Political -Delhi Election Results: RSS ने कैसे ‘दिल्ली बचाओ अभियान’ से चुपचाप लगा दी AAP के सबसे बड़े वोट बैंक में सेंध – #INA
दिल्ली विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की जीत ‘बैक टू द बेसिक्स’ अप्रोच का नतीजा है। पार्टी ने राष्ट्रीय मुद्दों पर जोरदार प्रचार अभियान का इस्तेमाल नहीं किया, न ही उसने आखिरी वक्त तक मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पेश किया। ये दोनों फैक्टर अतीत में बीजेपी के लिए नुकसानदेह रहे हैं। बीजेपी स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़कर बेसिक्स के साथ जुड़ी रही। वह आम आदमी पार्टी (AAP) के दिग्गजों के सामने उनके निर्वाचन क्षेत्रों में मजबूत उम्मीदवार उतारकर उन्हें रोकने में भी सफल रही। पार्टी ने अपनी राज्य इकाई के अध्यक्ष और कई अन्य प्रमुख नेताओं को मैदान में न उतारकर उन्हें पार्टी कैंपेन चलाने का काम देने का एक सतर्कता भरा फैसला किया।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने मतदाताओं को जुटाने और स्थानीय मुद्दों के इर्द-गिर्द जमीनी स्तर पर चर्चा पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। RSS का जनादेश पहले के चुनावों जैसा ही रहा। इसके कार्यकर्ताओं ने लोगों को बेस्ट कैंडिडेट और बेस्ट पार्टी के लिए वोट करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, आम लोगों से बातचीत के दौरान RSS कार्यकर्ताओं ने कई मुद्दे उठाए और मतदाताओं से वोट देने से पहले उनके बारे में सोचने को कहा। दिल्ली के ज्यादातर हिस्सों में RSS कार्यकर्ताओं की ओर से यह लामबंदी ‘दिल्ली बचाओ अभियान’ के बैनर तले की गई और इसका नारा था ‘शत-प्रतिशत मतदान करें, बेहतर दिल्ली, बेहतर भारत’।
RSS ने ढूंढ निकाले ऐसे 10 मुद्दे, जिन पर ज्यादा ध्यान की थी जरूरत
RSS कार्यकर्ताओं ने ऐसी 10 ब्रॉड कैटेगरीज की पहचान की, जिनके इर्द-गिर्द ही दिल्ली भर में स्थानीय लोगों के साथ सभी बैठकें की गईं। ये कैटेगरी थीं- स्वच्छता, साफ पानी, स्वास्थ्य, महिला सुरक्षा, सड़कें, यमुना नदी, वायु प्रदूषण, अवैध अप्रवासी, सीवेज सिस्टम और रोजगार। स्थानीय बैठकों के दौरान जमीनी स्तर पर RSS कार्यकर्ताओं की ओर से कुछ खास मुद्दे उठाए गए। पहला मुद्दा यह था कि पिछले 10 वर्षों में यमुना नदी की स्थिति बदतर हो गई है। अगला मुद्दा ‘जल संकट’ था। RSS के पदाधिकारियों ने मतदाताओं को बताया कि झुग्गी-झोपड़ी के 43 प्रतिशत से अधिक निवासियों को या तो पानी के टैंकरों से पीने का पानी खरीदना पड़ता है या फिर उन्हें बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है। इसने झुग्गी-झोपड़ी एरिया में भारी सेंध लगाई और लोअर इनकम ग्रुप के मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा AAP से दूर हो गया।
RSS कार्यकर्ताओं ने जो अगला मुद्दा उठाया, वह यह था कि ’70 प्रतिशत मरीज प्राइवेट अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर हैं।’ इसने भी लोअर इनकम ग्रुप में चुपचाप एक बड़ा प्रभाव डाला क्योंकि AAP का जोरशोर से प्रचार वाला मोहल्ला क्लीनिक मॉडल दिल्ली में काफी हद तक बेकार साबित हुआ। इसके अलावा RSS कार्यकर्ताओं ने यह भी बताया कि ‘प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना’ जो आम लोगों पर से अस्पताल में भर्ती होने के वित्तीय बोझ को कम करने में मदद कर सकती थी, उसे दिल्ली में लागू नहीं किया गया है।
