Noida – योगी जी! गुमराह नहीं हों, लाठी नहीं 'चाबुक' चलाइये – #INA

Noida News :
नोएडा के किसान उबाल पर हैं। पहले गौतमबुद्ध नगर के तीनों विकास प्राधिकरणों पर धरना दिया और फिर बीते सोमवार को संसद कूच कर दिया। गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने नोएडा में किसानों को आश्वासन दिया और दिल्ली जाने से रोक लिया। मगर, मंगलवार की सुबह बल प्रयोग करते हुए हजारों किसानों को हिरासत में ले लिया। उनके 123 नेताओं को जेल भेज दिया। शायद उत्तर प्रदेश सरकार को इनपुट दिया गया होगा कि इस कार्रवाई के बाद मामला ख़त्म हो जाएगा।

भारतीय किसान यूनियन ने बड़े आंदोलन का ऐलान कर दिया। हालात सुधरने की बजाय बिगड़ रहे हैं। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कृषि मंत्री से सवाल पूछे हैं। मैं इस मसले की वजह लेकर आपके सामने आया हूं। आखिर उत्तर प्रदेश के सबसे अमीर जिले के किसान अपनी सरकार से क्यों खफा हैं? गौतमबुद्ध नगर देश का इकलौता ऐसा जिला है, जिसकी करीब 80 फ़ीसदी जमीन का अधिग्रहण हो चुका है या सीधे किसानों से खरीद ली गई है। यह सिलसिला वर्ष 1976 से जारी है।

वर्ष 2011 तक अंग्रेजी ज़माने के भूमि अधिग्रहण कानून के जरिए जमीन का अधिग्रहण किया गया। नोएडा, ग्रेटर नोएडा या यमुना अथॉरिटी अपनी विकास योजना के लिए जिला प्रशासन से जमीन मांगते थे। कलेक्टर अर्जेंसी क्लोज का इस्तेमाल करके किसानों से जमीन लेकर प्राधिकरणों को दे देते थे।


7 मई 2011 को ग्रेटर नोएडा के भट्टा परसौल गांव में ऐसा ही किसान आंदोलन हिंसक हो गया था। जिसमें दो किसानों और दो जवानों की गोली लगने से मौत हुई थीं। तब उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की मायावती सरकार थी और केंद्र में कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार थी। इसी आंदोलन के बाद साल 2013 में किसान हितों का ख्याल रखने के लिए नया भूमि अधिग्रहण कानून बनाया गया था। जिसमें किसानों को जमीन के बदले अच्छे-ख़ासे लाभ देने के प्रावधान हैं।

यह कानून बनने में करीब तीन वर्षों का वक्त लगा था। इस दौरान बसपा सरकार ने गौतमबुद्ध नगर में किसानों से सीधे जमीन खरीदने की नीति बनाई थी। जिसके जरिए नोएडा और ग्रेटर नोएडा में किसानों से सीधे जमीन खरीदी गई। भट्टा परसौल यमुना प्राधिकरण के दायरे में पड़ता है। उस आंदोलन के कारण वहां कामकाज कई वर्षों तक थमा रहा था।

यह बैकग्राउंड बताना जरूरी था। अब किसानों की मांगों और इस आंदोलन पर फोकस करते हैं। भूमि अधिग्रहण के बदले किसानों को दो तरह के लाभ नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण देते हैं। पहला, जमीन की कीमत के रूप में मुआवजा दिया जाता है। यह एकमुश्त भुगतान होता है। दूसरा लाभ आवासीय भूखंड होता है। मतलब, किसान परिवार का भविष्य में विस्तार होगा तो उसे अपना घर बड़ा करना पड़ता है। 

यहीं बड़ी हास्यास्पद विसंगति है। नोएडा अथॉरिटी जितनी जमीन किसान से लेती है, उसके बदले में 5 फ़ीसदी जमीन विकसित करके आवासीय भूखंड के रूप में लौटाती है। ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी 6 फ़ीसदी और यमुना अथॉरिटी 7 फ़ीसदी आवासीय भूखंड देता है।

एक उदाहरण से समझिए। नोएडा के रायपुर गांव में रामपाल सिंह की 1000 वर्गमीटर जमीन का अधिग्रहण किया गया तो प्राधिकरण उसे 50 वर्गमीटर क्षेत्रफल का भूखंड आवंटित करेगा। ग्रेटर नोएडा में 60 और यमुना अथॉरिटी के गांव में 70 वर्ग मीटर का भूखंड मिलेगा।

अब सवाल यह उठता है कि 10 फ़ीसदी भूखंड की बात कहां से आ गई। वर्ष 2007 से 2009 तक ग्रेटर नोएडा वेस्ट में औद्योगिक विकास के नाम पर बड़े पैमाने पर अर्जेंसी क्लोज के जरिए जमीन अधिग्रहीत की गई थी और तत्कालीन बसपा सरकार ने वह सारी जमीन ग्रुप हाउसिंग परियोजनाओं के लिए बिल्डरों को बेच दी थी। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ शाहबेरी गांव के किसान इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया था।

