Political – महाराष्ट्र: 30 साल बाद पवार के घर जाएगी सीएम की कुर्सी? शरद ऐसे बिछा रहे सियासी बिसात- #INA

83 साल के शरद पवार महाराष्ट्र से लेकर देश तक की सियासत में अपने फैसले से चौंकाने के लिए मशहूर हैं. सीनियर पवार ने एक बार फिर से महाविकास अघाड़ी के सीट शेयरिंग में सबको चौंका दिया है. तीनों ही पार्टियों में सबसे कम जनाधार होने के बावजूद शरद पवार की पार्टी को बराबर-बराबर की सीटें मिली हैं.

समझौते के तहत शरद पवार को मिली 85 सीटों के बाद सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा करने में पवार कामयाब कैसे हुए और पवार इसके जरिए क्या साधना चाहते हैं?

पवार की नजर सीएम कुर्सी पर तो नहीं?

गठबंधन से 85 सीटें झटकने वाले शरद पवार को लेकर एक चर्चा खूब तेजी से चल रही है. कहा जा रहा है कि क्या शरद पवार की नजर मुख्यमंत्री कुर्सी पर तो नहीं है? इस चर्चा की 2 बड़ी वजहें हैं-

1. महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव में शरद पवार की पार्टी की जीत का स्ट्राइक रेट सबसे ज्यादा था. 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली एनसीपी (शरद) को 8 पर जीत मिली थी. इस स्ट्राइक रेट से देखा जाए तो शरद पवार की पार्टी 60-70 सीटों पर जीत सकती है. अगर ऐसा होता है तो सीएम पद की कुर्सी पर पवार की दावेदारी सबसे मजबूत हो सकती है.

2. शरद पवार ने हाल ही में एक रैली में जयंत पाटिल के जरिए सीएम कुर्सी की चर्चा की थी. पवार इस बार चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का नाम भी घोषित नहीं कर रहे हैं. इसके पीछे 2004 के चुनाव का एक वाकया बताया जा रहा है. 2004 में पवार ने चुनाव से पहले कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने की घोषणा की थी. 2004 में एनसीपी को कांग्रेस से 2 ज्यादा सीटें मिली. इसके बावजूद पवार ने सीएम की कुर्सी कांग्रेस को दे दी.

शरद पवार परिवार के पास 30 साल से सीएम की कुर्सी नहीं है. आखिर बार 1993 से 1995 तक शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे थे.

मौका मिला तो किसे मिलेगी सीएम की कुर्सी?

सियासी गलियारों में इसकी भी चर्चा है. बारामती से सांसद सु्प्रिया सुले शरद पवार की बेटी हैं. अजित पवार ने जब बगावत की थी, तब उन्होंने कहा था कि मैं बेटा नहीं हूं, इसलिए मुझे मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया गया.

शरद पवार जिस तरह सियासी बिसात अभी बिछा रहे हैं, उससे कहा जा रहा है कि भविष्य में अगर पवार के हाथ में सत्ता की चाबी आती है तो सुप्रिया के लिए सीएम बनने का रास्ता भी खुल सकता है.

सियासी गलियारों में एक चर्चा यह भी है कि शरद पवार खुद के पास भी सीएम की कुर्सी रख सकते हैं. इसकी वजह अपनों से खाए धोखा है. पवार को हाल ही में उनके भतीजे और विश्वसपात्रों से धोखा खाना पड़ा है.

दरअसल, इस बार महाराष्ट्र में रिजल्ट और महाराष्ट्र विधानसभा के कार्यकाल खत्म होने के बीच में सिर्फ 3 दिन का ही गैप है. ऐसे में इस दौरान पार्टियां ज्यादा निगोसिएशन नहीं कर पाएगी.

सीट बंटवारे पर जिस तरह से शिवसेना (उद्धव) और कांग्रेस में तकरार हुई है. उसने शरद पवार को और ज्यादा मजबूत कर दिया है.

शरद पवार ने कब-कब चौंकाया?

1999 में कांग्रेस के विरोध में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन करने वाले शरद पवार ने 2004 में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया. कांग्रेस की सरकार में शरद पवार को कैबिनेट मंत्री बनाया गया. 2004 के पहले के इतिहास को छोड़ भी दिया जाए, तो पिछले 20 साल में कई ऐसे मौके आए, जब सियासी रूप से पवार ने सबको चौंका दिया.

2006 में पहली बार पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया को सियासत में उतार दिया. उस वक्त उनके भतीजे अजित को इसकी खबर तक नहीं थी. अजित बागी हुए तो सुप्रिया को राष्ट्रीय राजनीति में ले आए. 2009 में जब सुप्रिया के मंत्री बनने की चर्चा थी तो नॉर्थ-ईस्ट की अगाथा संगमा को अपने कोटे से कैबिनेट में मंत्री बनवा दिया.

2010 में सीनियर नेताओं को दरकिनार कर अजित पवार को महाराष्ट्र में डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंप दी. 2014 के चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन हार गई. बीजेपी बड़ी पार्टी बनी, लेकिन पूर्ण बहुमत से चूक गई.

सहयोगी शिवसेना ने मोलभाव शुरू कर दिया. शिवसेना के मोलभाव के दांव को खत्म करने के लिए शरद पवार ने बिना शर्त बाहर से समर्थन दे दिया. आखिर में शिवसेना एनडीए में चली आई. 2019 में जब किसी दल को बहुमत नहीं मिला तो बीजेपी को एनसीपी से फिर उम्मीद जगी.

शरद पवार के बीजेपी के बड़े नेताओं से मिलने की खबर भी आई, लेकिन पवार ने उद्धव को आगे कर दिया. उद्धव के साथ मिलकर पवार सरकार में शामिल हो गए. 2023 में जब भतीजे ने दबाव बनाया तो पवार ने इस्तीफा देने की घोषणा कर दी. पवार के इस दांव से अजित चित्त हो गए थे.

अजित-उद्धव के सियासी फैसलों पर भी नजर

चुनाव बाद अजित पवार और उद्धव ठाकरे के सियासी फैसलों पर भी नजर रहेगा. 3 साल बाद जहां उद्धव की पार्टी टूट गई थी. वहीं दो साल पहले अजित बागी हो गए थे. उद्धव महाविकास अघाड़ी से पहले बीजेपी के साथ गठबंधन में थे. इसी तरह अजित अपने चाचा के साथ कांग्रेस गठबंधन में थे.

कहा जा रहा है कि दोनों ही राजनीतिक परिंदे अभी भले आसमान में उड़ रहे हों, लेकिन दोनों के घर वापसी की संभावनाएं भी है.

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