैं लगभग उतना ही वोट संदीप दीक्षित को मिला है। इसके साथ ही अब ऐसा कहा जा रहा है कि केजरीवाल बीजेपी से नहीं, बल्कि कांग्रेस से हार गए हैं।
राजधानी की नई दिल्ली सीट से, इस चुनाव की सबसे हाईप्रोफाइल सीट थी। इस सीट से खुद आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल चुनावी मैदान में थे। वहीं भाजपा मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे दिखाई देने वाले परवेश वर्मा और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी इसी सीट से ताल ठोंक रहे थे। वहीं आज आए नतीजों में भाजपा के परवेश वर्मा ने बड़ा उलटफेर कर दिया।
केजरीवाल की हार की वजह बनी कांग्रेस!
12 साल पहले जैसे अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को हराकर सत्ता से बाहर किया था ठीक उसी तरफ परवेश वर्मा ने केजरीवाल की विदाई तय कर दी। नई दिल्ली सीट से परवेश वर्मा ने अरविंद केजरीवाल को 4 हजार वोटों से हरा दिया। परवेश वर्मा को 30088 वोट मिले तो वहीं केजरीवाल को करीब 26 हजार वोट मिले। नतीजों में सबसे हैरान करने वाली बात ये रही कि यहां से कांग्रेस को उतने ही वोट मिले जितना भाजपा और आप के बीच जीत हार का अंतर रहा। कांग्रेस के संदीप दीक्षित को नई दिल्ली सीट से 4568 वोट मिले। इस जीत के साथ संदीप दीक्षित ने साल 2013 में अपनी मां शीला दीक्षित की हार का बदला ले लिया है। साल 2013 में इस सीट पर ही अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को चुनावों में मात दी थी। संदीप दीक्षित चुनाव नहीं जीत सके हों लेकिन वह केजरीवाल की हार की वजह बनें हैं।
बता दें कि नई दिल्ली सीट को लेकर एक कहावत काफी फेमस है कि इस सीट से जिस भी पार्टी का नेता चुनाव जीतता है कि राजधानी में उसकी ही सरकार बनती है। बता दें कि साल 1993 से इस सीट पर सात चुनाव हो चुके हैं और इन चुनावों में तीन-तीन बार कांग्रेस और आप को जीत मिली। वहीं, एक बार भाजपा ने यहां जीत हासिल की। 1998, 2003 और 2008 में यहां से शीला दीक्षित और 2013, 2015 और 2020 में अरविंद केजरीवाल इस सीट पर लगातार तीन-तीन बार जीतकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। वहीं साल 1993 में इस सीट को जब गोल मार्केट के नाम से जाना जाता था तो यहां से भाजपा के कीर्ती आजाद ने जीत हासिल की थी और दिल्ली में उस समय भी भाजपा की ही सरकार बनी थी।
संदीप दीक्षित ने लिया '12 साल पुरानी हार का बदला', जानें नई दिल्ली की 'रिवेंज' पॉलिटिक्स की कहानी
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