Noida – किसान नेताओं ने दो बार मुख्यमंत्री से बातचीत का ऑफर दरकिनार किया, राकेश टिकैत की अनदेखी – #INA

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Noida News :
नोएडा के किसान आंदोलन में परदे के पीछे की जानकारियां छनकर सामने आ रही हैं। इस पूरे घटनाक्रम में दो सवाल ‘यक्ष प्रश्न’ बनकर खड़े हुए हैं। पहला, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इतने सख्त क्यों हो गए? भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने यकायक आंदोलन से किनारा क्यों कर लिया? इन दोंनो सवालों के जवाब आपको मिलेंगे। किसान नेताओं की आपसी फूट और श्रेय लेने की होड़ ने इस आंदोलन को खत्म कर दिया है। उन हजारों किसानों, महिलाओं और बुजुर्गों को नुकसान पहुंचाया है, जो दिन-रात, भूखे-प्यासे और गर्मी-सर्दी में नेताओं के पीछे खड़े रहे।

योगी आदित्यनाथ इतने सख्त क्यों हो गए?

सामान्य रूप से किसान हकों पर खुले मन से फैसला लेने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गौतमबुद्ध नगर किसान आंदोलन पर अचानक सख्त हो गए। दो दिसंबर को किसानों ने संसद कूच किया। पुलिस ने रोका और 7 दिनों का वक्त लेकर नोएडा के दलित प्रेरणा स्थल में बैठा दिया। अगले दिन तीन दिसंबर को दलित प्रेरणा स्थल से 123 किसानों को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था। पुलिस के इस एक्ट को किसानों से धोखा समझा गया। भारतीय किसान यूनियन और राकेश टिकैत किसानों के पक्ष में खड़े हो गए। चार दिसंबर को पूरे वेस्ट यूपी में भारतीय किसान यूनियन ने हंगामा खड़ा कर दिया। मजबूर होकर दोपहर बाद लखनऊ के आदेश पर सारे 123 किसानों को बिना शर्त रिहा किया गया। रिहाई के तुरंत बाद गौतमबुद्ध नगर पुलिस की ओर से किसानों को बातचीत का ऑफर दिया गया। मिली जानकारी के मुताबिक, रूपेश वर्मा और उनके साथियों के सामने प्रस्ताव रखा गया, “मुख्यमंत्री के आदेश पर पांच अफसरों की समिति का गठन किया गया है। समिति जल्दी काम शुरू करेगी। उससे पहले आप लोग लखनऊ जाकर मुख्यमंत्री से मिल लें। उनके सामने अपनी बात रखें। सभी किसानों को 10 फीसदी आबादी का प्लॉट और 64.7 फीसदी अतिरिक्त मुआवजा देना प्रशासनिक आधार पर संभव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश आड़े आते हैं। यह काम सरकार ही कर सकती है।”इस ऑफर को दरकिनार कर दिया गया। ग्रेटर नोएडा में रूपेश वर्मा ने ऐलान किया कि कल संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक होगी। उस बैठक में आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा। जरूरत पड़ी तो फिर संसद कूच करेंगे। दूसरी तरफ नोएडा में सुखबीर खलीफा ने ऐलान कर दिया, कल किसानों का रैला दलित प्रेरणा स्थल जाएगा। उसके बाद संसद कूच होगा। उनकी भाषा बेहद तीखी थी। इन बयानात के दो-तीन घंटे बाद ही गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने फिर सारे किसान नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। चार दिसंबर की रात जब पुलिस किसानों की धरपकड़ कर रही थी तभी 11:51 बजे योगी आदित्यनाथ के कार्यालय ने ट्वीट किया। लिखा, “गौतमबुद्धनगर हो, अलीगढ़ हो या संभल अथवा कोई अन्य जनपद, अराजकता फैलाने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती।” इस ट्वीट की भाषा पर गौतमबुद्ध नगर में खूब चर्चा हुई। लोगों ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया कि सीएम ने किसानों को संभल के दंगाइयों जैसा अराजक लिख दिया। रूपेश वर्मा दो दिन बाद छह दिसंबर को गिरफ्तार किए गए। दरअसल, रूपेश तमाम कोशिश करके और वीडियो जारी करके भी किसानों को खास बड़ी संख्या में गांवों से बाहर नहीं निकाल सके तो बाकी साथियों के पास जेल जाना ही इज्जत बचाने का हथियार बचा था।

योगी आदित्यनाथ इतने सख्त क्यों हो गए? 

