खबर फिली – दिल्ली में ओमप्रकाश तो मुंबई में मुकेश, क्या है इनका Pushpa 2 और बॉलीवुड फिल्मों से कनेक्शन – #iNA @INA
जब भी फिल्म शुरू होती है, उससे पहले और इंटरवल के दौरान हमें एक विज्ञापन जरूर देखने मिलता है. इस विज्ञापन के जरिए कभी हमारी मुलाकात मुकेश से होती है, तो कभी हमें सुनीता मिल जाती हैं. कुछ समय तक हम हम फू-फू करने वाले नंदू से भी मिलते थे. अब इन सभी के साथ ओम प्रकाश और अध्ययन भी हमें फिल्म शुरू होने से पहले मिलने लगे हैं. सभी मिलकर हमें यही समझाने की कोशिश करते हैं कि धूम्रपान और तंबाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. दिल्ली-एनसीआर में अगर आप फिल्में देखते हैं तो पिछले कुछ वक्त से ये जरूर नोटिस किया होगा कि हेल्थ अवेयरनेस वाले विज्ञापन में मुकेश के ऐड की जगह अब ओम प्रकाश का ऐड दिखाया जा रहा है. ‘पुष्पा 2’ के दौरान भी मुकेश का विज्ञापन ही देखने को मिला. वहीं मुंबई में अभी भी मुकेश का ऐड चल रहा है और वहां मिलाजुलाकर थिएटरों में अलग-अलग मरीजों के विज्ञापनों के जरिए जागरूकता फैलाई जा रही है. ये विज्ञापन कैसे बनते हैं? इन्हें कौन बनाता है? और कहां शूट होते हैं? आइए आपको सब कुछ बताते हैं.
थिएटर में हमें दिखाए जाने वाले विज्ञापन तंबाकू का विरोध करते हैं. लेकिन इन्हें दो केटेगरी में बांटा गया है. पहली कैटेगरी में स्मोकिंग से फैलने वाले बीमारियों के बारे में बात की गई है, तो दूसरी कैटेगरी खैनी-गुटखा खाने वालों के बारे में है. पहली कैटेगरी में जो एंटी-स्मोकिंग यानी धूम्रपान विरोधी विज्ञापन शामिल किए गए हैं, उन विज्ञापन के लिए एक्टर्स को कास्ट किया जाता है. जैसे की फू-फू वाले नंदू के विज्ञापन में बॉलीवुड सुपरस्टार अक्षय कुमार नजर आ रहे थे. इससे पहले भी लगभग 14 सालों से थिएटर में दो विज्ञापन देखने मिल रहे हैं, एक जिसमें पिता अक्सर अपनी बेटी के सामने धूम्रपान करते हुए नजर आते थे. लेकिन जब कुछ दिन बाद वो बेटी को खांसते हुए देखते हैं, तब उन्हें गलती का एहसास हो जाता है. इस विज्ञापन के आखिर में ये मैसेज दिया गया था कि पैसिव स्मोकिंग भी जानलेवा है और इसलिए अपने और अपनों के स्वास्थ्य के लिए धूम्रपान छोड़ दीजिए. तो दूसरे विज्ञापन में ये बताया गया था कि कैसे सार्वजनिक जगहों पर स्मोकिंग करना गलत है. इस तरह के विज्ञापन के लिए हमेशा मॉडल या एक्टर्स को ही कास्ट किया जाता है.
हाल ही में बनाए गए नए विज्ञापन
14 सालों से थिएटर में दिखने वाले ये विज्ञापन अब लगभग बंद हो चुके हैं और 3 महीने पहले उनकी जगह थिएटर में अध्ययन की एंट्री हुई है. अध्ययन का किरदार निभाने वाले एक्टर को दिखाकर इस विज्ञापन में बताया गया है कि धूम्रपान छोड़ने के 20 मिनट बाद आपका रक्तचाप सामान्य हो जाता है और कुछ ही दिनों में आपके शरीर में निकोटिन की मात्रा कम हो जाती है. 12 महीनों में हृदय रोग का खतरा भी आधा रह जाता है. बीड़ी-सिगरेट का हर कश आज ही छोड़ें, तंबाकू जानलेवा है.
