देश – इस मुस्लिम देश ने पाकिस्तान से खरीदे लड़ाकू विमान, भारत के करीबी देश से है दुश्मनी; क्या होगा असर? – #INA
हाल ही में पूर्वी यूरोप और एशिया के मध्य में बसे मुस्लिम बाहुल अजरबैजान ने पाकिस्तान से JF-17 ब्लॉक III लड़ाकू विमानों को खरीदा है। यह देश पाकिस्तान के बाद दुनिया का तीसरा ऐसा देश बन गया जिसने इस विमान को अपने शस्त्रागार में शामिल किया है। इससे पहले इराक ने भी इन विमानों को खरीदा था। अजरबैजान के साथ हुई इस डील की अनुमानित लागत 1.6 बिलियन डॉलर बताई जा रही है, जिसमें विमान के साथ-साथ हथियार और प्रशिक्षण भी शामिल हैं। इस डील ने दक्षिण एशियाई और यूरोपीय रक्षा विश्लेषकों का ध्यान खींचा है, क्योंकि यह भारत और उसके सहयोगी देशों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो सकता है।
कितना ताकवर है JF-17 ब्लॉक III?
JF-17 ब्लॉक III, पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स और चीन की चेंगदू एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री ग्रुप द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया एक हल्का, सिंगल-इंजन वाला लड़ाकू विमान है। यह अत्याधुनिक एवियोनिक्स, एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) रडार, और लंबी दूरी की मिसाइल क्षमताओं से सुसज्जित है। यह विमान हवा-से-हवा और हवा-से-भूमि हमलों के लिए डिजाइन किया गया है और मध्यम और निम्न ऊंचाई पर अपनी क्षमताओं के लिए जाना जाता है। इस विमान की विशेषताएं इसे एक बहुपयोगी लड़ाकू विमान बनाती हैं, जो न केवल रक्षा बलों की क्षमताओं को बढ़ाती हैं, बल्कि आधुनिक युद्ध के विभिन्न परिदृश्यों में भी कारगर साबित होती हैं। हालांकि भारत को इस विमान से कोई खास खतरा नहीं है क्योंकि उसके पास पहले से ही राफेल और सुखोई जैसे ताकतवर लड़ाकू विमान पहले से ही मौजूद हैं।
भारत और उसके सहयोगियों के लिए क्या हैं रणनीतिक चुनौतियां?
अजरबैजान की वायु सेना में JF-17 ब्लॉक III की तैनाती से सीधा खतरा भले ही भारत को न हो, लेकिन यह पाकिस्तान और उसके निकटवर्ती सहयोगी देशों की सैन्य क्षमताओं को मजबूत करता है। इसके अलावा, यह भारत के बेहद करीबी देश आर्मेनिया के लिए भी खतरा बन सकता है। अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं, मुख्यतः नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर। यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्सा माना जाता है, लेकिन इसमें आर्मेनियाई जातीय समूहों का प्रभुत्व है। 1990 के दशक से ही इस विवाद के कारण दोनों देशों के बीच कई बार सशस्त्र संघर्ष हुआ है। 2020 में, दोनों के बीच एक बड़ा युद्ध छिड़ा, जिसमें अजरबैजान ने तुर्की के समर्थन से नागोर्नो-काराबाख के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण हासिल किया। रूस ने संघर्षविराम में मध्यस्थता की, लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव अभी भी बना हुआ है, और समय-समय पर संघर्ष फिर से भड़क उठता है।
1. क्षेत्रीय सैन्य संतुलन पर प्रभाव
पाकिस्तान ने JF-17 ब्लॉक III को अपनी वायु सेना में पहले ही शामिल कर लिया है, और अब इसके मित्र देशों में इस विमान का निर्यात उसकी सैन्य शक्ति को और बढ़ाता है। अजरबैजान, पाकिस्तान का सहयोगी है, और इस कदम से पाकिस्तान को पश्चिमी एशिया और काकेशस क्षेत्र में सैन्य और कूटनीतिक लाभ मिल सकता है। इससे भारत की सामरिक स्थिति प्रभावित हो सकती है, खासकर अगर अन्य मित्र राष्ट्र भी पाकिस्तान से इसी प्रकार की खरीदारी करते हैं।
2. दक्षिण एशिया में हथियारों की दौड़
JF-17 ब्लॉक III की एडवांस तकनीक, विशेष रूप से इसके AESA रडार और लंबी दूरी की मिसाइल क्षमताओं, से भारत और पाकिस्तान के बीच हथियारों की दौड़ तेज हो सकती है। भारत के पास पहले से ही एडवांस राफेल और सुखोई-30MKI लड़ाकू विमान हैं, लेकिन इस हथियार प्रणाली की तैनाती से पाकिस्तान अपनी वायु क्षमता में मजबूती हासिल कर सकता है।
अजरबैजान बनाम आर्मेनिया लड़ाई में भारत किसका समर्थन करता है?
भारत का रुख अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच के संघर्ष में काफी संतुलित और कूटनीतिक रहा है। भारत किसी भी पक्ष का खुला समर्थन नहीं करता है, बल्कि वह दोनों देशों के बीच शांति और वार्ता के माध्यम से विवादों को हल करने का पक्षधर है। भारत ऐतिहासिक रूप से आर्मेनिया के साथ अच्छे संबंध रखता है, और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और कूटनीतिक संबंध मजबूत हैं। आर्मेनिया उन कुछ देशों में से एक है जिसने भारत के जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर भारत का समर्थन किया है। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच व्यापार और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग जारी है। हालांकि, नागोर्नो-काराबाख विवाद पर भारत ने कभी भी सार्वजनिक रूप से किसी पक्ष का समर्थन नहीं किया है। भारत का आधिकारिक रुख इस मुद्दे पर यह रहा है कि वह किसी भी प्रकार की हिंसा का विरोध करता है और इस विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की वकालत करता है।
क्या भारत आर्मेनिया को हथियार आपूर्ति करता है?
भारत ने हाल के वर्षों में आर्मेनिया को हथियारों की आपूर्ति की है। 2022 में, भारत ने आर्मेनिया के साथ एक बड़ा रक्षा समझौता किया, जिसके तहत भारत ने आर्मेनिया को पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम, एंटी-टैंक मिसाइलें, और अन्य गोला-बारूद की आपूर्ति की। यह सौदा करीब 2,000 करोड़ रुपये का था और इसका उद्देश्य आर्मेनिया की सैन्य क्षमताओं को मजबूत करना था। आर्मेनिया सैन्य सहायता के लिए तेजी से भारत की ओर रुख कर रहा है, 2020 में हस्ताक्षरित 2 बिलियन डॉलर की रक्षा साझेदारी के हिस्से के रूप में आकाश-1 एस वायु रक्षा प्रणाली सहित भारतीय निर्मित हथियार प्रणालियों की महत्वपूर्ण खरीद कर रहा है। भारत की ओर आर्मेनिया का झुकाव रूसी सैन्य आपूर्ति पर अपनी पारंपरिक निर्भरता से दूर जाने का संकेत देता है।
भारत का आर्मेनिया को हथियारों की आपूर्ति करना उसके बढ़ते रक्षा निर्यात का हिस्सा है, और यह आर्मेनिया के साथ उसके अच्छे कूटनीतिक संबंधों को भी दर्शाता है। हालांकि, भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह अपनी हथियार आपूर्ति नीति को किसी क्षेत्रीय संघर्ष का हिस्सा बनाने के बजाय इसे व्यापारिक और सामरिक दृष्टिकोण से देखता है।
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