Political – दुविधा या दांव? शिंदे के चेहरे पर संकट, बीजेपी सीएम के चेहरे पर सस्पेंस बनाकर क्या हवा दे रही?- #INA

अमित शाह, एकनाथ शिंदे, देवेन्द्र फडणवीस

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है, लेकिन सीएम चेहरे को लेकर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को घोषणा पत्र जारी करने दौरान स्पष्ट कर दिया है कि एकनाथ शिंदे जरूर मौजूदा सीएम हैं, लेकिन नतीजे के बाद नए सीएम का फैसला गठबंधन के तीनों दल मिलकर करेंगे.

एनडीए ने महाराष्ट्र चुनाव में किसी भी नेता को भी सीएम का चेहरा नहीं बनाया है, जिससे एकनाथ शिंदे की उम्मीदों का जरूर झटका लगा है. ऐसे में सवाल उठता है कि सीएम के चेहरे पर सस्पेंस बनाना बीजेपी की सियासी दुविधा है या फिर राजनीतिक दांव?

2019 में बीजेपी और शिवसेना (संयुक्त) मिलकर चुनाव लड़ी थी और प्रचंड बहुमत के साथ सीटें भी जीती थीं, लेकिन नतीजे के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों ही दलों के बीच रिश्ते टूट गए थे. बीजेपी से गठबंधन तोड़कर उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिलाया और मुख्यमंत्री बन गए थे. बीजेपी ने उद्धव ठाकरे से सियासी हिसाब बराबर करने के लिए एकनाथ शिंदे को शिवसेना से बगावत करने का इनाम मुख्यमंत्री बनाकर दिया. एनसीपी के दो हिस्सों में बांटने के बदले अजित पवार को डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंपी थी, लेकिन आगे इस फॉर्मूले पर नहीं चलना चाहती है. ऐसे में सीएम चेहरे पर सस्पेंस बनाए रखने की रणनीति अपनाई है, जिसके चलते ही शिंदे को सीएम फेस नहीं बनाया.

एकनाथ शिंदे के साथ कोई फिक्स डील नहीं

अमित शाह ने घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा कि अभी हमारे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं, लेकिन नए सीएम का फैसला चुनाव के बाद एनडीए के तीनों दल-बीजेपी, शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी बैठक कर तय करेंगे. बीजेपी ने यह बात साफ कर दिया है कि एकनाथ शिंदे सीएम का चेहरा नहीं है. इस तरह बीजेपी चुनाव से पहले सीएम पद को लेकर किसी तरह का कोई कमिटमेंट नहीं करना चाहती है ताकि चुनाव के बाद यू-टर्न न ले सके. इसीलिए कोई फिक्स डील नहीं कर रही है और सीएम चेहरे के विकल्प को खुला रखना चाहती है.

बीजेपी ने शिवसेना से हिसाब बराबर करने और वक्त की सियासी नजाकत को समझते हुए 2022 में एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने का फैसला किया था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है. बीजेपी जिस मंसूबे से शिंदे और अजित पवार को साथ लिया था, लोकसभा चुनाव में वो सफल नहीं हो सकी. अजित पवार अपना गढ़ नहीं बचा सके और शिंदे भी उद्धव ठाकरे के आगे पस्त नजर आए थे. ऐसे में बीजेपी महाराष्ट्र में अपना सीएम बनाए रखने का विकल्प रख रही है और यही वजह है कि शिंदे के नाम पर मुहर नहीं लगा रही. शाह के बात से साफ है कि चुनाव के बाद की परिस्थितियों को देखते हुए बीजेपी सीएम चेहरे पर फैसला करेगी.

शिंदे के चेहरे पर दांव खेलना उलटा न पड़ जाए

महाराष्ट्र में एनडीए सरकार की बागडोर भले ही अभी एकनाथ शिंदे के हाथ में हो, लेकिन बीजेपी उन्हें आगे करके चुनाव नहीं लड़ना चाहती है. इसीलिए अमित शाह ने साफ कर दिया है कि शिंदे फिलहाल जरूर मुख्यमंत्री हैं, लेकिन नए सीएम का फैसला चुनाव के बाद तीनों दल करेंगे. चुनाव में शिंदे को सीएम चेहरा बनाकर बीजेपी किसी तरह का कोई सियासी रिस्क लेने के मूड में नहीं है, क्योंकि एकनाथ शिंदे मराठा समुदाय से आते हैं. बीजेपी का राज्य में सियासी आधार शुरू से ही ओबीसी जातियों के बीच रहा है.

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी शिंदे को सीएम का चेहरा बनाकर ओबीसी समुदाय के वोटों को नाराज नहीं करना चाहती है. आरक्षण आंदोलन के चलते मराठा बनाम ओबीसी तो धनगर बनाम आदिवासी का मामला पहले से ही चल रहा है. ऐसे में किसी एक समुदाय के नेता को सीएम चेहरा प्रोजेक्ट करने पर दूसरे के नाराज होने का खतरा है. इसीलिए बीजेपी ने शिंदे के नाम से किनारा कर लिया है और चुनाव के बाद सीएम पर फैसला करने की बात करके सभी को साधकर चलने का दांव चला है.

सीएम पर सस्पेंस बनाए रखने का दांव

वरिष्ठ पत्रकार शैलेश मतंग कहते हैं किमहाराष्ट्र में सीएम फेस पर बीजेपी ऐसी ही दुविधा बनाकर रखना चाहती है, जिसमें उसका अपना सियासी फायदा है. बिना किसी चेहरे को आगे किए चुनाव में उतरने से बीजेपी के तमाम नेता एकजुट होकर प्रयास करते हैं, क्योंकि बीजेपी प्रदेश की शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एस) जैसी पार्टी नहीं है. बीजेपी और कांग्रेस ऐसी पार्टियां हैं, जहां मुख्यमंत्री बनने का मौका पार्टी के किसी भी नेता को मिल सकता है. इसीलिए बीजेपी महाराष्ट्र में सीएम पद को लेकर ऐसी दुविधा को बनाए रखना चाहती है ताकि पार्टी के सभी नेता और उनके कार्यकर्ता एकजुट होकर पार्टी को जिताने में भूमिका अदा करे.

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर श्री प्रकाश सिंह कहते हैं कि चुनाव में कई विकल्प खुले रखना, किसी राजनीतिक दल के लिए हमेशा अच्छा होता है. इससे नेतृत्व को चुनावी अंकगणित साधने के लिए आवश्यक गुणा-भाग करने में सहूलियत हो जाती है. उन्हें बस यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न गुट, एक-दूसरे के खिलाफ काम न करें. महाराष्ट्र में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के वोटों का ट्रांसफर कराने की है. लोकसभा चुनाव में अजित पवार का वोट बीजेपी में ट्रांसफर नहीं हुआ तो शिवसेना का वोट भी शिंदे नहीं ला सके. इसीलिए बहुत स्ट्रैटेजी के साथ अमित शाह ने साफ कर दिया है महाराष्ट्र में किसी भी चेहरे को सीएम का फेस नहीं बनाया है.

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