Political – न किसी को बहुमत-न किसी की सत्ता रिपीट और न जीतते CM-स्पीकर…झारखंड की कंप्लेक्स पॉलिटिक्स- #INA


अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, बाबूलाव मरांडी और हेमंत सोरेन

झारखंड विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और सूबे की 81 सीटों पर दो चरणों में चुनाव होंगे. बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए और जेएमएम के अगुवाई वाले गठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला है. बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए बेताब है तो जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन अपने सियासी दबदबे को बनाए रखना चाहती है. ऐसे में देखना है कि झारखंड में चला आ रहा सियासी ट्रैक रिकार्ड क्या इस बार टूटता है कि नहीं?

झारखंड की राजनीति इतनी कंप्लेक्स है कि इस राज्य के गठन को 24 साल में न ही किसी दल को बहुमत का आंकड़ा मिला है और न ही कोई भी सरकार रिपीट कर सकी है. इतना ही नहीं सत्ता के सिंहासन पर विराजमान रहने वाले मुख्यमंत्री को अपनी सीट बचाना मुश्किल हो जाता है. सीएम पद रहने वाले नेताओं को हार का मूंह देखना पड़ा है. इसके अलावा झारखंड विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने वाले स्पीकर भी अपनी सीट नहीं बच सके हैं. ऐसे चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड के चलते हेमंत सोरेन और जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन की टेंशन बढ़ी है.

झारखंड में किसी की दल को नहीं मिला बहुमत

बिहार से काटकर झारखंड को अलग राज्य का दर्जा 2000 में किया गया. इस तरह 24 साल में 13 अलग-अलग सरकारें बन चुकी हैं और चार बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. राज्य में कुल 81 विधानसभा सीटें है और बहुमत का आंकड़ा 41 का है. झारखंड बनने के बाद सबसे पहला चुनाव साल 2005 में हुआ था, जिनमें बीजेपी 30 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. हालांकि तब वह बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई थी. इस चुनाव में जेएमएम 17 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर रही थी.

साल 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में भी किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला. बीजेपी और जेएमएम 18-18 सीटें जीतने में कामयाब रही थीं. कांग्रेस 14 और जेवीएम 11 सीटें जीत दर्ज की थी. नतीजे सामने आए तो कोई भी दल 41 सीटों के जादुई आंकड़े को नहीं छू पाया. ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. इसके बाद दिसंबर 2019 में शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने, लेकिन बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया तो सरकार गिर गई. इसके बाद बीजेपी के अर्जुन मुंडा सीएम बने, लेकिन वो भी सफल पारी नहीं खेल सके. फिर एक बार राष्ट्रपित शासन लग गया और बाद में हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने और डे़ढ़ साल सरकार चली.

2014 में झारखंड विधानसभा चुनाव हुए. राज्य की 81 सीटों में से बीजेपी 37 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत के आंकड़े के दूर रही. जेएमएम ने 17 सीटें जीती तो जेवीएम ने 8 सीटों, कांग्रेस 6 सीटें जीतने में कामयाब रही. इसके अलावा आजसू के पांच और अन्य दलों के छह विधायक जीतकर आए थे. इस तरह किसी भी दल को बहुमत का आंकड़ा इस चुनाव में भी नहीं. बीजेपी ने आजसू और अन्य दलों के विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाई और रघुवर दास मुख्यमंत्री. झारखंड के इतिहास में पहली बार कोई सीएम ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था.

2019 विधानसभा चुनाव में जेएमएम 30 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत का नंबर अपने दम पर नहीं पा सकी. बीजेपी 25 सीटों पर सिमट गई थी तो कांग्रेस 16 सीटों से संतोष करना पड़ा था. जेवीएम के तीन और आजसू के दो विधायक जीतने में सफल रहे थे. इसके अलावा दो निर्दलीय विधायक, आरजेडी, माले और एनसीपी के एक-एक विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे. कांग्रेस और जेएमएम ने मिलकर सरकार बनाई और अब फिर से एक बार चुनावी मैदान में उतरे हैं.

मुख्यमंत्री नहीं बचा पाता अपनी सीट

झारखंड के 24 साल के सियासत में जितने भी मुख्यमंत्री रहे हैं, उन सभी को चुनावी मैदान में मात मिल चुकी है. बाबूलाल मरांडी से लेकर रघुवर दास तक सियासी रण में हार का स्वाद चख चुके हैं. ऐसे में मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ बेरहट सीट से बीजेपी हेमब्रम मैदान में है. ऐसे में देखना होगा कि हेमंत सोरेन रिकॉर्ड तोड़ेंगे या फिर मुख्यमंत्रियों की हार का इतिहास दोहराएंगे.

