Political – ‘राजनीति में कुछ भी हो सकता है’, उद्धव ठाकरे की वापसी पर क्या संकेत दे गए फडणवीस?- #INA

उद्धव की वापसी पर क्या संकेत दे गए फडणवीस?
चुनावी दंगल के बीच देवेंद्र फडणवीस के एक बयान ने महाराष्ट्र की सियासी तपिश बढ़ा दी है. उद्धव ठाकरे को फिर से साथ लेने के सवाल पर फडणवीस ने कहा कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है. हालांकि, उन्होंने दावा किया कि एनडीए गठबंधन को इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी.
फडणवीस के इस बयान के बाद सियासी गलियारों में दो तरह की चर्चाएं चल रही है. पहली चर्चा बीजेपी की रणनीति को लेकर और दूसरी चर्चा उद्धव की राजनीति को लेकर हो रही है.
पहला सवाल- क्या उद्धव लौट सकते हैं?
2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे और बीजेपी एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ी. दोनों पार्टियों के गठबंधन को पूर्ण बहुमत भी मिला, लेकिन सीएम को लेकर तनातनी हो गई. उद्धव ने शिवसेना के सीएम बनाए जाने की बात को लेकर बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया.
शरद पवार और कांग्रेस के साथ मिलकर उद्धव सरकार में शामिल हो गए. 2 साल तक शिवसेना में सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 2022 के जून महीने में एकनाथ शिंदे ने 40 विधायकों के साथ बगावत कर दी.
शिंदे इन विधायकों के साथ बीजेपी में चले गए, जिससे उद्धव की सरकार चली गई. शिवसेना की टूट के एक साल बाद एनसीपी में भी टूट हो गई. 2024 के चुनाव में उद्धव कांग्रेस और शरद की पार्टी के साथ मैदान में हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव में भी उद्धव इन्हीं दोनों पार्टियों के साथ मैदान में थे, लेकिन इस चुनाव में सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस को हो गया. कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में अगर उद्धव गठबंधन की सरकार बनती है और सीएम को लेकर पेच फंसता है तो कुछ भी हो सकता है.
उद्धव जाएंगे या नहीं, यह तस्वीर 23 नवंबर के बाद ही पूरी तरह से साफ हो पाएगी.
दूसरा सवाल- बीजेपी क्यों दे रही संकेत?
बीच चुनाव में उद्धव की वापसी का संकेत भारतीय जनता पार्टी क्यों दे रही है, यह भी चर्चा में है. दरअसल, 2019 के बाद से ही बीजेपी शिवसेना और कांग्रेस के गठबंधन को अननैचुरल बताने की कवायद में जुटी है. बीजेपी शिवसेना के कोर वोटरों में यह संदेश देना चाह रही है कि उद्धव अपने हित के लिए ऐसी पार्टियों के साथ गठबंधन में हैं, जिससे उनके विचार भी नहीं मिलते.
हाल ही में पीएम मोदी और अमित शाह ने राहुल गांधी को चुनौती देते हुए कहा था कि कांग्रेस के लोग बाला साहेब ठाकरे की जय क्यों नहीं बोलते?
कहा जा रहा है कि बीजेपी उद्धव के प्रति सिंपैथी दिखाकर उनके कोर वोटरों को साधना चाहती है. वर्तमान में बाला साहेब के विरासत को अपने पक्ष में करने के लिए बीजेपी ने एक साथ कई मोर्चे खोल रखे हैं.
इनमें शिंदे के साथ गठबंधन और राज ठाकरे के साथ सियासी समझौते शामिल हैं.
गठबंधन की सियासत भी एक वजह
महाराष्ट्र की सियासत में पिछले 30 साल से किसी भी एक पार्टी की सरकार नहीं बन पाई है. हर बार पार्टियां गठबंधन के बूते ही सरकार में आई है. वर्तमान में एक तरफ एनडीए गठबंधन मैदान में हैं तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन.
288 विधानसभा सीटों वाली महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों की जरूरत होती है. एनडीए गठबंधन में अजित पवार एक कमजोर कड़ी है. वहीं बीजेपी और शिंदे की पार्टियों का सीधा मुकाबला उद्धव से है.
मुंबई और ठाणे-कोंकण इलाके में अगर कोई बड़ा खेल होता है तो एनडीए बहुमत के आंकड़ों से दूर भी हो सकती है.
90 सीटों पर लड़ रही उद्धव की पार्टी
उद्धव ठाकरे की पार्टी विधानसभा की 90 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 2019 के चुनाव में उद्धव की पार्टी को 56 सीटों पर जीत मिली थी. 2014 के चुनाव में शिवसेना ने 63 सीटों पर जीत हासिल की थी.
हालिया लोकसभा चुनाव में भी उद्धव की पार्टी को विधानसभा की 56 सीटों पर ही बढ़त मिली थी. इंडिया गठबंधन में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 63 सीटों पर बढ़त मिली थी. बीजेपी को 83 सीटों पर बढ़त मिली थी.
एकनाथ शिंदे की शिवसेना को 38 और शरद पवार की एनसीपी को 32 सीटों पर बढ़त मिली थी.
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