यूपी- जातियों के गणित में कैसे उलझा यूपी उपचुनाव, चैलेंज से घिरी बीजेपी तो सपा के पास है सक्सेस फॉर्मूला! – INA

उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए 20 नवंबर को मतदान होगा. इस लिहाज से प्रचार के लिए सिर्फ चार दिन का वक्त बचा है. सपा से लेकर बीजेपी और बसपा ने चुनावी बिसात पर जातीय समीकरणों की चौसर बिछा रखी है. लोकसभा चुनाव में बिखरे हिंदू वोटों को एकजुट करने के लिए सीएम योगी ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाले नैरेटिव सेट कर रहे हैं तो अखिलेश यादव ने ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ के दांव से अपने सक्सेस पीडीए फॉर्मूले से उपचुनाव जीतने की बिसात बिछाई है.

सपा और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने ओबीसी पर खास फोकस कर रखा है. सीट के सियासी मिजाज के लिहाज से दोनों ही दलों ने अपने-अपने कैंडिडेट उतारे हैं. इस तरह जातीय गुणा-भाग के चलते उपचुनाव पूरी तरह से उलझ गया है, जहां एक सीट पर बीजेपी के संग मजबूती से खड़ी जाति दूसरे सीट पर सपा के साथ खड़ी नजर आ रही है. गाजियाबाद से लेकर मझवां विधानसभा सीट तक ऐसी ही स्थिति दिख रही है और सीधी लड़ाई सपा-बीजेपी के बीच है लेकिन कुछ सीट पर बसपा ने चाल बिगाड़ रखी है.

जातीय बिसात पर उपचुनाव

अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में जिस जातीय फॉर्मूले के जरिए 37 सीटें जीती थी, जिसमें 25 पिछड़ी जाति के सांसद बने थे, उपचुनाव जीतने के लिए भी सपा ने वही दांव चला है. सपा के 9 प्रत्याशियों में चार मुस्लिम, तीन ओबीसी और दो दलित समुदाय से हैं. सपा ने ओबीसी में यादव, निषाद और कुर्मी समुदाय पर दांव खेला है. किसी भी सवर्ण समुदाय का उम्मीदवार नहीं उतारा है, जिसके संकेत साफ हैं कि सपा की रणनीति पीडीए फॉर्मूले से उपचुनाव जीतने की. सपा ने मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर मुस्लिम को टिकट दिया है, लेकिन यादव, कुर्मी और निषाद समुदाय के प्रत्याशी को उतारकर जीत को दोहराने की रणनीति है.

सपा के सक्सेस फॉर्मूले को काउंटर करने का दांव बीजेपी ने चला है. बीजेपी ने अपने कोटे की 8 सीटों में से चार सीट पर ओबीसी, तीन सवर्ण और एक दलित समुदाय से उम्मीदवार को उतारा है. बीजेपी ने ओबीसी में यादव, कुर्मी, मौर्य और निषाद समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं. बीजेपी की सहयोगी जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी मीरापुर सीट पर चुनाव लड़ रही है, जहां से अति पिछड़ी जाति से आने वाले पाल समुदाय से प्रत्याशी बनाया है. ऐसे ही बसपा ने एक दलित, दो मुस्लिम, चार सवर्ण और दो ओबीसी प्रत्याशी उतारे हैं.

ओबीसी वोट बिखरने का खतरा

लोकसभा चुनाव में गैर-यादव ओबीसी वोट खिसकने के चलते बीजेपी को यूपी में करारी मात खानी पड़ी थी और सपा को फायदा मिला था. यह बीजेपी के लिए बड़ा झटका था. पीडीए फॉर्मूले के जरिए ओबीसी के बड़े वोटबैंक को सपा अपने पाले में करने में कामयाब रही है. खासकर कुर्मी, मौर्य और निषाद समुदाय को. इसके अलावा दलित वोट ने भी बीजेपी और बसपा की जगह सपा-कांग्रेस गठबंधन को तवज्जो दी थी.