इसके बाद पतवाड़ी गांव के किसान गजराज सिंह ने हाईकोर्ट का रुख किया। मुकदमा सरकार के खिलाफ जा रहा था। लिहाजा, यूपी सरकार ने तत्कालीन कैबिनेट मिनिस्टर जयवीर सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन कर दिया। समिति ने किसानों से बात की। तय हुआ कि किसानों को अब 8 फ़ीसदी आवासीय भूखंड दिया जाएगा। मुआवजा 850 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से दिया गया था। इस रेट पर 64.7% अतिरिक्त मुआवजा 500 रुपये प्रति वर्गमीटर तय किया।

सरकार की ओर से यह फैसलानामा हाईकोर्ट में दाखिल किया गया। हाईकोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसयू खान और जस्टिस वीके शुक्ला की पीठ ने 21 अक्टूबर 2011 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जिसमें कहा गया कि किसानों को 8 की बजाय 10 फ़ीसदी आवासीय भूखंड दें। यहीं से 10 फ़ीसदी आवासीय भूखंड की व्यवस्था कायम हुई।

अब आप सोचेंगे, फिर विवाद क्या है? मामला शांत पड़ गया तो प्राधिकरण के अफसरों और कर्मचारियों ने हाईकोर्ट के इस फैसले को मनमाफिक ढंग से परिभाषित करना शुरू कर दिया। जिसे मन किया उसे 10 प्रतिशत आवासीय भूखंड दे दिया। जिससे मन खुश नहीं हुआ, उसे नहीं दिया। तर्क देने लगे कि आप हाईकोर्ट नहीं गए थे। लिहाजा, आपको लाभ नहीं दिया जा सकता है।

आवासीय भूखंड देने की एक शर्त पुश्तैनी और गैर पुश्तैनी भी है। मतलब, भूमि अधिग्रहण से प्रभावित उन्हीं किसानों को आवासीय भूखंड दिया जा सकता है, जो नोएडा या ग्रेटर नोएडा के गांवों के मूल निवासी हैं।

यह बात सही है कि कानूनन लाभ उसे ही मिले जो अपना हक़ मांगने जाए। लेकिन सांसदों-विधायकों के तमाम रिश्तेदार कोर्ट नहीं गए और लाभ लेकर बैठे हुए हैं। हजारों पैसे वाले यह लाभ लेकर बैठे हैं। गाजियाबाद, मुम्बई, दिल्ली, देहरादून, लखनऊ, गुरुग्राम, एटा और मेरठ के लोगों को आवासीय भूखंड आवंटित किए गए हैं।

आवासीय भूखंड देने का एक और महत्वपूर्ण नियम है। किसी को भी अधिकतम 2500 वर्गमीटर भूखंड दिया जा सकता है। ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें 8000 वर्गमीटर का भूखंड दिया गया है। जैसा मैंने आपको शुरू में बताया, यह लाभ किसान को भविष्य में परिवार विस्तार के लिए दिया जाता है। ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने कंपनियों, बिल्डरों और ट्रस्टों को आवासीय भूखंड दिए हैं।

मैं यह बात हवा में नहीं कह रहा हूं। इसके सबूत हैं। मैंने इस मसले पर खबर लिखी हैं। जांच हुई और करीब डेढ़ साल से जांच रिपोर्ट ठन्डे बस्ते में पड़ी है। किसान हाल-फिलहाल से नहीं, तीन वर्षों से आंदोलन कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजस्व परिषद् के अध्यक्ष रजनीश दुबे की अगुवाई में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। समिति के पास इस समस्या का समाधान करने का अच्छा मौका था। लेकिन ब्यूरोक्रेसी ने वही किया, जिसके लिए वह आलोचना का शिकार होती है। बाबू आखिर बाबू ही रह गए।

प्राधिकरण के सीईओ और समिति ने सोचा, अगर हर किसान को 10 फ़ीसदी जमीन दी तो बड़ा नुकसान होगा। इतनी जमीन कहां से आएगी? नुकसान किसान को देने से नहीं, माफिया और प्राधिकरण के गठजोड़ से है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भूमाफिया अरबों नहीं खरबों रुपये की लाखों वर्गमीटर जमीन डकार चुके हैं।


इस आंदोलन को दबाने की नहीं, यहां से आगे सुधार की ओर बढ़ने की जरूरत है। भूमाफिया पर कड़ी कार्रवाई की जाए। इनके चंगुल से जमीन वापस लें। सारे किसानों को 10 फ़ीसदी भूखंड देने के बाद भी जमीन बच जाएगी। नाजायज रूप से आवासीय भूखंड बांटने वाले अफसरों और कर्मचारियों की खाल खींचने की जरूरत है। पुलिस किसानों पर डंडा चलाने की बजाय उन तहरीरों को दर्ज करे, जो भूमाफियाओं के खिलाफ प्राधिकरणों ने भेजी हैं, लेकिन आज तक एफआईआर नहीं लिखी गई हैं।

तीनों प्राधिकरण मुआवजा, आबादी प्लॉट और दूसरी नीतियों की विसंगतियां तत्काल दूर करें। किसानों पर लाठी चलाने की जरूरत नहीं है, जरूरत भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों पर चाबुक चलाने की है।

Copyright Disclaimer Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing. Non-profit, educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

सौजन्य से ट्रिक सिटी टुडे डॉट कॉम

Source link

Back to top button
Close
Log In
Crime
Social/Other
Business
Political
Editorials
Entertainment
Festival
Health
International
Opinion
Sports
Tach-Science