झारखंड के गठन के साथ 2000 में पहली बार बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही थी और बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले सीएम बने थे. मरांडी ने बीजेपी से बगावत कर अलग झारखंड विकास पार्टी बना ली है. 2014 में गिरिडीह और धनवार सीट से बाबूलाल मरांडी मैदान में उतरे, लेकिन दोनों सीट से जीत नहीं सके. इस तरह बीजेपी से तीन बार झारखंड के सीएम रहे अर्जुन मुंडा को ही 2014 में खरसावां सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा था. अर्जुन मुंडा को झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी दशरथ गागराई ने 11 हजार 966 मतों से मात दिया था. इसी तरह 2005 में मधु कोड़ा निर्दलीय मैदान में उतरे और विधायक बनकर सीएम की कुर्सी तक पहुंचे. 2014 चुनाव में मधु कोड़ा चाईबासा की मंझगांव विधानसभा सीट से जय भारत समानता पार्टी से मैदान में उतरे थे. कोड़ा को जेएमएम के नीरल पूर्ति ने 11710 मतों से मात दिया था.

झारखंड के दिग्गज नेता जेएमएम के अध्यक्ष शिबू सोरेन तीन बार मुख्यमंत्री बने हैं. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि मधु कोड़ा के हटने के बाद 2008 में शिबू सोरेन सीएम बने, उस समय वह विधानसभा के सदस्य नहीं थे. ऐसे में 2009 में उन्होंने तमाड़ विधानसभा सीट से किस्मत आजमाई, लेकिन जीत नहीं सके. उप चुनाव में शिबू सोरेन को झारखंड पार्टी के प्रत्याशी राजा पीटर से हार गए थे. हेमंत सोरेन 2013 में झारखंड के सीएम बने थे. सीएम रहते हुए हेमंत सोरेन ने 2014 चुनाव में दो सीटें- बरहेट और दुमका से चुनाव लड़ा था. इसमें बरहेट से वोजीत गए थे, लेकिन दुमका सीट पर हार गए थे . बीजेपी की सत्ता में वापसी के साथ रघुवर दास सीएम बने थे. 2019 में रघुवर दास अपनी परंपरागच जमशेदपुर पूर्वी सीट से उतरे थे, लेकिन बीजेपी के बागी सरयू राय निर्दलीय मैदान में उतरकर मात दी थी. इस तरह रघुवर दास भी अपनी सीट नहीं बचा सके.

स्पीकर के चुनाव हारने का ट्रैक रिकॉर्ड

झारखंड में अब तक तार बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. राज्य के 24 सालों के इतिहास में अब तक झारखंड विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने वाले किसी भी व्यक्ति को चुनावी सफलता नहीं मिली. 2005, 2009, 2014 और 2019 विधानसभा में जो भी नेता अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा, इन तीनों चुनावों में उसकी हार हुई.2005 में जब झारखंड में पहली बार चुनाव हुआ तो इसके पहले एमपी सिंह विधानसभा अध्यक्ष थे. जमशेदपुर पश्चिम से सरयू राय के चुनाव लड़ने के कारण एमपी सिंह को टिकट नहीं मिला. नाराज विधानसभा अध्यक्ष ने आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गए. 2009 के चुनाव में आलम गीर आलम सिटिंग विधानसभा अध्यक्ष के रूप में पाकुड़ से चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें भी हार नसीब हुई और यहां से झामुमो चुनाव जीत गया.

2014 के चुनाव में भी तीनों पार्टियां अकेले ही मैदान में उतरीं और इस चुनाव में भी सिटिंग स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता देवघर की सारठ सीट से चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए. 2019 के विधानसभा विधानसभा अध्यक्ष दिनेश ओरांव को सिसई विधानसभा सीट पर जेएमएम प्रत्याशी जिग्गा होरो ने मात दिया था. इस तरह से झारखंड में अभी तक चार स्पीकर चुनाव हार चुके हैं, जिसके चलते मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो की टेंशन बढ़ गई है. रविंद्र महतो को जेएमएम ने नाला सीट से उम्मीदवार बनाया है.

झारखंड में सत्ता परिवर्तन का चला ट्रेंड

झारखंड में हर पांच साल पर सत्ता बदलने का ट्रेंड रहा है. झारखंड का गठन साल 2000 में हुई थी और बीजेपी ने सरकार बनाया था. 2005 में पहली बार चुनाव हुए बीजेपी सत्ता में नहीं आ सकी. इसके बाद 2009 में चुनाव हुए हुए कांग्रेस-जेएमएम सत्ता में वापसी नहीं कर सकी. जेएमएम ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई, लेकिन नहीं चल सकी. इसके बाद हेमंत सोरेन सीएम बने, लेकिन 2014 में सत्ता में वापसी नहीं कर सके. इसके बाद बीजेपी की सरकार 2014 में बनी, लेकिन 2019 में बीजेपी सत्ता नहीं बचा सकी. सत्ता परिवर्तन के ट्रेंड को देखते हुए हेमंत सोरेन और जेएमएम की सियासी टेंशन बढ़ गई है, क्योंकि कोई भी मौजूदा सरकार सत्ता में रिपीट नहीं कर सकी है.

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