खबर मध्यप्रदेश – घास-फूस की कुटिया, बैलगाड़ी से संग बारात और डोली में दुल्हन की बिदाई… गोशाला को बना दिया वेडिंग डेस्टिनेशन… देखें तस्वीरें – INA

ग्वालियर में मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी लाल टिपारा गौशाला इन दिनों एक बार फिर अपने अनूठे प्रयोग के लिए चर्चाओं में है. इस बार चर्चा बेहद खास है, क्योंकि आज के आधुनिक दौर में युवा कहीं न कहीं अपनी सांस्कृतिक विरासत को भूलते जा रहे हैं. ऐसे में ग्वालियर की लाल टिपारा स्थित आदर्श गौशाला में अब डेस्टिनेशन वेडिंग भी करवाई जाएगी. यहां पूरा विवाह आयोजन विधि-विधान से वैदिक मंत्रों के साथ संपन्न कराया जाएगा.

यहां होने वाली शादी पर्यावरण को देखते हुए इको फ्रेंडली रहेगी और पारंपरिक रीति-रिवाजों का भी बेहद खास ख्याल रखा जाएगा. खास तौर पर सीमित मेहमानों के साथ कम खर्चे में पर्यावरण के अनुकूल और भारतीय पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार देसी लुक में देसी खान पान के साथ गौशाला में शादी का आयोजन किया जाएगा.

22 जनवरी 2025 को गोशाला में होगी पहली शादी

ग्वालियर के मुरार स्थित मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी लाल टिपारा गौशाला में 22 जनवरी को ग्वालियर शहर के ही रहने वाले शिवम गौर और अंजलि की पहली डेस्टिनेशन वेडिंग कराई जाएगी, जिसको लेकर लगभग पूरी तैयारी कर ली गई हैं. खास तौर पर भारतीय संस्कृति और गोवंश आधारित यह शादी समारोह रहेगा. सबसे पहले इस शादी में गौशाल में रहने वाली गायों के लिए हरे चारे का भंडारा करवाना होगा.

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शादी में 500 मेहमान तक की लिमिट रखी गई है और कम खर्चे में शादी को करवाया जाएगा. शादी में पंडितों के द्वारा वैदिक मंत्रों के साथ दिन के उजाले में ही शादी संपन्न कराई जाएगी. शादी पूरी तरह से इको फ्रेंडली रहेगी और शादी समारोह में फास्ट फूड खाने और नशे पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा.

भारतीय संस्कृति से होगी शादी

एक और जहां युवा अपनी शादी के खास दिन को बड़ी धूमधाम और चमक-धमक के साथ आधुनिक तौर तरीके से मनाना चाहते हैं. ऐसे में ग्वालियर के रहने वाले दूल्हे शिवम गौर ने आखिर क्यों इस तरह से भारतीय संस्कृति और विरासत के साथ गो संरक्षण का संदेश देते हुए शादी करने का फैसला किया है? दरअसल, शिवम गौर एक केबल ऑपरेटर हैं और लंबे समय से वे गो संरक्षण को लेकर भी कार्य कर रहे हैं.

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ऐसे में जब अब वह शादी कर रहे हैं तो उन्होंने सोचा क्यों न मैं भारतीय संस्कृति के अनुरूप ऐसी शादी करूं, जैसी पुराने जमाने में की जाती थी. इसके पीछे मकसद यह भी था कि गोवंश और पर्यावरण को बचाने के साथ नए जमाने के युवाओं में भारतीय संस्कृति की विरासत को कैसे जीवित करना है. इन सब में उनके साथ परिवार के लोगों के अलावा लाल

टिपारा गौशाला के संत स्वामी ऋषभ आनंद की विशेष प्रेरणा हैं, जिनकी वजह से यह सब संभव हो रहा है. इस पूरी शादी के आयोजन में ज्यादा रुपयों की बर्बादी भी नहीं हो रही है और कम खर्चे में आज के आधुनिक दौर के युवा अलग हटकर अपनी वेडिंग प्लान कर सकते हैं.

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गोशाला में बनाई गई 40 कुटिया

खास तौर पर शादी समारोह की व्यवस्थाओं में गोवंश से प्राप्त गोबर, दूध और उससे बनने वाले दही-घी का भी प्रयोग किया जाएगा. शादी में आने वाले मेहमानों के लिए गोबर का लेप कर वैदिक विधि से करीब 40 कुटिया बनाई गई हैं. एक कुटिया में 10 मेहमानों के रुकने की व्यवस्था की जाएगी. दुल्हन की विदाई के लिए जो बैलगाड़ी तैयार की गई है, उसमें भी गाय के गोबर का प्रयोग किया गया है.

वहीं मेहमानों के बैठने के लिए घास के सोफे बनाए गए हैं. दुल्हन को भी वरमाला के लिए खास पालकी में लाया जाएगा. वहीं इस शादी समारोह के लिए लाखों रुपए से सांस्कृतिक मंडप भी बनाया गया है, जिसमें लोगों को पर्यावरण के अनुकूल, भारतीय सस्कृति के करीब होने का एहसास होगा.

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शादी समारोह में गोवंश के गोबर के प्रयोग के अलावा उनके दूध और उससे बनने वाले दही और घी का भी प्रयोग किया जाएगा. जैविक और मोटे अनाज के व्यंजन इस दौरान मेहमानों लिए बनाए जाएंगे. इस पूरी शादी में फास्ट फूड और नशे पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा. कुल मिलाकर पुराने दिनों की यादों को ताजा करते हुए संगीत सम्राट तानसेन की संगीत नगरी ग्वालियर में शहनाई वादन के साथ सांस्कृतिक झलकें शादी में आकर्षण का केंद्र होंगी.

घास-फूस की कुटिया, बैलगाड़ी से दूल्हे संग बारात आना और डोली में दुल्हन की बिदाई होना… सभी को बैठाकर भोजन परोसा जाएगा और खास तौर पर सभी मेहमान भारतीय वेशभूषा में शादी में पहुंचेंगे. इस तरह का शादी समारोह निश्चित तौर पर मेहमानों को पुराने दिनों की यादों में ले जाएगा.


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