Nation- मुस्लिमों को साधने के लिए नीतीश कुमार ने चला मौलाना दांव, बलियावी जेडीयू के लिए कितने मददगार साबित होंगे?- #NA

सीएम नीतीश कुमार, जेडीयू के महासचिव मौलाना गुलाम रसूल बलियावी
वक्फ संशोधन कानून पर मोदी सरकार का समर्थन करके बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने मुस्लिम वोटबैंक को नाराज कर दिया है. विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश को देखते हुए जेडीयू अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गई है. इसी के मद्देनजर नीतीश कुमार ने जेडीयू के महासचिव मौलाना गुलाम रसूल बलियावी को बिहार अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन बनाकर मुसलमानों के वोटों को साधने का सियासी दांव चला है, लेकिन सवाल यही है कि क्या मौलाना बलियावी जेडीयू के लिए राजनीतिक मददगार साबित होंगे?
बिहार की नीतीश सरकार ने गुरुवार को राज्य अल्पसंख्यक आयोग का पुनर्गठन किया. एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और आठ सदस्यों की नियुक्ति की गई है. अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सचिव सोहेल ने आयोग गठन की सूचना जारी की है. सीएम नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यक आयोग का ऐलान ऐसे समय किया, जब पीएम मोदी बिहार दौरे के पर हैं और विधानसभा चुनाव का आगाज हो गया है. इस तरह नीतीश ने मुसलमानों को ही नहीं बल्कि सिख और जैन समुदाय को भी साधने का दांव चला है.
अल्पंख्यक आयोग का किया पुनर्गठन
नीतीश सरकार ने 11 सदस्यीय बिहार अल्पसंख्यक आयोग का पुर्नगठन किया. जेडीयू के महासिचव और मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले मौलाना गुलाम रसूल बलियावी को अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया है, जबकि लखविंदर सिंह और मौलाना उमर नूरानी को आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया है.
अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सचिव सोहेल के मुताबिक एक अध्यक्ष और दो उपाध्यक्ष के अलावा 8 सदस्य बनाए गए हैं. आयोग के सदस्य के तौर पर मुकेश जैन, अफरोज खातून, अशरफ अली अंसारी, शमशाद आलम, तुफैल अहमद, शिशिर दास, राजेश जैन, अजफर शमसी की नियुक्ति की गई है.
नीतीश ने साधा सियासी समीकरण
नीतीश कुमार ने अल्पसंख्य आयोग के पुनर्गठन के जरिए अपने समीकरण को दुरुस्त करने का दांव चला है. अल्पसंख्यक आयोग की बागडोर मुस्लिम समुदाय को सौंपी है तो उपाध्यक्ष की कुर्सी सिख समाज के नेता को दी है. 11 सदस्यीय कमेटी में सात मस्लिम, दो जैन, एक सिख और एक बौद्ध को रखा गया है. इस तरह से पूरे अल्पसंख्यक समुदाय को सियासी संदेश देने की कोशिश नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने की है.
बिहार में अल्पसंख्यक आबादी कितनी
इस्लाम- 17.70% (23149925)
ईसाई- 0.05% (75238)
सिख- 0.11% (14753)
बौद्ध- 0.85% (111201)
जैन- 0.0096% (12523)
बिहार में जाति सर्वे के मुताबिक अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी करीब 19 फीसदी के करीब है, जिसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम हैं. इसके बाद सिख, बौद्ध और जैन समुदाय की आबादी है. ऐसे में नीतीश कुमार ने जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी के फॉर्मूले पर आयोग में नियुक्ति की है.
बलियावी और नूरी पर खेला दांव
नीतीश कुमार ने वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ मुखर रहे मौलाना गुलाम रसूल बलियावी को ही अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाकर बड़ा सियासी दांव चला है. गुलाम रसूल बलियावी बिहार में मुसलमानों के बड़े नेता माने जाते हैं. वे वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ जेडीयू में रहते हुए भी आक्रामक तेवर अपना रहे हैं. संसद से वक्फ बिल पास हो गया, तो बलियावी ने नाराजगी जताई थी. उन्होंने कहा था कि संसद में सब नंगे हो गए. अब सेक्युलर और कम्युनल में कोई अंतर नहीं रह गया.
सीएम नीतीश कुमार ने मौलाना बलियावी की नारजगी को दूर करने के साथ मुस्लिमों को साधन की कवायद की है. इसके साथ ही मौलाना उमर नूरानी को उपाध्यक्ष बनाया है. इन दोनों मौलाना का बिहार में अपना सियासी आधार है. मौलाना बलियावी बरेलवी मुस्लिम हैं तो मौलान उमर नूरानी देवबंदी फिरके से आते हैं. इस तरह से मुसलमानों के दोनों फिरकों को साधने के साथ-साथ अशराफ और पसमांदा के बीच बैलेंस बनाने की कवायद की है.
बिहार में मुस्लिम सियासत कैसी रही?
बिहार में करीब 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो सियासी तौर पर काफी अहम माने जाते हैं. राज्य की कुल 243 विधानसभा सीटों में से करीब 48 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का रोल काफी महत्वपूर्ण है. मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें ऐसी हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं.
सूबे की 30 सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. सीमांचल के इलाके में खासकर किशनगंज में मुस्लिम वोटर 70 फीसदी से भी ज्यादा है. इस लिहाज से मुस्लिम समुदाय बिहार चुनाव में किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं.
बिहार में क्या मुसलमान देगा साथ?
मुस्लिम वोटों की सियासी अहमियत को देखते हुए माना जा रहा है कि वक्फ कानून का बिहार की राजनीति पर अच्छा-खासा प्रभाव पड़ सकता है. वक्फ बिल संसद से पास कराने में अहम रोल नीतीश कुमार की जेडीयू का रहा था. मुस्लिम समुदाय का मानना है कि नीतीश कुमार अगर नहीं साथ देते तो मोदी सरकार वक्फ बिल संसद से पास नहीं करा पाती. इस बात को लेकर मुस्लिम संगठन लगातार जेडीयू के खिलाफ सियासी माहौल बनाने में जुटे हैं. इसके चलते ही नीतीश कुमार ने जेडीयू के मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले गुलाम रसूल बलियावी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने का दांव चला.
नीतीश कुमार को 2020 के चुनाव से पहले तक मुस्लिमों का वोट मिलता रहा है, लेकिन 2017 में महागठबंधन का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ जाने के बाद मुस्लिमों का जेडीयू से मोहभंग हो गया. हालांकि, 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव के मुस्लिम वोटिंग पैटर्न को देखें तो मुस्लिमों का 5 फीसदी वोट ही जेडीयू को मिला है. ऐसे में गुलाम रसूल बलियावी के लिए मुस्लिमों का दिल जीतना आसान नहीं है, क्योंकि आरजेडी से लेकर कांग्रेस और ओवैसी तक मुस्लिम सियासत पर खुलकर खेल रहे हैं.
मुस्लिमों को साधने के लिए नीतीश कुमार ने चला मौलाना दांव, बलियावी जेडीयू के लिए कितने मददगार साबित होंगे?
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