Political – परवेश वर्मा फैक्टर ही नहीं, जाटों को इसलिए भी रिझाने में जुटे हैं अरविंद केजरीवाल- #INA

दिल्ली में जाटों पर फिर से राजनीति तेज हो गई है. आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें जाट समुदाय को केंद्र की पिछड़ा वर्ग सूची (ओबीसी लिस्ट) में शामिल करने की मांग की है. केजरीवाल का कहना है कि केंद्र की ओबीसी लिस्ट में न होने की वजह से दिल्ली के जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोग न तो पुलिस की नौकरी में आरक्षण ले पा रहे हैं और न ही दिल्ली विश्वविद्यालय के नामांकन में.

अरविंद केजरीवाल की यह चिट्ठी ऐसे वक्त सामने आई है, जब बीजेपी ने जाट समुदाय को लेकर आम आदमी पार्टी की मजबूत घेराबंदी कर दी है. समुदाय से आने वाले नेता परवेश वर्मा को अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली सीट से मैदान में उतारा गया है. पूर्व सांसद परवेश के पिता साहेब सिंह वर्मा जाट समुदाय के बड़े नेता थे. वे केंद्र में मंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर रह चुके हैं.

दिल्ली की सियासत में जाट कितने अहम?

जाट समुदाय मुख्य रूप से हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में रहते हैं. राजधानी दिल्ली में जाट समुदाय की संख्या करीब 10 प्रतिशत है. अधिकांश जाट आउटर दिल्ली में रहते हैं. दिल्ली की कुल 8 विधानसभा सीटों पर जाटों का दबदबा है.

जिन सीटों पर जाट समुदाय काफी मुखर हैं. उनमें नांगलोई, मुंडका, नजफगढ़, बिजवासन और किराड़ी की सीटें शामिल हैं. जाट वोटबैंक को देखते हुए दिल्ली में आप ने 5 सीटों पर इस समुदाय के लोगों को टिकट दिया है.

जिन सीटों पर आप ने जाट समुदाय को टिकट दिया है, उनमें मुंडका से जसबीर कराला, नांगलोई से रघुविंदर शौकीन, दिल्ली कैंट से वीरेंद्र कादियान, उत्तम नगर से पूजा नरेश बाल्यान और मटियाला से सुमेश शौकीन का नाम शामिल हैं.

बीजेपी भी जाटों की लामबंदी में जुटी हुई है. पार्टी ने जाट समुदाय के परवेश वर्मा को केजरीवाल के खिलाफ ही मैदान में उतार दिया है. इसी तरह आप सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत को बिजवासन सीट से टिकट दिया गया है.

दिल्ली के दंगल में जाट इसलिए भी अहम

2020 के विधानसभा चुनाव में जाट बंट गए, जिसके कारण जाट बहुल 3 सीटों पर बीजेपी और 5 पर आप को जीत मिली. इस चुनाव में आप को 62 और बीजेपी को कुल 8 सीटों पर जीत मिली. 2015 में जाटों ने एकतरफा आप को समर्थन दिया था. इसके बूते आप 67 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी.

2013 के चुनाव में जाट बीजेपी की तरफ चले गए थे. जाट बहुल 8 सीटों में से 6 पर बीजेपी को एक पर निर्दलीय और एक पर आप को जीत मिली थी. 2013 के चुनाव में दिल्ली की सिर्फ एक सीट दिल्ली कैंट पर आप के जाट विधायक सुरिंदर सिंह कमांडो को जीत मिली थी.

बीजेपी 2013 की तरह ही जाट समुदाय की मजबूत लामबंदी में जुटी है. दिल्ली चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले की वजह से पार्टी जाट वोटबैंक को काफी अहम मान रही है. केजरीवाल बीजेपी की इसी मजबूत लामबंदी को तोड़ने के लिए जाट समुदाय को ओबीसी में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.

दिल्ली विधानसभा की कुल 70 सीटों पर 5 फरवरी को मतदान कराया जाएगा. 8 फरवरी को सभी 70 सीटों के नतीजे आएंगे. राष्ट्रीय राजधानी में सरकार बनाने के लिए 36 विधायकों की जरूरत होती है.

परवेश वर्मा फैक्टर ही नहीं, जाटों को इसलिए भी रिझाने में जुटे हैं अरविंद केजरीवाल


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