यूपी- यूपी उपचुनाव से कांग्रेस ने ऐसे ही नहीं खींचे कदम, इसके पीछे छिपा बड़ा सियासी मकसद? – INA
उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव से कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने से साफ इनकार कर दिया है. सपा ने कांग्रेस के लिए यूपी में दो सीटें गाजियाबाद और खैर सीट छोड़ी थी. इन दोनों ही सीट के समीकरण और जीत की संभावना को बेहद कम देखते हुए, कांग्रेस ने उपचुनाव से दूर रहने का फैसला किया है, लेकिन अब कांग्रेस इसके जरिए महाराष्ट्र में सपा से भी बड़ा दिल दिखाने की उम्मीद लगाए हुए है. इस तरह कांग्रेस ने बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत दांव चला है.
कांग्रेस को बिना विश्वास में लिए ही सपा की तरफ से 7 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए गए थे, जिसके बाद से दोनों के बीच तनाव की स्थिति बन गई थी. ऐसे में कांग्रेस ने साफ कह दिया है कि वो उपचुनाव नहीं लड़ेगी बल्कि सपा का समर्थन करेगी. सपा उपचुनाव में सभी 9 सीटों पर लड़े और कांग्रेस पूरी मदद करेगी. कांग्रेस उत्तर प्रदेश उपचुनाव में पांच सीटें मांग रही थी, लेकिन सपा सिर्फ खैर और गाजियाबाद विधानसभा सीट ही दे रही थी.
खैर-गाजियाबाद सीट का समीकरण
गाजियाबाद और खैर सीट कांग्रेस अपने लिए बेहतर नहीं मान रही है. खैर सीट पर कांग्रेस 44 साल से नहीं जीती तो गाजियाबाद में 22 साल से खाता नहीं खुला. इन दोनों ही सीटों पर सपा का कोई खास जनाधार नहीं है. खैर सीट पर सपा अपना खाता तक नहीं खोल सकी जबकि गाजियाबाद में सिर्फ एक बार उपचुनाव में जीती है. बीजेपी 2017 से लगातार तीन बार से दोनों ही सीटें जीतने में कामयाब रही थी. यही वजह है कि कांग्रेस ने उपचुनाव की दोनों ही सीटों पर सपा को समर्थन करने का ऐलान किया है.
कांग्रेस किन सीटों की कर रही मांग?
कांग्रेस यूपी उपचुनाव में मझवां, मीरापुर और फूलपुर सीट के साथ खैर और गाजियाबाद सीट पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही थी. इन पांचों सीट पर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों का कब्जा था. कांग्रेस की रणनीति थी कि विपक्षी कब्जे वाली सीटों में से कई सीटों पर मुस्लिम वोटर और अतिपिछड़े वर्ग के मतदाता निर्णायक भूमिका में है. इसमें उसकी कोशिश मंझवा, फूलपुर और मीरापुर सीट को लेकर थी, लेकिन सपा ने इन तीनों ही सीटों को अपने पास रखा और खैर और गाजियाबाद जैसी टफ सीटें वो कांग्रेस को दे रही थी.
कांग्रेस की क्या स्ट्रैटजी?
कांग्रेस की यूपी में मन की मुराद पूरी न होने पर पार्टी ने उपचुनाव लड़ने के बजाय सपा को वॉकओवर देने फैसला किया है. इसके बहाने कांग्रेस ने महाराष्ट्र चुनाव में सपा से डील करने की स्ट्रैटजी बनाई है. कांग्रेस ने सपा के शीर्ष नेतृत्व को यह बता दिया है कि यूपी उपचुनाव में वह नहीं लड़ेगी. सपा इसके बदले महाराष्ट्र में या तो चुनाव न लड़े या फिर लड़े तो बेहद कम सीटों पर एक या दो सीटों पर चुनाव लड़े. महाराष्ट्र में कांग्रेस का सपा साथ दे. इस तरह से कांग्रेस ने सपा के सामने दो ऑफर रखे हैं, लेकिन सपा की तरफ से कोई आधिकारिक जवाब अभी नहीं आया है.
