यूपी- वाराणसी: भगवान धन्वन्तरि के दर्शन करने पहुंचे लोग, आरोग्य रहने का मांगा आशीर्वाद – INA
पूरे देश में मंगलवार 29 अक्टूबर को धूमधाम के साथ धनतेरस का त्योहार मनया गया. इस मौके पर काशी की 326 साल पुरानी परंपरा एक बार फिर दोहराई गई. साल में सिर्फ एक बार भगवान धन्वंतरि के दर्शन के लिए लोग काशी पहुंचे. इस दौरान लोगों ने आरोग्य का आशीर्वाद मांगा. 326 सालों से धनतेरस पर लोगों को भगवान धन्वंतरि के दर्शन करने का इंतजार रहता है. ये मंदिर वाराणसी के चौक इलाके के सुड़िया में स्थापित है.
भगवान धन्वंतरि को हिमालय से लाई गईं रस औषधियां और काष्ठ औषधियों का भोग लगाया गया. ब्राहमी, अश्वगंधा, अगर, मुसली, तगर और अनेक दुर्लभ जड़ी बुटियों को अर्पित किया गया. इन्हीं औषधियों का इस्तेमाल साल भर बनने वाली दवाइयों में किया जाता है.
चार भुजाओं वाली प्रतिमा
भगवान धन्वंतरि की अष्ट धातु से निर्मित सवा मन की मनमोहक छवि वाली चार भुजाओं वाली प्रतिमा आयुर्वेद और आरोग्य शास्त्र का सहज दर्शन कराती हैं. भगवान धन्वंतरि के एक हाथ में शंख है, जिससे वो आयुर्वेद के प्रसाद का वितरण करते हैं जबकि दूसरे हाथ में कलश है, जिससे अमृत रुपी औषधि छलकती है. तीसरे हाथ में जोंक है जो कि रक्त संचरण का संकेत है जबकि चौथे हाथ में चक्र शल्य चिकित्सा का प्रतीक है.
भगवान धन्वंतरि के दर्शन करने पहुंचे लोग
भगवान धन्वंतरि के दर्शन करने पहुंचे लोगों में औषधीय अत्तर लगवाने और प्रतिमा पर चढ़ाए गए फूल लेने की होड़ दिखी. ऐसी मान्यता है कि औषधीय गुणों वाले अत्तर की खुशबू व्यक्ति को अंदर तक तरोताजा बना देती है, जबकि चढ़े हुए फूल घर में रखने से परिवार पर आरोग्य रहने का आशीर्वाद बना रहता है.
कई रोगों का होता है इलाज
भगवान धन्वंतरि के मंदिर के ही बगल में स्थित धन्वंतरि निवास में आयुर्वेद की चिकित्सा को भी इतने ही साल हुए हैं. जहां असाध्य रोगों की चिकित्सा होती है. कैंसर, पार्किंसन, अलजाईमर और न्यूरो के कई जटिल रोगों का इलाज आयुर्वेद के जरिए यहां होता है. वैद्य राज कन्हैया लाल जी ने 326 साल पहले भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा स्थापित कराई और मंदिर बनवाया तब से दसवीं पीढ़ी ये काम करते आ रही है है.
वर्तमान में पंडित समीर कुमार शास्त्री, राम कुमार शास्त्री और नंद कुमार शास्त्री इस पीढ़ी को आगे बढ़ा रहे हैं. इनका दावा है कि ये दस पीढ़ी से काशी राज परिवार के राज वैद्य हैं और भगवान धन्वंतरि के आशीर्वाद से इस परंपरा ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी समेत नौ भारत रत्न विभूतियों का इलाज किया है. कहा जाता है कि परिस्थिति जब भी मानव सभ्यता के प्रतिकूल दिखने लगती है और कोई बड़ी विपदा आती है तो भगवान धन्वंतरि अपने अमृत कलश से कोई न कोई औषधीय चमत्कार निकालते हैं. कोविड के दिनों में आयुर्वेदिक काढ़ा कुछ वैसा ही चमत्कार था.
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