इस सवाल का जवाब। किसानों को मुख्यमंत्री की ओर से बात करने का ऑफर चार दिसंबर को पहली मर्तबा नहीं मिला था। किसानों ने एक दिसंबर को यमुना अथॉरिटी पर प्रदर्शन किया था। उस दिन गौतमबुद्ध नगर की पुलिस आयुक्त, जिलाधिकारी और तीनों प्राधिकरणों के सीईओ ने किसान नेताओं से बातचीत की थी। उस दिन भी पुलिस आयुक्त ने किसान नेताओं  को लखनऊ चलकर मुख्यमंत्री से वार्ता करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था।अगर मुख्यमंत्री कैंप से किसान नेताओं को दो-दो बार बातचीत का ऑफर मिले और उसे खारिज कर दिया जाए तो इस रवैये को क्या बोला जाएगा? लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ने हाईपावर कमेटी बनाई थी। उस कमेटी ने किसान हितों में कई अच्छी सिफारिश की हैं। उन पर प्राधिकरणों ने अमल शुरू किया है। उन सिफारिशों पर भी बातचीत करने की बजाय आंदोलन शुरू कर दिया गया।अगर पीछे भीड़ खड़ी है तो इसका मतलब यह नहीं कि मुख्यमंत्री से बात करना भी गैर मुनासिब लगने लगे। अगर आपके पीछे कुछ हजार लोग खड़े हैं और आपका फर्ज है कि आप उनके हकों के लिए लड़ें तो मुख्यमंत्री के पास 3,80,51,721 लोगों और उनके परिवारों का समर्थन है। इन लोगों ने 255 विधायक चुनकर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया है। लिहाजा, सीएम का फर्ज है कि वह सड़कों को खुला रखें। प्राधिकरणों के दफ्तरों को खुला रखें। जो सड़क और दफ्तर रोकेगा और बात करने के लिए टेबल पर नहीं बैठेगा, उसे अराजक ही कहा जाएगा।

अब दूसरा सवाल

राकेश टिकैत ने यकायक आंदोलन से किनारा क्यों कर लिया?

मैंने आपको बताया, दलित प्रेरणा स्थल से किसानों की गिरफ्तारी को धोखा समझा गया। राकेश टिकैत किसानों के पक्ष में खड़े हो गए। चार दिसंबर को पूरे वेस्ट यूपी में उनके संगठन भारतीय किसान यूनियन ने हंगामा खड़ा कर दिया। मजबूर होकर चंद घंटों बाद सारे किसानों को बिना शर्त रिहा किया गया। रिहाई के तुरंत बाद गौतमबुद्ध नगर पुलिस की ओर से किसानों को बातचीत का ऑफर मिला। किसान नेताओं ने बातचीत के लिए आगे बढ़ने की बजाय पांच दिसंबर को बैठक की बात कह दी। ऊपर से तरह-तरह की बयानबाजी शुरू कर दी।दरअसल, रिहा होते ही इन किसान नेताओं को लगा कि सरकार तो झुक गई है। जैसे उन्हें रिहा करना पड़ा है, वैसे ही मजबूर होकर मांगे माननी पड़ेंगी। राकेश टिकैत आंदोलन में शामिल हो चुके हैं, वह भी अब साथ बने रहने के लिए मजबूर हैं। अब बस इस कामयाबी का श्रेय लेना है। जो श्रेय ले लेगा, वही बड़ा नेता बन जाएगा। ऊपर से पंजाब के किसानों ने दिल्ली कूच का ऐलान किया है। हम यहां से दिल्ली कूच की बात करेंगे तो सरकार पर भारी दबाव पड़ेगा। एक कहावत याद आई होगी, जितना ज्यादा दबाव, उतना ज्यादा रस। पर दूसरी कहावत भूल गए, ज्यादा खींची टूट जाती है। और टूट गई।

ना मंच बदलेंगे और ना पंच बदलेंगे

राकेश टिकैत ने तीन दिसंबर की रात उत्तर प्रदेश टाइम्स के कार्यक्रम ‘यूपी की बात’ में साफ कहा था कि ना मंच बदलेंगे और ना पंच बदलेंगे। सबसे पहले जेल भेजे गए किसानों को छोड़ना पड़ेगा। वही लोग जेल से छूटकर सरकार से बात करेंगे। मतलब, राकेश टिकैत चाहते थे कि किसान नेता अपनी मांगों पर सरकार से बात करें। जब नेता जेल से छूटकर आए तो वह बात करने के मूड़ में नजर नहीं आए। गौरव टिकैत ग्रेटर नोएडा में यमुना अथॉरिटी के ज़ीरो पॉइंट पर सुबह से डटे थे। उन्होंने गौतमबुद्ध नगर के किसान नेताओं में उपेक्षा का भाव देखा। वह जीरो पॉइंट से चले गए। राकेश टिकैत भी ग्रेटर नोएडा नहीं पहुंचे। उसके बाद योगी आदित्यनाथ का ट्वीट आया और बाकी पूरी कहानी आपको मालूम है। कुल मिलाकर किसान नेताओं की आपसी फूट और श्रेय लेने की होड़ ने इस आंदोलन को खत्म कर दिया है। अगर किसान नेता मुख्यमंत्री से बात करते तो कम से कम किसी कैबिनेट मंत्री की अध्यक्षता में समिति तो गठित करवा ही सकते थे। जिससे किसानों की बात सरकार तक पहुंचाने का रास्ता बनता। पहली समिति के अध्यक्ष राजस्व परिषद के अध्यक्ष रजनीश दुबे थे। अब नई समिति के अध्यक्ष औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव अनिल सागर हैं। मतलब, यह दूसरी समिति पहली वाली से ताकत में कमतर ही रहेगी। मुख्यमंत्री जी! गौतमबुद्ध नगर की आम जनता चाहती है कि समिति किसी मंत्री की अगुवाई में बने। अफसरशाहों को लेकर किसानों के अनुभव अच्छे नहीं हैं। जब माहौल भरोसे का ना हो तो भला करने की कोशिश भी सुहाती नहीं है। यही माहौल आजकल गौतमबुद्ध नगर का है।

आखिर में बस यही कहूंगा
बात करने से ही बात बनती है
बात ना करने से, बातें बन जाती हैं।

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सौजन्य से ट्रिक सिटी टुडे डॉट कॉम

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