सपा-कांग्रेस की सियासी केमिस्ट्री
कांग्रेस और सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन तक मिलकर लड़ी थी. सपा-कांग्रेस की सियासी केमिस्ट्री यूपी लोकसभा चुनाव में हिट रही. सपा और कांग्रेस की सियासी जमीन यूपी में एक ही है. सपा का सियासी आधार मुस्लिम वोटबैंक पर टिका है. ऐसे में कांग्रेस को सपा बहुत ज्यादा सियासी स्पेस यूपी में नहीं देना चाहती है, क्योंकि उसकी मजबूती सपा के लिए टेंशन का सबब बन सकती है. इसी तरह महाराष्ट्र में सपा की सियासी मजबूती कांग्रेस के लिए भविष्य में टेंशन बन सकती है.
महाराष्ट्र में सपा की क्या मांग
यूपी उपचुनाव में कांग्रेस को मिलने वाली दोनों ही सीटों पर उसकी जीत की संभावना नजर नहीं आ रही है. सपा महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन के तहत 12 सीटें मांग रही है. सपा की नजर उन्हीं सीटों पर है, जिन पर मुस्लिम वोटर काफी निर्णायक स्थिति में है. सपा ने मुस्लिम बहुल पांच सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी कर दिया है, जिनमें से भिवंडी पश्चिम सीट पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी है.
“गठबंधन तो बना रहेगा”
सपा प्रमुख अखिलेश यादव बार – बार एक ही बात कर रहे थे कि सपा और कांग्रेस साथ है. इंडिया गठबंधन पहले जैसा ही है. इंडिया गठबंधन पीडीए के साथ चलेगा, लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस को बिना विश्वास में लिए उम्मीदवार के नामों का ऐलान कर दिया. ऐसे में गठबंधन धर्म निभाने की ज़िम्मेदारी अब उन्होंने कांग्रेस पर छोड़ दी है. अखिलेश ये नहीं चाहते हैं कि लोग कहें कि वे गठबंधन तोड़ने में लगे हैं. अखिलेश यादव बड़ी विनम्रता से कह रहे हैं कि गठबंधन तो बना रहेगा, लेकिन कांग्रेस इस बात को बखूबी समझ रही है. इसीलिए सपा को उसी की तरह जवाब देने के लिए, कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने से कदम पीछे खींचकर महाराष्ट्र की शर्त रख दी है.
यूपी में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा का गठबंधन था. विपक्ष के लिहाज से दलितों और मुस्लिमों की पहली पसंद कांग्रेस रही. जिस सीट पर बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस लड़ी, वहां तो बीएसपी का सफाया ही हो गया. बीजेपी को हराने के लिए बसपा प्रमुख मायावती का वोटबैंक भी कांग्रेस की तरफ चला गया. इसमें जाटव वोटर भी शामिल हैं. आंकड़े बताते हैं कि दलित वोटर को सपा और कांग्रेस में से किसी एक को चुनना पड़ा तो पहली पसंद कांग्रेस हो सकती है.
कांग्रेस-सपा का कॉमन वोटबैंक
अखिलेश यादव मुस्लिम और दलित समाज के इस मानस से वाकिफ हैं. इसीलिए गठबंधन तोड़ने का ठीकरा वे अपने माथे लेने को तैयार नहीं है. वे ये भी जानते हैं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का कॉमन वोटबैंक है इसीलिए एक का फायदा तो दूसरे का नुकसान आज नहीं तो कल तय है. अखिलेश यादव का फोकस 2027 का यूपी विधानसभा चुनाव है तो कांग्रेस की नजर भी उसी पर है. अखिलेश कांग्रेस से गठबंधन बनाए रखने के भरोसे के बहाने मुस्लिम और दलितों को अपने साथ साधे रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने भी अब उसी दांव से सपा को चित करने की रणनीति पर कदम बढ़ाया है.
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