देश- सविता की सोच को सलाम! ट्राइसाइकिल में बना दी आटा चक्की की मशीन, अब दिव्यांग घर-घर जाकर पीसेंगे आटा- #NA

दिव्यांगों के लिए बनाई गई विशेष आटा चक्की वाली ट्राइसाइकिल.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शुक्रवार को बिहार के दौरे पर आईं. उनका कार्यक्रम राज्य के दरभंगा और मधुबनी जिले में था. उन्होंने दरभंगा में दिव्यांगों के लिए विशेष रूप से बनायी गई ऐसी ट्राइसाइकिल को फ्लैग ऑफ किया, जो न केवल बैट्री चालित है, बल्कि काफी सुविधाजनक भी है. इस पूरी मुहिम के पीछे मधुबनी की निवासी और दिल्ली यूनिवर्सिटी की सीवीएस की प्रोफेसर सह सीएसटीएस की फाउंडर प्रोफेसर सविता झा की सोच है.

सविता झा बताती हैं कि इसे बनाने का ख्याल तब आया, जब वह अपने गांव गई थीं. वह कहती हैं कि उन्हें कहीं जाना था. जब वह निकलने लगीं, तब उनकी मां ने कहा कि सत्तू पीकर के चली जाओ. अपनी मां के बातचीत के क्रम में ही पता चला कि उनके दरवाजे पर सत्तू को पीसने वाला आया था और सत्तू पीस करके चला गया था. सविता बताती हैं कि उनकी मां के द्वारा जब यह बताया गया कि दरवाजे पर नहीं सत्तू पीसने वाला आया था तो उनके लिए यह थोड़ा इंटरेस्टिंग लगा. उन्होंने तभी सोच लिया था कि वह कुछ अलग तरीके से इस कॉन्सेप्ट को और बढ़ाएंगी ताकि इससे समाज को भी फायदा मिल सके.

अलग चीज दान करने की थी योजना

सविता कहती हैं, आमतौर पर लोग स्कूलों में, आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं या फिर अन्य लोगों में वैसे ही चीजों को डोनेट करते हैं, जो हमेशा से डोनेशन में दिया जाता है. जैसे कोई कपड़ा, बेड देता है. कोई लड़कियों को सैनिटरी पैड देता है, लेकिन मेरी कोशिश यह थी कि मैं कुछ ऐसी चीजों को जरूर डोनेट करूं कि वह उनके लिए रोजी-रोटी का साधन बने. मेरे दिमाग में यह बात बैठ गई थी कि इस ट्राइसाइकिल मिल को लेकर के कुछ करना है, जिससे समाज को आने वाले दिनों में फायदा मिल सके.

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हल्का बनाने की थी सोच

सविता बताती हैं कि यह तो मैंने तय कर लिया था कि इसे शुरू करना है, लेकिन दिक्कत यह आ रही थी कि जो बाजार में अभी चलंत मिल है, वह काफी भारी है. उनको ऑपरेट करने और कहीं ले आने, ले जाने में दिक्कत होती है, जबकि मेरी सोच यह थी कि इसे कुछ इस तरीके से तैयार किया जाए कि इसके ऑपरेट और कहीं ले जाने में काफी आसानी हो. शुरू से ही मेरी सोच यह थी कि इसका उपयोग विशेष रूप से महिलाएं कर सकें, इस तरीके से बनाना है.

प्रोफेसर सविता बताती हैं, मेरे दिमाग में यह बात भी थी कि अगर भारी मिल होगा या टिपिकल होगा तो उसे ऑपरेट करने में सुविधा महसूस नहीं करेंगी. अगर किसी दिव्यांग के लिए इसे तैयार किया जाता है तो उसे और दिक्कत होगी. लिहाजा मेरी कोशिश यही थी कि इसका वजन काफी कम हो और इसे ऑपरेट करने में दिक्कत न हो. जब मैंने इसके लिए अपने दिमाग में योजना तैयार की, तभी मेरे पास यह सूचना आई की केंद्रीय वित्त मंत्री आ रही हैं और करीब 14 बैंक उनके इस कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं.