RSS कार्यकर्ताओं की ओर से आम लोगों के साथ डिस्कस किया गया आखिरी प्रमुख मुद्दा ‘दिल्ली को आतंक मुक्त और दंगा मुक्त बनाना’ था। RSS कार्यकर्ताओं ने आम लोगों को बताया कि यह सुनिश्चित करने के लिए, दिल्ली को अराजकतावादियों और राष्ट्र-विरोधी तत्वों से बचाने की जरूरत है।
RSS कार्यकर्ताओं ने इनके अलावा भी कुछ मुद्दे उठाए, जिससे ‘विकास’ पर सकारात्मक बहस शुरू हुई। और आखिरकार इसका बीजेपी को फायदा मिला। ये मुद्दे थे ‘प्लांड शहरी विकास, किफायती आवास, ऑल इंक्लूसिव डेवलपमेंट मॉडल, दिल्ली में सरकारी तंत्र की एफिशिएंसी में सुधार के लिए टेक्नोलॉजी और इनोवेशंस का इस्तेमाल, दिल्ली की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना और महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करना।’
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बिना किसी जाहिर लक्ष्य के लामबंदी
इस पूरे अभियान के दौरान RSS कार्यकर्ताओं ने AAP या कांग्रेस का जिक्र नहीं किया। विकास से जुड़े मुद्दों पर सकारात्मक चर्चा करने पर फोकस किया गया। किसी भी RSS पदाधिकारी की ओर से कोई नाम नहीं लिया गया, कोई राजनीतिक बयान नहीं दिया गया। RSS के पदाधिकारियों ने बात कम की और सुना ज्यादा। उन्होंने लोगों की अलग-अलग मुद्दों पर राय सुनी और प्रतिक्रिया मांगी। इस ‘ईयर टू द ग्राउंड’ अप्रोच से वैल्यूएबल फीडबैक मिला, जिससे बीजेपी को अपने पूरे कैंपेन को बेहतर बनाने के साथ-साथ लोकल लेवल पर रिलीवेंट मुद्दों को उठाने में भी मदद मिली।
दिलचस्प बात यह है कि वोटिंग या वोटों की काउंटिंग के दिन बीजेपी के किसी भी पोलिंग बूथ की मेज पर RSS का कोई पदाधिकारी दिखाई नहीं दिया। स्पष्ट निर्देश थे कि किसी भी राजनीतिक बूथ पर RSS का कोई भी कार्यकर्ता बीजेपी के एजेंट के रूप में नहीं बैठेगा। बूथों को बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने मैनेज किया, जबकि जमीनी स्तर पर चर्चा RSS कार्यकर्ताओं ने की।
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RSS किसी उम्मीदवार विशेष को नहीं करता सपोर्ट
इस बीच, यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि कैंपेन के दौरान अक्सर यह दावा देखने को मिलता है कि RSS ने किसी विशेष उम्मीदवार को सपोर्ट किया है या RSS ने बीजेपी द्वारा जीती जाने वाली सीटों की संख्या को लेकर सर्वे किया है। RSS किसी उम्मीदवार विशेष को सपोर्ट नहीं करता है। न ही यह कोई चुनाव या राजनीतिक सर्वेक्षण करता है। यहां तक कि, यह मतदाताओं से किसी विशेष पार्टी को वोट देने के लिए भी नहीं कहता है। RSS जमीनी स्तर पर प्रमुख मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करता है और लोगों से उसके अनुसार चुनने के लिए कहता है।
इसके कार्यकर्ता इस काम को प्रभावी ढंग से करने में सक्षम हैं क्योंकि वे साल के 365 दिन ग्राउंड लेवल पर काम करते हैं। वे स्थानीय स्तर पर लोगों से अनौपचारिक रूप से जुड़े हुए हैं। समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण के लिए अनुशासन, निस्वार्थता और प्रतिबद्धता के कारण उनके वैचारिक विरोधी भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। यही कारण है कि उनकी मौजूदगी अक्सर फर्क पैदा करती है।
(RSSFACTS कॉलम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की फंक्शनिंग, ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर और विचारधारा को उजागर करता है)
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