खबर फिली – फिल्टर कॉफी से प्यार, संगीत के लिए दीवानगी, राज कपूर की वो बातें, जो कोई नहीं जानता – #iNA @INA

ये मेरा गीत जीवन संगीत, कल भी कोई दोहराएगा | जग को हंसाने बहरूपिया, रूप बदल फिर आएगा|
जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां | जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां||

ये बोल हैं राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के मशहूर गाने के. वैसे तो किस्से-कहानियों और बातों का कोई सही वक्त नहीं होता. लेकिन अगर ये बातें वो व्यक्ति बताए, जिसने अपनी आंखों के सामने उन चीजों को होते हुए देखा हो तो फिर उन्हें पढ़ने का मजा भी कुछ अलग होगा. राज कपूर के 100वें जन्मदिन पर हमने एक सीनियर जर्नलिस्ट से बात की, जो खुद कई बार राज कपूर और कपूर खानदान से मिल चुके हैं. पत्रकारिता में 50 साल से ज्यादा समय से एक्टिव सीनियर जर्नलिस्ट चैतन्य पडुकोण मुंबई के दादर इलाके में स्थित शिवजी पार्क में बनाए गए दुर्गा पंडाल के पास हो रही शूटिंग के दौरान पहली बार राज कपूर से मिले थे.

दादर के इस पंडाल में ‘राम तेरी गंगा मैली’ की शूटिंग हो रही थी और 25 -26 साल के चैतन्य, दिव्या राणा का इंटरव्यू लेने सेट पर पहुंचे थे. इस सेट पर पहली बार उनकी राज कपूर से मुलाकात हुई. अपनी इस पहली मुलाकात को याद करते हुए चैतन्य पडुकोण कहते हैं कि उस दिन दो दिलचस्प बातें हुई थीं. जब दिव्या राणा के इंटरव्यू हो रहे थे तब गंगा का किरदार कौन करेगा, इस बात का खुलासा नहीं किया गया था. चर्चा हो रही थी कि जल्द ही आरके बैनर एक नए चेहरे को लॉन्च करने वाला है. जब दिव्या का इंटरव्यू करने के बाद चैतन्य बाहर निकले तब उन्होंने देखा कि मंदाकिनी उनके पिता के साथ वहां खड़ी थीं.

उस समय मंदाकिनी का नाम यास्मीन था. चैतन्य ने देखा कि उनके चेहरे पर आत्मविश्वास वाली मुस्कान थी और इसलिए उन्हें देखने के बाद उनके अंदर का पत्रकार जग गया और चैतन्य ने यास्मीन से पूछा कि क्या वो गंगा का किरदार निभाने वाली हैं? तब उन्होंने चैतन्य पडुकोण से मुस्कुराते हुए कहा कि आप ये राज साहब को क्यों नहीं पूछते? जब उन्होंने राज कपूर से सवाल पूछा तब मुस्कुराते हुए राज कपूर ने उन्हें कहा कि बेटा आप बड़े समझदार हो. लेकिन हो सके तो आप इस खबर को मत चलाना और चैतन्य ने भी राज कपूर का सम्मान करते हुए इस बात का कहीं जिक्र नहीं किया. उनके इस रवैये ने राज कपूर का दिल जीत लिया और फिर राज कपूर से ये पत्रकार कई बार मिले. आज राज कपूर के 100वें जन्मदिन के मौके पर उन किस्सों के बारे में जान लेते हैं, जिनके बारे में चैतन्य पडुकोण ने हमें बताया है.

शोमैन को नहीं पसंद था ‘शो ऑफ’

भले ही राज कपूर को उनके चाहने वालों ने ‘शोमैन’ का टाइटल दिया. लेकिन अपनी फिल्मों में उन्होंने ज्यादातर कॉमन मैन की कहानी बताई है. जी हां, उन्हें फिल्मों में ग्लैमर पसंद नहीं था, उनकी कहानियों में हीरो और हीरोइन के रोमांटिक सीन देखने मिलते थे, क्योंकि वो चाहते थे कि जो आम आदमी पैसे खर्च करके उनकी फिल्म देख रहा है, उसके पूरे पैसे वसूल हों और वो बड़े पर्दे का ये एक्सपीरियंस खूब एन्जॉय करे. लेकिन कभी भी इस लीजेंडरी फिल्म मेकर को अपने आप पर घमंड नहीं था और सभी के साथ वो बहुत विनम्रता से पेश आते थे.

उदहारण के तौर पर बात की जाए तो राज कपूर को बेड पर नींद नहीं आती थी, वो हमेशा जमीन पर सोते थे. ये किस्सा तो सबने सुनाया है. लेकिन वो कहते थे कि मुझे धरती मां की गोद में सोना पसंद है. जब मैं आज इस फ्लोर (जमीन) पर सो जाऊंगा, तब जब कल मेरी फिल्म फ्लोर पर जाएगी, तब मैं उस पर अच्छे से काम कर पाऊंगा.