अब बात करते हैं दूसरी कैटेगरी के विज्ञापन की. इस विज्ञापन में किसी एक्टर या मॉडल को नहीं, बल्कि सच्चे पेशेंट को शामिल किया जाता है. लंबे समय से थिएटर में मुकेश हराने का विज्ञापन दिखाया जाता था. महाराष्ट्र के भुसावाल जिले के एक गांव में रहने वाले मुकेश की 15 साल पहले यानी साल 2009 में ही मौत हो गई थी. लेकिन उनकी मौत से पहले इस विज्ञापन की शूटिंग हो चुकी थी. 24 साल की उम्र में कैंसर की वजह से दुनिया को अलविदा करने वाले मुकेश ने ऑपरेशन से पहले बताया था कि मुझे कैंसर हुआ है और मेरा ऑपरेशन होने जा रहा है, शायद इसके आगे मैं बोल नहीं पाऊंगा.
जानें क्यों थिएटर में दिखाए जाते हैं ऐसे विज्ञापन
अब मुकेश के साथ 38 साल के ओमप्रकाश का विज्ञापन भी रिलीज किया गया है. इस विज्ञापन में ओमप्रकाश की पत्नी सुनीता बता रही हैं कि कैसे खैनी की वजह से उनके पति को कैंसर हुआ और वो बोल नहीं सकते. कैंसर के पेशेंट के साथ ये विज्ञापन शूट करने के पीछे सिर्फ एक ही मकसद होता है कि परिवार के साथ फिल्म देखने आई ऑडियंस के सामने एक स्ट्रॉन्ग मैसेज पेश किया जाए. ताकि बीवी अपने पति या बेटे, बच्चे अपने पिता को तंबाकू गुटखा और धूम्रपान करने से रोक पाएं.
कहा होती है मरीजों के साथ शूटिंग
आमतौर पर कैंसर के मरीजों के ऊपर बनने वाले इन विज्ञापनों की शूटिंग मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में होती है. ये अस्पताल कैंसर की ट्रीटमेंट के लिए मशहूर है. इस दौरान ये तय नहीं किया जाता कि कौन से पेशेंट की शूटिंग करनी है. कई बार कुछ मरीज इस तरह के विज्ञापन का हिस्सा होने के लिए मना कर देते हैं. तो जिनसे अनुमति मिलती है, उनके साथ डॉक्यूमेंट्री की तरह बेहद कम समय में वीडियो की शूटिंग होती है और फिर वहां मौजूद डॉक्टर का इसपर रिएक्शन लेते हैं. इस पूरे वीडियो से 30 सेकेंड का विज्ञापन बनाया जाता है.
नए और पुराने विज्ञापन में क्या फर्क है
3 साल पहले जो नए विज्ञापन रिलीज किए गए हैं, उनमें ग्राफिक के जरिए बीमारी दिखाने की कोशिश की गई है. इससे पहले वो विज्ञापन बनाए गए थे, उसमें खून, मरीजों को आई हुई कैंसर की गांठ, ऑपरेशन किया हुआ जबड़ा जैसे कुछ ऐसे विजुअल्स दिखाए जाते थे, जिन्हें देखकर अच्छे मूड में रिलैक्स होने थिएटर में आए हुए लोग कुछ समय के लिए डिस्टर्ब हो जाते थे और यही वजह है कि अब नए विज्ञापन में न तो पेशेंट बात कर रहे हैं न ही कोई डिस्टर्बिंग विजुअल्स दिखाए जा रहे हैं, इन विज्ञापन में ग्राफिक का ज्यादा इस्तेमाल किया गया है.
कौन शूट करता है ये खास विज्ञापन
ये विज्ञापन भारत सरकार का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, नेशनल हेल्थ मिशन और नेशनल टोबैको प्रोग्राम के साथ मिलकर प्लान करता है. पिछले 15 सालों से वाइटल स्ट्रेटर्जी नाम की अमेरिकन कंपनी ये विज्ञापन बना रही है. ये कंपनी सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि कई देशों के लिए सामाजिक जागरूकता करने वाले विज्ञापन बनाने का काम करती है.
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