सीएम योगी आदित्यनाथ अपनी प्रचार शैली के सहारे जातीय सामंजस्य को साधने में लगे हैं और अपनी हर रैली में एक ही बात दोहरा रहे हैं ‘बंटेंगे तो कटेंगे’. इस तरह हिंदू एकता के मिशन पर बीजेपी उपचुनाव में अपनी जीत की उम्मीद लगाए हुए है. सीएम योगी के अलावा बाकी सभी नेता जमीन पर उतरकर समीकरणों और समाजों को एक करने और बंटने नहीं देने की कवायद में जुटे हैं. वहीं, सपा की पूरी कोशिश लोकसभा चुनाव में आए ओबीसी वोटों को साधकर रखने की है, जिसके लिए अखिलेश यादव अपनी रैलियों में एक ही बात दोहरा रहे हैं ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’. इसके जरिए ओबीसी की जातियों को एकजुट रहने की अपील कर रहे हैं.

ओबीसी वोट की रोचक लड़ाई

उपचुनाव की लड़ाई काफी रोचक बनती जा रही है और एक पैटर्न पर चुनाव होता नजर नहीं आ रहा है. हर सीट का अपना सियासी मिजाज और उसका जातीय समीकरण है. लोकसभा चुनाव में सपा के पक्ष में एकजुट हुए ओबीसी वोटों को बीजेपी ने जातियों में बिखरने का दांव चला है, जिसके चलते एक सीट पर जो जाति किसी एक पार्टी के साथ खड़ी है, वो दूसरी सीट पर दूसरी पार्टी के साथ दिख रही है. कटेहरी सीट पर कुर्मी वोट सपा के साथ खड़ा है तो निषाद वोटर बीजेपी के साथ दिख रहा है. ऐसे ही मझवां सीट पर मौर्य समाज बीजेपी के साथ खड़ा है तो निषाद समाज सपा के संग दिख रहा है.

कटेहरी सीट पर सपा के साथ खड़ा रहने वाला कुर्मी वोटर फूलपुर में बीजेपी के उम्मीदवार दीपक पटेल के साथ दिख रहा है. इसकी वजह यह है कि बीजेपी ने कुर्मी समाज का प्रत्याशी उतार रखा है. मझवां में सपा ने निषाद तो कटेहरी में कुर्मी को टिकट दिया है. बीजेपी ने मझवां में मौर्य और कटेहरी में निषाद जाति का प्रत्याशी उतारकर जातीय गणित को पूरी तरह से उलझा दिया है. बीजेपी ने ये सोची-समझी रणनीति के तहत दांव चला है. ओबीसी की जातियों में गठजोड़ न हो.

मीरापुर सीट पर आरएलडी ने पाल समुदाय के मिथलेश पाल को उतारा है तो सपा सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने मुस्लिम पर दांव लगा रखा है. गुर्जर-जाट बहुल होने के बाद भी पाल समाज को टिकट दिया है, जिसके चलते आरएलडी की सियासी टेंशन बढ़ गई है. गाजियाबाद सामान्य सीट होने के बाद भी सपा ने दलित प्रत्याशी उतारा है तो बीजेपी ने ब्राह्मण पर दांव खेला है, लेकिन बसपा ने वैश्य समुदाय पर दांव खेलकर जातीय गणित को पूरी तरह से उलझा दिया है.

करहल विधानसभा सीट पर सपा और बीजेपी दोनों ने ही यादव समुदाय के प्रत्याशी को उतारा है, लेकिन बसपा ने शाक्य समुदाय को प्रत्याशी पर दांव खेलकर सियासी समीकरण को गड़बड़ा दिया है. इस सीट पर पाल, शाक्य और कश्यप वोटों पर से बीजेपी की पकड़ कमजोर होने का खतरा मंडरा रहा है. कुंदरकी सीट पर बीजेपी ने रामवीर सिंह को उतारा है तो सपा से लेकर बसपा सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने मुस्लिम पर भरोसा जता रखा है. ऐसे ही खैर सीट दलित आरक्षित है, जिसके चलते सभी पार्टियों ने दलित उम्मीदवार उतारे हैं.


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