कॉफी पीना पसंद करते थे राज कपूर

राज कपूर चेंबूर शिफ्ट होने से पहले मुंबई के माटुंगा इलाके में रहते थे. इस इलाके में आज भी ज्यादातर तमिल परिवार रहते हैं. उनके साथ रहकर राज कपूर की अंग्रेजी बहुत अच्छी हो गई थी. साथ ही इस इलाके में मिलने वाली फिल्टर कॉफी जिसे साउथ में ‘फिल्टर काफी’ कहते हैं, वो राज कपूर को बेहद पसंद आने लगी. अपने स्टूडियो में भी वो अपने कुक से इस तरह की कॉफी बनवाते थे. वैसे तो वो कॉफी को वो कॉफी ही बोलते थे. लेकिन इस बीच वो ये जरूर वो बताते थे कि माटुंगा में जो ‘फिल्टर काफी’ मिलता है, वो उन्हें बहुत पसंद है.

जानें क्यों अपने गानों में कोरस रखते थे राज कपूर

राज कपूर अपनी फिल्मों के ज्यादातर गानों में कोरस रखते थे. उनके गानों में कोरस रखने के पीछे एक बड़ी ही दिलचस्प वजह थी. वो कहते थे कि अगर लता मंगेशकर ने कोई गाना गाया हो तो उसे गाने का आत्मविवश्वास सभी के पास नहीं होता, लेकिन जब इस किसी गाने के साथ कोरस जुड़ जाता है, तब जिसे गाना नहीं आता, वो भी इस गाने को बड़े ही आराम से गा सकता है. श्री 420 का उनका गाना ‘ईचक दाना बीचक दाना दाने ऊपर दाना’ इसका सबसे बड़ा उदहारण है. सिर्फ राज कपूर ही नहीं कई फिल्म मेकर्स के कोरस वाले गाने हमेशा हिट रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि राज कपूर उसके पीछे की साइकोलॉजी अच्छे से जानते थे.

अपनी फिल्मों के म्यूजिक की तरफ उनका खास ध्यान था. जितनी शिद्दत से वो फॉरेन म्यूजिक सुनते थे, उतने ही प्यार से वो लोक संगीत भी सुनते थे. वो म्यूजिशियन के साथ खुद बैठकर अपनी फिल्मों का म्यूजिक बनवाते थे. उन्हें इंस्ट्रूमेंट से लेकर सुर-ताल सभी का ज्ञान था. उनकी संगीत के लिए दीवानगी इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने चैतन्य पडुकोण से ये भी कहा था कि अगर मैं बतौर एक्टर सफल न होता, तो मैं म्यूजिशियन जरूर बनता.

पापा नहीं राज साहब

राज कपूर के तीनों बच्चे उन्हें पापा, पप्पा और डैड नहीं बल्कि राज साहब बुलाते थे. दरअसल, राज कपूर के घर लगातार लोगों का आना-जाना रहता था. उन्हें घर और स्टूडियो में मिलने आने वाले लोग उन्हें अक्सर राज साहब बोलते थे और इसलिए उनके तीनों बच्चे भी उन्हें राज साहब ही बुलाने लगे थे.

चार्ली चैपलिन के फैन थे राज कपूर

आरके स्टूडियो में राज कपूर के ऑफिस में चार्ली चैपलिन का एक स्टैच्यू था. राज कपूर चार्ली चैपलिन के बहुत बड़े फैन थे. उनके कई किरदारों में चार्ली चैपलिन की झलक दिखी है. उनसे प्रेरित होकर उन्होंने मुस्कराहट के साथ बड़े पर्दे पर दुख दिखाना शुरू कर दिया. जी हां, आमतौर पर जब एक्टर को ये दिखाना होता है कि वो दुखी है, उन्हें दर्द हो रहा है तो वो अपने चेहरे पर दर्द के इमोशन दिखाते हैं . लेकिन राज कपूर ने इंडियन फिल्मों में एक नया ट्रेंड शुरू कर दिया था. वो दर्द भरे गानों को गाते हुए भी चेहरे पर मुस्कान रखते थे. जिससे उन्हें देखने वालों को ये दर्द और भी प्रभावी तरीके से महसूस होता था. आज भी कई एक्टर राज कपूर द्वारा शुरू किया हुआ ट्रेंड फॉलो करते हैं. ये अनोखा स्टाइल उन्होंने चार्ली चैपलिन को देखकर सीखा था.


Source link

Back to top button
Close
Log In
Crime
Social/Other
Business
Political
Editorials
Entertainment
Festival
Health
International
Opinion
Sports
Tach-Science