खबर शहर , दिवाली की तिथि पर अंतिम मुहर: शास्त्रार्थ के लिए नहीं पहुंचे गणेश्वर शास्त्री, 31 अक्तूबर को ही मनेगी दीपावली – INA

दीपावली की तिथि पर शास्त्रार्थ के लिए राममंदिर का मुहूर्त देने वाले गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ नहीं पहुंचे। इसके बाद काशी विद्वत परिषद ने देश भर में 31 अक्तूबर को ही दीपावली मनाने की तिथि पर अंतिम मुहर लगा दी। एक नवंबर को दीपावली का पर्व मनाने का मुहूर्त बताने वाले विद्वानों को काशी विद्वत परिषद ने मंगलवार को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया था।

काशी विद्वत परिषद के ज्योतिष प्रकोष्ठ के अध्यक्ष प्रो. रामचंद्र पांडेय और समन्वय प्रो. विनय कुमार पांडेय ने कहा कि दीपावली का पर्व 31 अक्तूबर को मनाना ही सर्वमान्य है। दीपावली की तिथि पर बेवजह का भ्रम फैलाना उचित नहीं है।

महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने कहा कि 29 अक्तूबर को दिन में दो बजे नगवां स्थित विद्वत परिषद के अध्यक्ष के आवास पर गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ समेत सभी विद्वानों को शास्त्रार्थ के लिए बुलाया गया था। देर शाम तक कोई भी शास्त्रार्थ के लिए नहीं पहुंचा। इससे साबित होता है कि काशी के विद्वत परिषद की ओर से दीपावली के लिए दी गई तिथि 31 अक्तूबर ही सर्वमान्य है।

किसी ने नहीं दिया शास्त्रार्थ का आमंत्रण


सांग्वेद विद्यालय के अध्यक्ष पं. विशेश्वर शास्त्री द्राविड़ ने कहा कि शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रण देने का यह तरीका उचित नहीं है। मुझे पता चला कि काशी विद्वत परिषद ने कोई पत्र जारी कर दीपावली की तिथि पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया है। लेकिन, हमारे पास किसी ने कोई सूचना नहीं दी। यह कोई तरीका नहीं होता है शास्त्रार्थ कराने का। गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ इस समय शहर में भी नहीं हैं। वहीं, दूसरी तरफ आज की तारीख काशी में कोई ऐसा विद्वान नहीं है जो दोनों पक्षों को सुनकर अपना फैसला दे सके। काशी नरेश स्व. विभूति नारायण सिंह इस तरह के मामलों में स्वयं हस्तक्षेप करते थे और दोनों पक्षों को सुनकर अपना निर्णय देते थे। गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने तो त्योहार के लिए मानक दे दिए थे। सभी लोग अपने-अपने पंचांग के अनुसार दीपावली का पर्व मना सकते हैं। इसमें कोई संशय नहीं था लेकिन काशी विद्वत परिषद का दावा पूरी तरह से सही नहीं है।

1963 में भी दीपावली की तिथि पर हुआ था ऐसा ही विवाद


ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि दीपावली पर इस साल जैसी ही परिस्थिति 1963 में भी हुई थी। 16 अक्तूबर 1963 में अमावस्या शाम 16:15 पर प्रारंभ हो रही थी और 17 अक्तूबर 1963 को 18:13 पर समाप्त हुई थी और सूर्यास्त 05:29 बजे था। तत्कालीन पंचांग में दीपावली 16 अक्तूबर को ही लिखी और मनाई गई क्योंकि उस दिन ही पूरा प्रदोष व अर्धरात्रि में था। 1963 और 2024 में तो अमावस्या का अंत व सूर्यास्त एक समान है। 2024 में एक नवंबर को सूर्यास्त 5:32 बजे और अमावस्या का अंत 6:16 पर है। 1963 में 16 अक्तूबर को ही दीपावली मनाई गई थी। 1963 के इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि परंपरा के अनुसार 31 अक्तूबर को ही दीपावली शास्त्रसम्मत है।


Credit By Amar Ujala

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