स्टार्टअप से किया संपर्क

प्रोफेसर सविता बताती हैं, इसके बाद मैंने अपने स्तर से इसके बारे में सोचा और एक स्टार्टअप से संपर्क किया. उनको हमने इस विशेष ट्राइसाइकिल मिल का डिजाइन तैयार करके भेजा और उनसे यह कहा कि इसे हल्का बनाना है, ताकि उसे ऑपरेट करने में महिलाओं को विशेष रूप से दिक्कत न हो. मेरी कोशिश यही थी कि इसे बनाने में काफी कम कीमत लगे, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इससे जोड़ा जा सके और ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ उठा सकें. इसके अलावा कुछ और भी सुविधा मुझे चाहिए थी. उन सबको फिर हमने पूरा किया.

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एक बार में तीन घंटे तक कार्य

प्रोफेसर सविता बताती हैं, इस मोबाइल ट्राइसाइकिल मिल में दो बैटरियां हैं, जिनमें एक बैकअप बैट्री है. इसकी क्षमता एक बार में तीन घंटे तक लगातार काम करने की है. इस विशेष ट्राइसाइकिल मिल से चना के अलावा गेंहू, मसाला को भी आराम से पीसा जा सकता है. बैट्री खत्म होने पर इसे रिचार्ज किया जा सकता है.

फेसबुक का भी लिया सहारा

प्रोफेसर सविता कहती हैं, हमारे सामने एक समस्या यह भी थी कि हम वैसे लोगों को खोजना चाहते थे, जो वाकई में इसके हकदार हैं. जो इसका लाभ उठा सकते हैं. इसके लिए मैंने सोशल मीडिया का सहारा लिया और अपने फेसबुक ग्रुप में इस बात को शेयर किया. इसमें मैंने क्राइटेरिया भी तय कर रखा था कि वैसे दिव्यांग जो कम से कम 50% या उससे ऊपर के हैं, उन्हें ही यह विशेष ट्राइसाइकिल मिल प्रदान किया जाएगा. इस बात का भी विशेष ख्याल रखा गया था कि इसका लाभ समाज के हर वर्ग और धर्म के लोगों को मिले.

ऐप से हो सकेगी बुकिंग

प्रोफेसर सविता बताती हैं कि मेरे इस मुहिम में कार्तिक झा नाम के युवक का पूरा सहयोग मिला. उन्होंने मेरी पूरी बातों को समझा. वह खुद एक वेंचर से जुड़े हुए हैं. खास बात यह कि कार्तिक ने ही इस बात का सुझाव दिया था कि अगर किसी के पास यह विशेष ट्राइसाइकिल मिल है तो लोगों को कैसे जानकारी मिलेगी? क्यों नहीं इसे एक ऐप के माध्यम से जोड़ा जाए, ताकि जिसे जरूरत होगी वह ऐप के माध्यम से इस ट्राइसाइकिल मिल को अपने पास बुलाकर के अपनी जरूरत की चीज को पिसवा सकता है.

एक लाख से ऊपर का खर्च

प्रोफेसर सविता कहती हैं, इस पूरे मुहिम में सबसे खास बात यह है कि इस विशेष ट्राइसाइकिल मिल को बनाने में तकरीबन एक लाख 20 हजार रुपए खर्च हुए हैं. इसे जिस किसी को भी दिया जा रहा है, उसे पूरी तरीके से फ्री दिया जा रहा है. यानी कि उसे एक भी पैसा नहीं देना है. सविता बताती हैं कि इसे जिस स्टार्टअप ने तैयार किया है उसे सिडबी ने सीएसआर के तहत फंड किया है. बाकी सपोर्ट हमारी संस्था करती है.

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